ज्ञानवापी केस; मुस्लिम पक्ष को लगा एक और झटका, शिवलिंग की पूजा को लेकर दाखिल याचिका स्वीकार

उत्तर प्रदेश देश
Spread the love

वाराणसी। बड़ी खबर उत्तर प्रदेश से आयी है। ज्ञानवापी केस में मुस्लिम पक्ष को एक और झटका लगा है। शिवलिंग की पूजा को लेकर दाखिल याचिका कोर्ट ने स्वीकार कर ली है।

ज्ञानवापी परिसर मामले में गैर मुस्लिम का प्रवेश वर्जित करने, वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की पूजा पाठ राग भोग की अनुमति और परिसर हिंदुओं को सौंपे जाने की मांग को लेकर आज यानि की गुरुवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है।

फिलहाल ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को एक और झटका लगा है। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया है। वहीं वादी किरण सिंह बिसेन द्वारा दायर याचिका पर कोर्ट ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा है कि यह मामला सुनवाई योग्य है। अब इस मामले पर आगे सुनवाई की जाएगी।

वादिनी किरन सिंह की तरफ से दाखिल वाद सुनवाई योग्य है या नहीं इस पर सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत में सुनवाई हुई है।

बता दें कि बीते 15 अक्टूबर को इस मामले पर दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी हो गई थी। तब से आदेश में पत्रावली लंबित है। इससे पहले इस मामले पर 8 नवंबर को आदेश आना था। लेकिन अदालत के पीठासीन अधिकारी के अवकाश पर होने के कारण अगली तारीख14 नवंबर को तय की गई थी। जिसके बाद अब 17 नवंबर को मामले पर सुनवाई की गई।

वादिनी किरन सिंह की ओर से दाखिल वाद पर कोर्ट में दोनों पक्षों ने अपनी बहस पूरी कर ली। वहीं इस मामले पर लिखित प्रति भी दाखिल की जा चुकी है। बता दें कि वादिनी किरन सिंह के अधिवक्ताओं ने दलील देते हुए कहा था कि मुस्लिम पक्ष की तरफ से मामला सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर जो आपत्ति जाहिर की थी। वह साक्ष्य और ट्रायल की विषय है।

उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब मंदिर का है और जब इसका ट्रायल होगा, तो पता चल जाएगा कि वह मस्जिद है या मंदिर। वहीं दीन मोहम्मद के फैसले पर बात करते हुए कहा गया कि उस केस में कोई हिंदू पक्षकार नहीं था। इसलिए यह हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होगा।

साथ ही यह भी दलील दी गई कि विशेष धर्म स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी के स्ट्रक्चर का पता नहीं है कि वह मस्जिद है या मंदिर। इसके ट्रायल का अधिकार केवल सिविल कोर्ट के पास है।

इस दौरान कहा गया कि मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने का आदेश दिया था। हिंदू पक्ष पर वक्फ एक्ट लागू नहीं होता है। इसलिए यह वाद सुनवाई योग्य है और मुस्लिम पक्ष यानि की अन्जुमन की तरफ से पोषणीयता के बिंदु पर दिया गया आवेदन खारिज करने योग्य है।

हिंदू पक्ष ने कोर्ट के सामने दलील पेश करते हुए कहा था कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत भगवान को भी अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। इसलिए नाबालिग होने के चलते वाद मित्र के द्वारा यह वाद दाखिल किया गया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का भी हवाला दिया गया था।

वहीं इस मामले पर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की ओर से मुमताज अहमद, तौहीद खान, रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान और एखलाक खान ने अदालत में प्रतिउत्तर में सवाल उठाते हुए कहा था कि हिंदू पक्ष एक ओर कहता है कि वाद देवता की ओर से दाखिल है, जबकि इसमें पब्लिक भी जुड़ी हुई है। मुस्लिम पक्ष ने दलील देते हुए कहा था कि यह मामला सुनवाई योग्य नहीं है।