झारखंड के इतिहास की पहली घटना, जज पर 25 हजार रुपये का जुर्माना, जानें पूरा मामला

झारखंड
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रांची। बड़ी खबर आई है, झारखंड के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब किसी जज पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। दरअसल, झारखंड हाईकोर्ट ने डालटनगंज के सिविल जज सुरेंद्र सिंह यादव पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया है।

उन्हें यह रकम रांची के संत माइकल्स नेत्रहीन विद्यालय में बच्चों के कल्याण के लिए जमा करने का आदेश दिया है। साथ ही हाई कोर्ट ने उनके आइए को खारिज कर दिया है।

सुरेंद्र सिंह यादव ने आइए दाखिल कर प्रतिवादी बनाये गये 86 अधिकारियों को डाक से नोटिस भेजने के आदेश को संशोधित करते हुए डिजिटल मोड से भेजने का आदेश देने का अनुरोध किया था। झारखंड के इतिहास में किसी न्यायिक सेवा के अधिकारी पर कॉस्ट लगाये जाने की यह पहली घटना है।

डालटनगंज में पदस्थापित सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने हाइकोर्ट में रिट याचिका (WPC5796/2023) दायर कर जिला जज में दी गयी प्रोन्नति को चुनौती दी थी। उन्होंने कार्मिक विभाग द्वारा सिविल जज (सीनियर डिवीजन) को जिला जज की प्रोन्नति के लिए आयोजित इंटरव्यू में शामिल हुए 86 न्यायिक सेवा के अधिकारियों को प्रतिवादी बनाया था। इसी मामले को लेकर दूसरी याचिका सिविल जज अमित कुमार वैश्य ने भी दायर की थी।

उन्होंने भी कार्मिक प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा जिला जज में प्रोन्नति से संबंधित 11 सितंबर 2023 को जारी अधिसूचना को रद्द करने की मांग की थी। झारखंड हाईकोर्ट ने दोनों ही याचिकाओं को एक साथ जोड़ कर सुनवाई करने का फैसला किया।

पहली दिसंबर 2023 को सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने सभी प्रतिवादियों को रजिस्टर्ड पोस्ट और सामान्य डाक से नोटिस भेजने का आदेश दिया। नियमानुसार, उक्त दोनों ही मामलों में प्रतिवादियों को नोटिस भेजने का खर्च याचिकादाताओं को ही उठाना है।

हाइकोर्ट द्वारा नोटिस भेजने का आदेश दिये जाने के बाद सुरेंद्र सिंह यादव ने हाइकोर्ट में एक आइए (11421/2023) दायर किया। इसमें यह कहा गया कि न्यायालय ने 86 प्रतिवादियों को रजिस्टर्ड पोस्ट के अलावा सामान्य डाक से भी नोटिस भेजने का आदेश दिया है।

इसके अलावा न्यायालय ने सभी प्रतिवादियों को रिट पिटीशन की कॉपी ई-मेल से भी भेजने की अनुमति दी है। आइए में न्यायालय से यह कहा गया कि रिट पिटीशन की कॉपी 300 पेज की है। 86 प्रतिवादियों के रजिस्टर्ड पोस्ट और सामान्य डाक से नोटिस भेजने के लिए पिटीशन की 172 कॉपी बनानी होगी।

इसमें कुल 51,600 पेज लगेंगे। वास्तव में यह कागज की बर्बादी होगी। इसलिए न्यायालय से यह अनुरोध है कि वह दिसंबर 2023 के आदेश को संशोधित करते हुए 86 प्रतिवादियों को रजिस्ट्रार के माध्यम से सिर्फ डिजिटल मोड से ही नोटिस भेजने की अनुमति दे। अगर न्यायालय द्वारा इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जाता है, तो याचिकादाता को अपूरणीय क्षति होगी।

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायाधीश नवनीत कुमार की पीठ में इस आइए की सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद न्यायालय ने यह कहते हुए आइए खारिज कर दिया कि इसमें प्रामाणिकता की कमी है।

साथ ही सिविल जज सुरेंद्र सिंह यादव पर 25 हजार रुपये का कॉस्ट लगाया। अदालत ने कॉस्ट की रकम नेत्रहीन बच्चों के कल्याण के लिए संत माइकल्स नेत्रहीन विद्यालय में जमा करने का आदेश दिया है।