मारवाड़ी सम्मेलन ने समाज के लिए लागू किया आदर्श आचार संहिता, जानें मुख्‍य बिंदु

झारखंड सरोकार
Spread the love

  • जिला और शाखाओं से इसका प्रचार प्रसार करने की अपील

रांची/रामगढ़। समाज सुधार और विकास के लिए झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के प्रांतीय अध्यक्ष बसंत मित्तल के नेतृत्व में ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू किया है। इसका प्रचार प्रसार किया जा रहा है।

प्रांतीय जनसंपर्क प्रचार प्रसार एवं मीडिया प्रभारी प्रकाश पटवारी, संजय सर्राफ ने प्रदेश में सभी जिलों और शाखाओं से इसका प्रचार प्रसार करने का अनुरोध कि‍या है। उन्‍होंने झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन अपने सभी सदस्य एवं समाज बंधुओं से विभिन्न अवसरों पर ‘आदर्श आचार संहिता’ के अनुपालन का अनुरोध कि‍या।

पटवारी ने कहा कि ‘आदर्श आचार संहिता’ के बारे में सभी जिलों और शाखाओं के माध्यम से समस्त सदस्यों एवं समाज बंधुओं को जागरुकता जारी रखीं जाए। इसका अनुपालन करने वाले बंधुओं को प्रोत्साहित और सम्मानित किया जाए। झारखंड के सभी जिलों से इसके अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

आदर्श आचार संहिता के मुख्‍य बिंदु

1. समस्त पारिवारिक कार्यक्रमों, जन्म, मृत्यु, श्राद्ध, नेग, तिलक विवाह, गृहप्रवेश इत्यादि अवसरों पर सादगी एवं मितव्ययता का अधिकतम प्रयास करना।

2. विवाह और अन्य अवसरों पर कॉकटेल, मद्यपान का निषेध करना, फिजूलखर्ची, दहेज, इवेंट के नाम पर आडंबर, सड़क पर नृत्य, आतिशबाजी और ध्वनि-प्रदूषण से बचना। यथासंभव दिन में विवाह का प्रयास करना।

3. विवाह के अवसर पर प्री-वेडिंग शूटिंग और महंगे निमंत्रण कार्ड का निषेध करना। ई-कार्ड को बढ़ावा देना। भोजन के मीनू को 31 आइटम तक सीमित रखना।

4. मृत्यु भोज, कुटुंब भोज इत्यादि को परिवार तक सीमित रखना। टीका-रस्म और सुख सेज इत्यादि में अधिकतम सादगी और मितव्ययता का पालन करना।

5. मांगलिक कार्यों में पितरों के नाम पर और समधी मिलन के दौरान मिलनी के तौर पर दस-दस के चार नोट या बीस-बीस के दो नोट का प्रचलन रखना।

6. सादगीपूर्ण तरीके से आयोजन करके गाढ़ी मेहनत की अपनी कमाई का संचय करने और कर्ज के बोझ से बचने वाले सदस्यों का सम्मान करना।

7. विधवा या तलाकशुदा महिलाओं के पुनर्विवाह का प्रयास करना। लड़कियों की उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना। कन्या भ्रूणहत्या पर रोक लगाना।

8. पारिवारिक विवादों, संबंध विच्छेद इत्यादि मामलों में अदालत के बजाय मारवाड़ी पंचायत के माध्यम से हल का प्रयास करना।

9. अपने बुजुर्गों के सम्मान और जरूरतों का भरपूर ख्याल रखना। उन्हें उपेक्षा अथवा एकाकीपन का शिकार होने से बचाना।

10. पारिवारिक कार्यक्रमों में अपनी भाषा, संस्कृति और सकारात्मक प्रथाओं का संरक्षण करते हुए बदलते समय के साथ उनका समुचित आधुनिकीकरण करना।