HBD : आईएएस बनने का सपना छोड़ सियासत के मैदान में इस तरह आईं मायावती

उत्तर प्रदेश देश
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उत्तर प्रदेश। उत्‍तर प्रदेश की पूर्व मुख्‍यमंत्री व बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती का आज अपना 66वां जन्मदिन है, जिसे बसपा जन्मदिन को ‘जन कल्याणकारी दिवस’ के रूप में मना रही हैं। इस मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मायवती को फोन करके बधाई दी। साथ योगी ने ट्वीट के जरिये सोशल मीडिया पर भी उन्‍हें शुभकामनाएं दी हैं। योगी ने लिखा,” बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। प्रभु श्री राम से आपके उत्तम स्वास्थ्य तथा सुदीर्घ जीवन की प्रार्थना है।” मायावती के जन्‍मदिन पर हम आपको उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं। किस तरह अपनी नौकरी और आईएएस बनने का सपना छोड़कर वह सियासत के मैदान में आ खड़ी हुईं, इसकी कहानी काफी रोचक है।

मायावती का जन्म 15 जनवरी, 1956 में दिल्ली में एक दलित परिवार के घर पर हुआ। पिता प्रभु दयाल जी भारतीय डाक-तार विभाग के वरिष्ठ लिपिक के पद से सेवा निवृत्त हुए। उनकी माता रामरती अनपढ़ महिला थीं परन्तु उन्होंने अपने सभी बच्चों की शिक्षा में रुचि ली और सबको योग्य भी बनाया। मायावती के परिवार में 6 भाई और 2 बहनें हैं। इनका पैतृक गांव बादलपुर उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले (नोएडा) में स्थित है। मायावती अपने सभी भाई बहनों में पढ़ने में सबसे तेज थीं। बीए करने के बाद उन्होंने दिल्ली के कालिन्दी कॉलेज से एलएलबी किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने बीएड भी किया। उन्होंने आईएस बनने का सपना देखा था। राजनीति में आने से पहले उन्होंने बच्चों को पढ़ाने का भी काम किया। वह दिल्ली में जेजे कॉलोनी के एक स्कूल में पढ़ाती थी साथ ही यूपीएससी की तैयारी कर रही थीं।

उनके जीवन में तब एक बड़ा बदलाव आया जब कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। मायावती ने उनकी विचारधारा से प्रभावित हुईं होकर आईएएस बनने को अपने सपने को छोड़ दिया और राजनीति में कूद गईं। 1977 में मायावती, कांशीराम के सम्पर्क में आयीं। वहीं से उन्होंने एक नेत्री बनने का निर्णय लिया। कांशीराम के संरक्षण में 1984 में बसपा की स्थापना के दौरान वह काशीराम की कोर टीम का हिस्सा रहीं। मायावती ने अपना पहला चुनाव उत्तर प्रदेश में मुज़फ्फरनगर के कैराना लोकसभा सीट से लड़ा था। 3 जून 1995 को मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 18 अक्टूबर 1995 तक सत्‍ता में रहीं।

बतौर मुख्यमंत्री दूसरा कार्यकाल 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक, तीसरा कार्यकाल 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक और चौथी बार 13 मई 2007 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया। इस बार उन्होंने पूरे पांच साल तक सत्‍ता संभाली, लेकिन 2012 में बसपा सत्‍ता से बाहर हो गई। मायावती की जीवनी लिखने वाले अजय बोस ने की अपनी किताब ‘बहनजी- बायोग्राफी ऑफ मायावती’ में दावा किया है कि यूपी में मुख्यमंत्री का पद हासिल करने वाली उत्तर प्रदेश की दलित मुख्यमंत्री मायावती को घर में ही भेदभाव का सामना करना पड़ा था। यह भेदभाव उनके दलित होने पर नहीं, बल्कि लड़की होने के लिए किया गया था और करने वाले उनके ही पिता थे। छह भाइयों और तीन बहनों वाले उनके परिवार में सभी बहनों को भेदभाव का सामना करना पड़ा। जहां उनके सभी भाईयों की पढ़ाई पब्लिक स्कूलों में हुई, वहीं सभी बहनों का दाखिला सस्ते सरकारी स्कूल में करवाया गया।