बिना प्रबंधन के चल रहा है झारखंड राज्य सरकारी बैंक

झारखंड
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  • विगत 2 माह से बैंक में कोई प्रशासक नहीं, छह माह से सीईओ का पद खाली

रांची। झारखंड राज्य सहकारी बैंक बिना प्रबंधन के चल रहा है। बीते दो महीने से यहां कोई प्रशासक नहीं है। छह माह से सीईओ का पद खाली है। उक्‍त बातें झारखंड राज्‍य सहकारी बैंक कर्मचारी संघ के अध्‍यक्ष अनिल पी पन्‍ना ने कही। वे रांची स्थित बैंक के मुख्यालय परिसर में 15 दिसंबर को प्रेस से बात कर रहे थे। उन्‍होंने बैंक की वर्तमान स्थिति की भी जानकारी दी।

अध्‍यक्ष ने कहा कि पूरे देश में झारखंड ऐसा पहला राज्य है, जहां सभी जिला सहकारी बैंकों को मिलाकर राज्य सहकारी बैंक का गठन 1 अप्रैल, 2017 को किया गया था। इस प्रयोग की सफलता और असफलता का विश्लेषण देश के अन्य राज्य कर रहे हैं। वर्तमान में सरकार एवं नियामक संवैधानिक संस्था आरबीआई और नाबार्ड की उदासीनता एवं निष्क्रियता के कारण नवगठित झारखंड राज्य सहकारी बैंक निचले पायदान पर पहुंच चुका है।

पन्‍ना ने कहा कि आज बैंक में ना तो कोई प्रशासक है और ना ही कोई मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी। बोर्ड द्वारा संचालित होने वाले यह बैंक विगत 1.5 वर्ष से बोर्ड रहित अवस्था में चल रहा है। बैंक संचालन के लिए 30 जुलाई, 2021 को एक प्रशासक रमेश घोलप गोरख को नियुक्त किया गया था। महज 3 माह में 25 अक्टूबर, 2021 को उनका तबादला कर दिया गया। वर्तमान में विगत 2 माह से बैंक में कोई प्रशासक नहीं है।

बैंक के डे टुडे वर्क के लिए मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी प्रेम प्रकाश को 16 सितंबर, 2020 को नियुक्त किया गया था। 30 जून, 2021 को उनके इस्तीफे के बाद यह पद खाली है। अब बैंक की नीतियों के क्रियान्वयन के लिए कोई सक्षम पदाधिकारी नहीं है। इस संदर्भ में सरकार को कई बार संघ के माध्यम से पत्राचार किया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसे में बैंक का अस्तित्व को लेकर संघ चिंतित है।

बैंक आमेलन के समय ये काम होने चाहिए थे

1. मानव बल का पुनर्गठन

2. नए उपविधि (बायलॉज) का निर्माण किया जाना था

3. स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर (SOP), सर्विस रूल, आईटी पॉलिसी का निर्माण

4. बैंक के शीर्ष प्रबंधन का गठन

5. सीबीएस प्रणाली के जरिए बैंक संचालन के लिए सुदृढ़ आईटी सिस्टम का पुनर्गठन

6. धोखाधड़ी एवं फ्रॉड की पृष्ठभूमि की निगरानी के लिए सुदृढ़ आंतरिक अंकेक्षण प्रणाली का निर्माण

7. बैंक के लिए एक सुव्यवस्थित प्रशिक्षण संस्था का निर्माण किया जाना था।

संघ ने कहा कि उपरोक्त कार्यो को संपादित करने के लिए सरकार द्वारा बजटीय प्रावधान के तहत अनुदान उपलब्ध कराया जाना था। सरकार द्वारा इसे अपनी प्राथमिकता में नहीं लिया गया। आरबीआई ने आमेलन पूर्व नियम शर्तों के अनुरूप सरकार के आश्वासन पर बगैर उपरोक्त शर्तों को पूरा किए बैंकिंग लाइसेंस दिया। अब आमेलन के 4.5 वर्ष गुजर चुके हैं, इस संबंध में आरबीआई ने भी उदासीनता दिखाते हुए अभी तक कोई डायरेक्टिव जारी नहीं किया है। स्थितियां बद से बदतर की ओर पहुंच चुकी है। परिणाम स्वरूप किसान, मजदूर एवं गरीब तबके के लोगों के उत्थान के लिए बनी यह संस्था कोमा में जा रही है।

अध्यक्ष ने कहा कि सहकारी बैंक बिना प्रबंधन के अनाथ हो चुका है। पिछले 2 माह से प्रशासक नहीं है। 6 माह से सीईओ का पद भी खाली है। इसके कारण बोर्ड का गठन भी नहीं हो पा रहा है। सरकारी स्तर से जल्द से जल्द इस पर कार्य करने की जरूरत है। इस संदर्भ पर जरूरत पड़ने पर विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री से मिलकर बैंक के संदर्भ में ज्ञापन सौंपा जाएगा।

संघ के महासचिव चंदन कुमार प्रसाद ने कहा कि सहकारी बैंक के विकास से राज्य के ग्रामीण जनता एवं किसानों के प्रगति में मदद मिलेगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ होगी। सहकारिता के माध्यम से राज्य को नई उचाईइयों तक पहुंचाया जा सकता है। ऐसे में इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए सरकार के स्तर से कार्रवाई की जानी चाहिए। मौके पर कोषाध्यक्ष निखिल बंका, कार्यकारणी सदस्य राजीव कुमार, तिलक देव, अमृता महतो आदि उपस्थित थे।