जानिए कब और कैसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत? क्‍या है इस पर्व का महत्‍व

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रांची। पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रदेव ने अहंकार में आकर अपना महत्‍व जताने के लिए ब्रज में घनघोर बारीश की इससे चारों ओर तबाही मच गई। तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की मूसलाधार बारिश से रक्षा की थी।

श्रीकृष्‍ण द्वारा उंगली पर उठाए गए गोवर्धन पर्वत के नीचे सभी गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सुख पूर्वक और बारिश से बचकर रहे। इस घटना के चलते जब इंद्रदेव को इस बात का ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनका अहंकार टूट गया और इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। तभी से गोवर्धन पूजा मनाने की शुरुआत हुई।

मान्यता है जो गोवर्धन पूजा करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है। गोवर्धन पूजा प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित पर्व है। इस दिन कई मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानी भंडारे होते हैं। गोवर्धन पूजा करने के बाद लोगों में प्रसाद बांटा जाता है। इस दिन आर्थिक संपन्नता के लिए गाय को स्नान कराकर उसका तिलक भी किया जाता है।

मान्‍यता है कि गाय को हरा चारा और मिठाई खिलाने और गाय की 7 बार परिक्रमा करने से घर में खुशहाली और धन-धान्‍य बना रहता है। इसके बाद गाय के खुर की पास की मिट्टी एक कांच की शीशी में लेकर उसे अपने पास रख लेने से मान्यता है ऐसा करने से धन-धान्य की कमी नहीं होती।