उपेंद्र गुप्ता
दुमका। स्कूलों में संताली पर्व त्यौहार के अवकाश में कटौती से समाज के लोग नाराज हैं। अखड़ा और ग्रामीणों ने सरकार से पूर्व की तरह छुट्टी देने की मांग की। सोहराय में चार दिन और कृषि अवकाश देने की बात कही। ऐसा नहीं होने पर आंदोलन करने की धमकी दी।
जिले के दुमका प्रखंड के गुजिसिमल गांव में प्राथमिक शिक्षा निदेशालय द्वारा प्रारंभिक विद्यालयों के लिए वर्ष, 2021 की जारी अवकाश तालिका को लेकर कुल्ही दुरुप (बैठक) हुई। इसमें अखड़ा और ग्रामीणों ने कहा कि संताल आदिवासी के पर्व-त्यौहारों में या तो अवकाश कम कर दिए गए है या खत्म कर दिये गये हैं। यह खेद की बात है। एक ओर झारखंड सरकार अबुवा दिसोम-अबुवा राज (अपना देश-अपना राज) का नारा लगा रही है, दूसरी ओर राज्य में बहुसंख्यक संताल आदिवासी के पर्व-त्यौहारों के अवकाश में कटौती करती है। यह नहीं चलेगा।
ग्रामीणों और अखड़ा ने कहा पूरे वर्ष में अवकाश संख्या पूर्व वर्ष की भांति 60 दिनों का ही है। ऐसे में संताल आदिवासियों के पर्व-त्यौहारों के अवकाश में कटौती क्यों? संताल आदिवासियों के सोहराय जैसे महापर्व में पहले चार दिनों का अवकाश मिलता था, जिसे इस वर्ष घटा कर मात्र एक दिन कर दिया गया है। यह तय है कि आदिवासी ग्रामीण बच्चे सोहराय महापर्व में स्कूल नहीं जायेगे। ऐसे में सोहराय पर्व में स्कूल खोलकर क्या फायदा? संताल आदिवासियों के पर्व-त्यौहार माघ, बाहा, एरोक, दशाय, जानथाड़, हरियर के अवकाश को खत्म कर दिया गया है। यह दुःख की बात है।
अखड़ा और ग्रामीणों का कहना है कि कृषि का अवकाश नहीं देना भी दुःख की बात है। हम सभी जानते हैं कि भारत और झारखंड कृषि प्रधान है। अखड़ा और ग्रामीणों ने राजनितिक पार्टियों द्वारा होडिंग/बैनर में संताल आदिवासी के पर्व-त्यौहारों में शुभकामनाये नहीं दिए जाने पर भी नराजगी व्यक्त किया है। उन्होंने सरकार से सोहराय पर्व पर चार दिनों का वकाश देने की मांग की। संताल आदिवासी के पर्व-त्यौहार माघ, बाहा, एरोक, दशाय, जानथाड़, हरियर पर पुनः छुट्टी की घोषणा करने की बात कही।
अखड़ा और ग्रामीणों ने कहा कि पर्व-त्यौहारो में अवकाश नहीं मिलने से संताल समाज की सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाज खत्म होने के कगार में आ जायेंगे। यह संताल आदिवासी समाज के अस्तिव का सवाल है। अगर सरकार और राजनितिक पार्टियां ऐसा नहीं करती है तो संताल समाज विवश होकर आंदोलन करने के लिए मजबूर होगा। मौके पर कमली हेम्ब्रम, मलोती टुडु, सोना हेम्ब्रम, एलटिना हेम्ब्रम, होपोंटी हांसदा, अनिता किस्कु, ननी हांसदा, पारो मरांडी, बाहामुनि टुडु, बड़की टुडु, मंगल कोल, मंगल टुडु, मंगल मुर्मू,रसका मुर्मू, रसिक सोरेन, सिरिल सोरेन, सोम सोरेन, सुनिलाल सोरेन, सुरेंद्र सोरेन, सुरेश मुर्मू, मनोज मुर्मू, मनोज सोरेन, सागेन मुर्मू, बाबुधन मुर्मू, बाले हांसदा, चम्पा टुडु, जगदीश मुर्मू, सुरेंद्र मुर्मू, होपना सोरेन के साथ काफी संख्या में ग्रामीण महिला और पुरुष उपस्थित थे।