जमशेदपुर। टाटा स्टील ने अग्रणी भूविज्ञानी प्रमथ नाथ बोस (पीएन बोस के नाम से लोकप्रिय) को आज उनकी 168वीं जयंती पर श्रद्धांजलि दी। दिन की शुरुआत सुबह श्रद्धांजलि कार्यक्रम के साथ हुई, जहां टाटा स्टील के वरिष्ठ प्रबंधन और कर्मचारियों ने आर्मरी ग्राउंड के पास पीएन बोस को श्रद्धांजलि दी।
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इस अवसर पर उत्तम सिंह, वाईस प्रेसिडेंट, आयरन मेकिंग, टाटा स्टील और संजीव कुमार चौधरी, अध्यक्ष, टाटा वर्कर्स यूनियन क्रमशः मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। डीबी सुंदरा रामम, वाइस प्रेसिडेंट रॉ मैटेरियल्स टाटा स्टील, टाटा वर्कर्स यूनियन के वरिष्ठ पदाधिकारी, टाटा स्टील के कर्मचारी सहित अन्य लोग भी उपस्थित थे। सभी स्थानों पर टाटा स्टील के कर्मचारियों के लिए डिजिटल श्रद्धांजलि की भी योजना बनाई गई थी।
टाटा स्टील के नेचुरल रिसोर्सेज डिवीजन ने सेंटर फॉर एक्सीलेंस में 5वें पीएन बोस मेमोरियल लेक्चर का आयोजन किया। व्याख्यान के अतिथि वक्ता प्रो सुनील कुमार सिंह, निदेशक राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा थे।
12 मई, 1855 को पश्चिम बंगाल के एक सुदूर गांव में जन्में पीएन बोस ने लंदन विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक किया। 1878 में रॉयल स्कूल ऑफ माइन्स से उत्तीर्ण हुए। भूविज्ञानी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने मध्य प्रदेश के धुल्ली और राजहरा में लौह अयस्क की खदानों की खोज की।
उनके जीवन की सबसे उत्कृष्ट उपलब्धि मयूरभंज राज्य में गोरुमाहिसानी की पहाड़ियों में लौह अयस्क के भंडार की खोज थी। इस खोज के बाद उन्होंने यह 1904 में टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी नसरवानजी टाटा को उन्होंने एक पत्र लिखा था, जिसके परिणामस्वरूप 1907 में जमशेदपुर में भारत के पहले एकीकृत इस्पात संयंत्र की स्थापना हुई थी।
कई अग्रणी पहल का श्रेय बोस को जाता है। वे ब्रिटिश विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक करने वाले पहले भारतीय थे; असम में पेट्रोलियम की खोज करने वाले; भारत में साबुन की फैक्ट्री स्थापित करने वाले और पेट्रोलॉजिकल कार्य के लिए सहायता के रूप में माइक्रो सेक्शन शुरू करने वाले भी पहले व्यक्ति थे।
वह भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में एक श्रेणीबद्ध पद धारण करने वाले पहले भारतीय भी थे, जहाँ उन्होंने विशिष्टता के साथ सेवा की। एक विज्ञान पुरुष के रूप में, उन्होंने देश में तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने पर लगातार काम किया। उन्हीं के प्रयासों से बंगाल तकनीकी संस्थान की नींव रखी गयी, जिसे आज जादवपुर यूनिवर्सिटी के रूप में जाना जाता है, जिसके बोस पहले मानद प्रधानाचार्य थे।