कुड़मी को एसटी की सूची में शामिल करने के केस में कोर्ट में इंटरवेन करेगा आदिवासी समाज

झारखंड
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रांची। आदिवासी समाज ने कुरमी/कुड़मी को एसटी की सूची में शामिल करने की मांग का विरोध किया। इस मांग से आदिवासी समाज आक्रोशित है। कुरमी/कुड़मी की भाषा, संस्कृति, परंपरा, रीति रिवाज कुछ भी आदिवासी से मेल नहीं खाता है। लोकुर कमेटी के तय 5 मापदंड में कुरमी/कुड़मी किसी भी अहर्ता को पूरा नहीं करता है। उक्‍त बातें 13 अप्रैल को मीडिया से शशि पन्ना, प्रेमचंद मुर्मू, कुंदरेसी मुंडा, अनिल पन्ना, अमरनाथ लकड़ा ने कही।

आदिवासी समाज ने कहा कि कुरमी/कुड़मी की भाषा कुरमाली, बंगला और मगही का अपभ्रष है। ये इंडो आर्यन लैंग्वेज फैमिली से है। आदिवासी की भाषा ड्राविडियन और ऑस्ट्रो एशियाटिक लैंग्वेज फैमिली से है। क्षेत्र के साथ-साथ इनकी भाषा भी बदल जाती है। बिहार में मगही, झारखंड में खोरठा और कुरमाली, बंगाल में बांग्‍ला, ओडिशा में उड़िया भाषा बोलते है।

आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने कहा कि कुरमी/कुड़मी समाज खुद को आदिवासी से दूर रखते है। आदिवासी की पारंपरिक त्योहार, रीति रिवाज से दूर रहते है। इनका सरहुल पर्व की शोभा यात्रा में किसी भी तरह का कोई योगदान नहीं रहा। इनके द्वारा किसी भी तरह की कोई झांकी भी नहीं निकली गयी थी।

इसके साथ ही सीएनटी एक्‍ट 1908 में कुरमी/कुड़मी के लिए विशेष प्रावधान नहीं है। उरांव, मुंडा व अन्य के लिए विशेष प्रावधान है। जैसे मुंडारी खूंटकट्टी भूमि, डालिकटारी, बकस्त भूइंहारी पहनाई, बकास्त भूइंहरी महतोई वो अन्य।

कुरमी/कुड़मी समाज द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। इस पर शशि पन्ना ने कहा कि आदिवासी समाज द्वारा इस केस में इंटरवेन किया जाएगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बयान और सुप्रीम कोर्ट के कांस्टीट्यूशनल बेंच का जजमेंट का हवाल देते हुए कहा कि हाई कोर्ट किसी भी आदिवासी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का निर्देश नहीं दे सकता है।

कुछ कुरमी/कुड़मी नेता द्वारा यह कहा जाता है की कुड़मी को एसटी सूची में शामिल करने से यहां की जनसंख्या 50% से अधिक हो जाएगी। यहां छठी अनुसूचि लागू हो जायेगी। इसका खंडन शशि पन्ना ने किया। कहा कि सिर्फ जनसंख्या ही छठी अनुसूची की एकमात्र मानदंड नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्ता कुंदरेसी मुंडा ने कहा कि कुरमी/कुड़मी मध्य भारत से माइग्रेट करके छोटानागपुर में आए हैं। उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। आदिवासी असम में 200 साल पहले जाकर के बसे हैं। फिर भी उन्हें वहां पर अनुसूचित जनजाति की सूची में नहीं रखा गया है, क्योंकि वे वहां के मूलनिवासी नहीं है। झारखंड से विस्थापित होकर कर वहां पर बसे हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता अनिल पन्ना ने कहा कि कुरमी/कुड़मी के कुछ नेता अपनी राजनीति फायदे के लिये आदिवासी बनना चाहते हैं। उनकी नजर संविधान प्रदत्त आदिवासियों के आरक्षण पर है। उनकी नौकरियों पर है। भविष्य में विधानसभा और लोकसभा के आरक्षित सीटों पर कब्जा जमा सकते हैं। आदिवासियों की ज़मीन पर खरीद बिक्री कर सकते हैं। आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है। आदि धर्म सरना धर्म को मानते हैं। वहीं दूसरी ओर कुड़मी/कुरमी समाज हिन्दू धर्म के विधि विधान के साथ चलते हैं।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमचंद मुर्मू ने कहा कि कुरमी/कुड़मी आर्यन प्रजाति के है, बल्कि आदिवासी लोग ड्राविडियन और प्रोटो एस्ट्रो लॉयड प्रजाति के होते है। भविष्य में अगर दोबारा इस तरह की मांग की गई तो आदिवासी समाज द्वारा सड़क से सदन तक जोरदार आंदोलन किया जाएगा।

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