21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने सीजेआई को लिखा पत्र, इस बात पर जताई चिंता

नई दिल्ली देश
Spread the love

नई दिल्ली। बड़ी खबर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से आई है, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को पत्र लिखकर कुछ गुटों द्वारा न्यायपालिका पर दबाव बनाने पर चिंता जताई है।

पत्र में आरोप लगाया गया है कि कुछ गुट सोचे-समझे दबाव, गलत सूचना और सार्वजनिक अपमान के माध्यम से न्यायपालिका को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। ये आलोचक संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित हैं और न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। न्यायपालिका को अनुचित दबावों से बचाने की आवश्यकता है।

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश दीपक वर्मा, कृष्ण मुरारी, दिनेश महेश्वरी और एमआर शाह सहित हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की ओर से सीजेआई को भेजे गए पत्र में न्यायपालिका को कमजोर करने के बढ़ते प्रयासों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि न्यायपालिका को अनुचित दबावों से बचाने की आवश्यकता है।

उनके संज्ञान में आया है कि ये तत्व संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित होकर हमारी न्यायिक प्रणाली में जनता का भरोसा कम करने का प्रयास कर रहे हैं। उनके तरीके कपटपूर्ण हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से दोषारोपण करके न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने का प्रयास किया गया।

इस तरह की कार्रवाइयां न केवल हमारी न्यायपालिका की पवित्रता का अनादर करती हैं, बल्कि न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांत के लिए भी सीधी चुनौती हैं, जिन्हें कानून के संरक्षक के रूप में बनाए रखने की जजों ने शपथ ली है। पूर्व न्यायाधीशों ने क्या कहा?

न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को खराब करने के उद्देश्य से आधारहीन सिद्धांतों के प्रचार से लेकर न्यायिक परिणामों को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए प्रत्यक्ष और गुप्त प्रयास शामिल हैं।

पूर्व न्यायाधीशों ने कहा है कि हम देखते हैं कि यह व्यवहार विशेष रूप से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक महत्व के मामलों में स्पष्ट होता है, जिसमे कुछ व्यक्तियों से जुड़े मामले भी शामिल हैं, जिनमें न्यायिक स्वतंत्रता के नुकसान के लिए वकालत और पैंतरेबाजी के बीच की रेखाएं धुंधली हो जाती हैं।

पत्र में पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि वे लोग विशेष रूप से गलत सूचना की रणनीति व न्यायपालिका के खिलाफ जनता की भावनाओं को भड़काने के बारे में चिंतित हैं। ये चीजें न केवल अनैतिक हैं, बल्कि हमारे लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए भी हानिकारक हैं।

कहा गया है कि किसी के विचारों से मेल खाने वाले फैसलों की चुनिंदा रूप से प्रशंसा करने और जो किसी के विचारों से मेल नहीं खाते उनकी तीखी आलोचना करने की प्रथा न्यायिक समीक्षा और कानून के शासन के सार को कमजोर करती है।