मोदी सरनेम केस में बड़ा फैसलाः राहुल गांधी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, जानें आगे

नई दिल्ली देश
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नई दिल्ली। इस समय की बड़ी खबर ये आ रही है, सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरनेम मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मिली सजा के निलंबन की याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने राहुल गांधी के विरोध में दलीलें दे रहे शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी के वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी से पूछा कि अदालत ने अधिकतम सजा देने के क्या ग्राउंड दिए हैं। कम सजा भी तो दी जा सकती थी। उससे संसदीय क्षेत्र की जनता का अधिकार भी बरकरार रहता।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को सुनाई सजा के फैसले पर रोक लगा दी है। जब तक अपील लंबित रहेगी, तब तक सजा पर रोक बरकरार रहेगी। कोर्ट के इस आदेश के साथ ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी बहाल हो गई है। अब वे संसद सत्र में भी हिस्सा ले सकेंगे। 

वहीं कोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी अब दोपहर तीन बजे पार्टी मुख्यालय पहुंचेंगे। वहीं कांग्रेस ने ट्वीट कर लिखा- यह नफरत के खिलाफ मोहब्बत की जीत है। सत्यमेव जयते- जय हिंद।

सुप्रीम कोर्ट  ने कहा कि राहुल गांधी की टिप्पणी गुड टेस्ट में नहीं थी। उनका बयान ठीक नहीं था। पब्लिक लाइफ में इस पर सतर्क रहना चहिए। वहीं कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने अपने आदेश में यह साफ नहीं किया कि अधिकतम सजा की जरूरत क्यों थी? जज को अधिकतम सजा की वजह साफ करनी चाहिए थी।

ये मामला असंज्ञेय कैटेगरी में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों अदालतों ने बड़े पैमाने पर पन्ने लिखे, लेकिन राहुल गांधी को अधिकतम सजा क्यों दी, इस पहलू पर विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश का आदेश पढ़ने में बहुत दिलचस्प है। उन्होंने इसमें बहुत उपदेश दिया है।

वहीं सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मैं बता दूं कि कई बार कारण न बताने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आलोचना की जाती है, इसीलिए हाई कोर्ट ने विस्तृत कारण बताता है। ऐसी टिप्पणियां थोड़ी हतोत्साहित करने वाली हो सकती हैं। वहीं जस्टिस गवई ने कहा- हम जानते हैं कि टिप्पणियां मनोबल गिराने वाली हो सकती हैं, इसीलिए हम उन्हें लिखने में वक्त लेते हैं, जब तक कि यह बहुत स्पष्ट न हो।

वहीं राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि एसजी केवल एक प्रोफार्मा पार्टी हैं। इस कोर्ट ने उन्हें समय दिया है।

वहीं जेठमलानी ने कहा कि उनका (राहुल गांधी) तर्क है कि बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था। जस्टिस गवाई ने कहा- हम पूछ रहे हैं कि अधिकतम सजा लगाने का कारण क्या था। अगर उन्हें 1 वर्ष 11 माह का समय दिया होता, तो कोई अयोग्यता नहीं होती।