- एबीआरएसएम के संगठन जातीयतावादी अध्यापक व गवेषक संघ की याचिका पर फैसला
पश्चिम बंगाल। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 31 कुलपतियों की नियुक्ति को अवैध ठहराया है। न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के संगठन जातीयतावादी अध्यापक व गवेषक संघ ने इस बारे में कलकत्ता हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी।
मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव एवं न्यायाधीश राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ ने फैसला देते हुए कहा कि यूजीसी विनियम 2018 के अनुसार निर्धारित कुलपतियों की न्यूनतम योग्यता को राज्य सरकार द्वारा अधिनियमित किसी भी नियम से कम नहीं किया जा सकता। इस बारे में यूजीसी के भी विनियम बाध्यकारी हैं।
न्यायालय ने यह भी कहा कि कुलपतियों की नियुक्ति में कुलाधिपति सर्वोच्च अधिकारी होता है। राज्य सरकार उसे दरकिनार नहीं कर सकती है। कोर्ट ने फैसले में यह भी उल्लेख किया कि कुलपति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राज्य को दोबारा नियुक्ति करने या सेवा विस्तार का कोई अधिकार नहीं है।
उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने मनमाने ढंग से कुलपतियों की न्यूनतम योग्यता और नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव कर दिए थे। यूजीसी प्रतिनिधि एवं कुलाधिपति को दरकिनार कर अयोग्य लोगों को लगा दिया गया था। इनमें से कई को नियमविरुद्ध रूप से पुनर्नियुक्ति एवं सेवा विस्तार दिया गया था।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो जे पी सिंघल ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को राज्य सरकार की मनमानी पर संगठन के संघर्ष की जीत बताते हुए उच्च शिक्षा के हित में इसे ऐतिहासिक फैसला बताया है।
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के झारखंड प्रदेश के अध्यक्ष डॉ प्रदीप कुमार सिंह एवं महामंत्री डॉ ब्रजेश कुमार ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया। कहा कि इस ऐतिहासिक फैसले से दूसरे राज्यों में विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में कुलाधिपति जैसे संवैधानिक पद की गरिमा का विशेष ख्याल रखते हुए राज्य की सरकारें सोचने पर मजबूर होंगी।
प्रदेश अध्यक्ष एवं महामंत्री ने बताया कि इस ऐतिहासिक फैसले से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा निर्देशों का उल्लंघन भी नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इस फैसले को अपने संगठन का जीत बताया है।