कृषि वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक खेती पर अधिक शोध की दिया बल

झारखंड कृषि
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  • प्राकृतिक खेती में तकनीकी प्रबंधन पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण का समापन 

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के निदेशालय प्रसार शिक्षा द्वारा 24 जिलों के कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) के वैज्ञानिकों के लिए आयोजित प्राकृतिक खेती में तकनीकी प्रबंधन विषयक तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन संपन्न हुआ। मौके पर निदेशक प्रसार शिक्षा की अध्यक्षता में इंटरफेस चर्चा का आयोजन किया गया। इसमें शामिल प्रतिभागी 45 केवीके वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक खेती के अनुपालन में स्थानीय उपयुक्त एवं वर्त्तमान मांग आधारित तकनीकी संसोधन के समावेश पर बल दिया। वैज्ञानिकों ने परंपरागत जैविक खेती/ आधुनिक जैविक खेती के स्थान पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में अधिकाधिक अनुसंधान एवं फसल प्रदर्शन का डाटा बैंक तैयार करने की आवश्यकता बताई।

डीन वानिकी डॉ एमएस मल्लिक ने सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए। उन्होंने नाहेप-कास्ट परियोजना के तहत प्राकृतिक खेती पर परियोजना सौपने और डाटा बैंक तैयार करने का प्रस्ताव दिया। प्राकृतिक खेती विशेषज्ञ डॉ अरबिंद कुमार एवं डॉ सीएस सिंह ने झारखंंड में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं पर अपने विचारों को रखा।

कार्यक्रम समन्यवयक एवं केवीके चतरा के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ रंजय कुमार सिंह ने बताया कि आईसीएआर, नई दिल्ली एवं आईसीएआर-अटारी पटना के सौजन्य से झारखंड के 9 जिलों में किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए परियोजना का कार्यान्वयन किया जा रहा है। इसके तहत कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से जिलों के प्रगतिशील एवं अन्य किसानों के लिए जागरुकता अभियान, प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण का आयोजन होगा।

डॉ सिंह ने बताया कि राज्य में नामकुम स्थित हार्प पलांडू संस्थान तथा आरके मिशन स्थित केवीके में प्राकृतिक खेती पर शोध कार्य शुरू हो चुका है। केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसे देखते हुए कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह के निर्देश पर राज्य में कार्यरत सभी 24 कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों को जागरूक एवं क्षमतावर्धन के लिए इस प्रशिक्षण का आयोजन किया गया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्रों के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान, वैज्ञानिक (उद्यान, शस्य, मृदा विज्ञान, कृषि अभियंत्रण, कृषि प्रसार) तथा विभिन्न कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों सहित कुल 45 प्रतिभागियों ने भाग लिया।