विनी महाजन
भारत ने 2014 में अपनी अभूतपूर्व स्वच्छता यात्रा शुरू की, क्योंकि खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) राष्ट्र बनाने के लिए सुसंगत और ठोस प्रयास शुरू किए गए। दुनिया में सबसे बड़े व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम के रूप में माना जाने वाले स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) ने प्रत्येक भारतीय गांव को एक बड़ी उपलब्धि हासिल करने के लिए प्रेरित किया। महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती यानी 2 अक्टूबर, 2019 तक प्रत्येक ग्राम पंचायत ने श्रद्धांजलि के रूप में सभी के लिए शौचालय-सुविधा के साथ खुद को ओडीएफ घोषित किया।
इसका प्रभाव सकारात्मक स्वास्थ्य परिणामों, आर्थिक और सामाजिक लाभों तथा महिलाओं के सशक्तिकरण के संदर्भ में दिखाई पड़ता है, जिनके माध्यम से बेहतर जीवन स्तर, महिलाओं के लिए आजीविका के अवसरों में वृद्धि और स्कूल में लड़कियों की बेहतर उपस्थिति का मार्ग प्रशस्त हुआ है। स्वतंत्र अध्ययनों से पता चलता है कि ओडीएफ क्षेत्रों में डायरिया रोग से पीड़ित बच्चों की संख्या काफी कम थी। गैर-ओडीएफ क्षेत्रों की तुलना में ओडीएफ क्षेत्रों के बच्चों में पोषण की स्थिति भी बेहतर थी।
इस वर्ष हम एसबीएम के 8 वर्ष पूरे कर रहे हैं तो प्रश्न उठता है कि ग्रामीण भारत में स्वच्छता आंदोलन के लिए आगे की योजना क्या है? प्रधानमंत्री ने 2019 में ही स्पष्ट कर दिया था कि हम केवल अपनी प्रशंसा पर खुश नहीं हो सकते। हमें, एक देश के रूप में, मानव विकास के हर क्षेत्र में हमेशा सर्वश्रेष्ठ और अग्रणी बनने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए, ओडीएफ की उपलब्धि के बाद भारत सरकार ने ओडीएफ प्लस की यात्रा शुरू की, यानी ओडीएफ स्थिति को बनाए रखना, यह सुनिश्चित करना कि कोई पीछे न छूट गया हो और ठोस व तरल कचरे के प्रबंधन की एक पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली स्थापित करना। स्वस्थ व्यवहार को लेकर एक बड़ा कदम उठाते हुए, हम अब ‘संपूर्ण स्वच्छता’ के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
ओडीएफ प्लस क्या है? यह गांवों की ओडीएफ स्थिति को बनाए रखने और इससे पैदा हुए ठोस व तरल कचरे के प्रबंधन के बारे में है। मुख्य रूप से तीन घटक हैं अर्थात ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम), हितधारकों का क्षमता-निर्माण और सभी के लिए व्यवहार परिवर्तन संबंधी संचार। 2020 की शुरुआत में शुरू किए गए एसबीएम (जी) चरण II का प्रमुख लक्ष्य ‘ओडीएफ प्लस’ का दर्जा हासिल करना है। पिछले 2.5 वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, क्योंकि 1.14 लाख से अधिक गांवों ने अलग-अलग स्तरों पर खुद को ओडीएफ प्लस घोषित किया है। ओडीएफ प्लस बनने की अपनी यात्रा शुरू करने के क्रम में लगभग 3 लाख गांवों ने एसएलडब्ल्यूएम कार्य शुरू किए हैं।
शौचालय निर्माण और उनके उपयोग से अलग, एसबीएम (जी) चरण II राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की एसएलडब्ल्यूएम से जुड़ी परिसंपत्तियों के निर्माण में सहायता कर रहा है, जैसे सामुदायिक खाद गड्ढे का निर्माण, सामुदायिक बायो-गैस संयंत्र, प्लास्टिक अपशिष्ट संग्रह और छंटाई स्थान, गंदले पानी की सफाई के लिए जल सोखने वाले गड्ढे और इसका पुन: उपयोग, अपशिष्ट संग्रह और परिवहन वाहनों सहित मल प्रबंधन प्रणाली। अब तक, 77,141 गांवों और 90 ब्लॉकों ने 71 प्लास्टिक कचरा प्रबंधन इकाइयों का निर्माण किया है। एक विशेष अभियान – सुजलम, को गंदले पानी के प्रबंधन के लिए लागू किया गया और पूरे ग्रामीण भारत में 22 लाख से अधिक जल सोखने वाले गड्ढों (सामुदायिक और घरेलू गड्ढे) का निर्माण किया गया।
मल अपशिष्ट के प्रबंधन में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, सीवरों और सेप्टिक टैंकों की हाथ से सफाई। इस दिशा में, एसबीएम-जी ने आवश्यक तकनीकी तरीकों का पता लगाया है और वर्तमान में 137 जिलों में 368 मल अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्थाएं स्थापित की गई हैं। इसके अलावा, हमने ग्रामीण क्षेत्रों में मशीन आधारित मल अपशिष्ट प्रबंधन और एसएलडब्ल्यूएम के अन्य पहलुओं में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए, स्टार्ट-अप को शामिल करने से जुड़े दायरे का विस्तार किया। लोगों से संसाधन जुटाने (क्राउड-सोर्सिंग) पर आधारित प्रौद्योगिकियों के लिए एक स्टार्ट-अप ग्रैंड चैलेंज का आयोजन किया गया, जो ग्रामीण क्षेत्रों की एसएलडब्ल्यूएम चुनौतियों के लिए स्थायी, किफायती, हासिल करने योग्य और उत्तरदायी समाधान प्रस्तुत कर सकता है।
पशु अपशिष्ट के प्रबंधन की एक महत्वपूर्ण चुनौती का समाधान ‘कचरे से कंचन’ पहल के माध्यम से किया जा रहा है- गोवर्धन (जैविक जैव-कृषि संसाधनों से निर्माण)। इस योजना का उद्देश्य गांवों में पैदा होने वाले पशु अपशिष्ट और जैविक रूप से अपघटित होने वाले कचरे का उपयोग बायो-गैस/सीबीजी के साथ-साथ जैव-गाद/जैव-उर्वरक के उत्पादन के लिए करना है, जिससे न केवल ग्रामीण भारत में आय सृजन के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि इनसे जुड़ी वस्तुओं के आयात पर हमारी निर्भरता भी कम होगी!
गांवों को ओडीएफ प्लस बनाने के लिए इन परिसंपत्तियों (एसएलडब्ल्यूएम के तहत) का निर्माण किया जा रहा है तथा इन्हें संचालन योग्य बनाया जा रहा है। ये परिसंपत्तियों न केवल स्वच्छता सुनिश्चित कर रही हैं, बल्कि आय पैदा कर रही हैं, इसमें शामिल लोगों विशेष रूप से महिलाओं (व्यक्तिगत और स्वयं सहायता समूह) को सशक्त बना रहीं हैं, कृषि कचरे के उत्पादक उपयोग से प्रदूषण को कम कर रहीं हैं, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार कर रही हैं और जलवायु में सुधार करते हुए भूजल-स्तर को बढ़ाने में योगदान दे रहीं हैं। मनरेगा के तहत उपलब्ध धनराशि, 15वें वित्त आयोग से जुड़े जल और स्वच्छता अनुदान (5 वर्षों के लिए 1,40,000 करोड़ रुपये) के साथ-साथ एसबीएम (जी) निधियों को ग्रामीण क्षेत्रों में संयोजित करके अच्छे परिणाम के लिए इनका उपयोग किया जा रहा है।
ग्रामीण स्वच्छता के प्रयासों में तेजी लाने की दिशा में व्यवहार परिवर्तन और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए, 2014 से प्रत्येक वर्ष 15 सितंबर से 2 अक्टूबर तक स्वच्छता ही सेवा (एसएचएस) कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है, जो पूरे देश में एक समर्पित भागीदारी स्वच्छता अभियान है। इस वर्ष, गांवों के प्राकृतिक परिदृश्य को साफ़-सुथरा बनाने और पुराने कचरे की सफाई में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। लोगों की भागीदारी में अत्यधिक उत्साह देखा गया है और एसएचएस की विभिन्न गतिविधियों में 9 करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लिया है।
प्रयासों को मान्य बनाने और प्रतिस्पर्धी संघवाद में राज्यों को शामिल करने के लिए, प्रतिवर्ष स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण (एसएसजी) का आयोजन किया जाता है। एक स्वतंत्र सर्वेक्षण एजेंसी, संख्या और गुण आधारित ओडीएफ प्लस मानदंडों के अनुसार भारत के सभी राज्यों और जिलों का मूल्यांकन करती है और इनकी श्रेणी निर्धारित करती है।
ओडीएफ प्लस के मानदंड हैं – स्वच्छता सार्वजनिक स्थानों का प्रत्यक्ष अवलोकन, मोबाइल ऐप के जरिये नागरिकों की प्रतिक्रिया, ग्राम स्तर पर प्रभावशाली व्यक्तियों से संग्रहित की गई फीडबैक और स्वच्छता मानदंडों पर सेवा स्तर की प्रगति। यह एसएसजी 2022 का तीसरा दौर है और इसकी रिपोर्ट 2 अक्टूबर 2022 को आयोजित होने वाले स्वच्छ भारत दिवस (एसबीडी) कार्यक्रम में जारी की जाएगी एवं इसके विजेताओं का सम्मान भी किया जायेगा।
ओडीएफ प्लस इंडिया का उद्देश्य कठिन प्रतीत होता है तथा स्वच्छता एवं स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना हमेशा एक सतत गतिविधि बनी रहेगी। लेकिन, यदि इसे एक सामूहिक राष्ट्रीय जिम्मेदारी के रूप में लिया जाता है, तो भारत संपूर्ण स्वच्छता के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है। ओडीएफ-प्लस का दर्जा प्राप्त करने और इसे बनाए रखने के लिए आइए इस ‘जन-आंदोलन’ को अब फिर से सशक्त व लोकप्रिय बनायें।
(लेखक भारत सरकार के पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय की सचिव है।)