बीएयू के यूजी और पीजी विद्यार्थियों से रू-ब-रू हुई आईसीएआर रिव्यू टीम

झारखंड शिक्षा
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रांची। एक्रीडिटेशन के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय का निरीक्षण करने आयी आईसीएआर की पीयर रिव्यू टीम ने बीएयू में छात्रों की तुलना में छात्राओं की संख्या अधिक होने पर खुशी जाहिर की है। कहा कि देश तभी बढ़ेगा, जब महिलाएं भी विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ेंगी। पिछले कई वर्षों से विश्वविद्यालय के 11 कॉलेजों में स्वीकृत सीटों पर 30% छात्रों और 70% छात्राओं का चयन एवं नामांकन हो रहा है।

शनिवार को रांची कृषि महाविद्यालय प्रेक्षागृह में दो सत्रों में बीएयू के सभी संकायों के स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं से संवाद की गई। इसमें पीआरटी के अध्यक्ष और गुजरात स्थित नवसारी और जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एआर पाठक ने कहा कि कि कोई भी उच्च शिक्षण संस्थान वहां की बिल्डिंग, प्रयोगशाला, शोध पत्रों की संख्या और ढांचागत सुविधाओं के लिए नहीं जाना जाता। यह उन विद्यार्थियों से जाना जाता है, जो वहां से डिग्री लेकर निकलने के बाद देश दुनिया के अग्रणी उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के लिए जाते हैं या उच्च पदों पर नौकरी के लिए चयनित होते हैं। छात्र-छात्राएं ही किसी भी विश्वविद्यालय या शोध संस्थान के ब्रांड एंबेसडर हैं।

डॉ पाठक ने कहा कि कृषि और संबद्ध पाठ्यक्रमों में डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थी आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, बैंकिंग सेवा, विकास विभागों की सेवा और व्यवसाय प्रबंधन में भी काफी संख्या में आ रहे हैं। विभिन्न सेवाओं में अच्छे प्रदर्शन के लिए व्यक्तित्व विकास के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, सेमिनार और कार्यशाला, खेलकूद तथा अन्य पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेना आवश्यक है। बीएयू के विद्यार्थी भी डायवर्सिफाइड फील्ड में जाएं, इसके लिए यहां परामर्श और कोचिंग केन्द्र को दुरुस्त किया जाना चाहिए। आईसीएआर इसके लिए आवश्यक सुविधाएं मुहैया कराएगा।

डॉ पाठक ने प्रेक्षागृह में बिना शिक्षकों और विश्वविद्यालय पदाधिकारियों की उपस्थिति में छात्र-छात्राओं से सीधा संवाद किया। पूछा कि शिक्षा में स्तर में सुधार, खेलकूद और पाठ्येतर गतिविधियों के विस्तार, स्नातकोत्तर शोध, छात्रावासों में प्रवास और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए वे किन कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। अपेक्षित सुधार के लिए किन अतिरिक्त सुविधाओं की आवश्यकता है?

छात्र-छात्राओं ने शिक्षकों की कमी के बावजूद शिक्षण स्तर की काफी प्रशंसा की। लाइब्रेरी में पुस्तकों के नवीनतम संस्करण की उपलब्धता, समय पर स्कॉलरशिप, इंटर्नशिप और फैलोशिप राशि के वितरण, परीक्षा के बाद 15 दिनों में सेमेस्टर परीक्षा का परिणाम घोषित करने, लाइब्रेरी का समय छात्राओं के लिए भी रात्रि 10 बजे तक करने, उद्यमिता विकास के लिए विद्यार्थियों को समूह में बांटकर नये उद्यम के लिए कुछ राशि उपलब्ध कराने, कोरोना काल में ऑनलाइन संपन्न व्यावहारिक कक्षाएं ऑफलाइन पुनः कराने और कक्षा में विजुअल्स का प्रयोग बढ़ाने की जरूरत बताई।

टीम के सदस्य और आईसीएआर के अवकाशप्राप्त सहायक महानिदेशक (उद्यान) डॉ डब्ल्यू एस ढिल्लन ने कहा कि पिछले 25 वर्षों से पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से व्याख्यान देने का प्रचलन बढ़ा है। हालांकि वैश्विक स्तर पर हुए अध्ययन में यह पाया गया है की पीपीटी क्लासेस ब्लैक बोर्ड क्लास की तुलना में कम प्रभावी हैं, क्योंकि इस पद्धति में विद्यार्थियों को देखने, सुनने और लिखने का तीनों काम एक साथ करना पड़ता है। वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि क्लास रूम में अधिकांश समय तक इनमें से दो ही सेंस प्रभावी रहता है। इसलिए क्लास में 60% शिक्षण ब्लैक बोर्ड के माध्यम से, 10-20% डिक्टेशन से तथा शेष विजुअल के माध्यम से होना चाहिए। 

डॉ ढिल्लन ने सलाह दी कि मास्टर डिग्री के विद्यार्थियों को दुनिया के अग्रणी देशों के विश्वविद्यालयों के पीएचडी पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए तैयारी करनी चाहिए। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाले 60 से 70% विद्यार्थी पीएचडी के लिए दूसरे देशों में जाते हैं। उन्होंने छात्र-छात्राओं से  होम सिकनेस की मानसिकता त्यागने की अपील की। कहा कि अन्य विकसित देशों से उचित डिग्री प्राप्त कर, कुछ समय वहां शोध या शिक्षण में लगाकर पुनः अपने वतन लौटकर उस एक्सपोजर का बेहतर इस्तेमाल यहां के संस्थानों और देश की सेवा में कर सकते हैं।

रिव्यू टीम शुक्रवार को निरीक्षण और आकलन के लिए रवीन्द्र नाथ टैगोर कृषि महाविद्यालय, देवघर, तिलका मांझी कृषि महाविद्यालय, गोड्डा, फूलो झानो मुर्मू डेयरी प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, दुमका और मात्स्यिकी विज्ञान महाविद्यालय, गुमला गयी थी।