आनंद कुमार सोनी
लोहरदगा। आपने रंग-गुलाल और लठमार होली के बारे में सुना होगा। हालांकि ढेला मार होली के बारे में शायद ही सुना होगा। जी हां, ढेला मार होली। झारखंड में ढेला मार होली की अनोखी प्रथा है। राज्य के लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के बरही में ढेला मार होली खेली जाती है। यह अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसे देखने के लिए राज्य के बाहर से भी लोग पहुंचते हैं।
ग्रामीणों के मुताबिक बरही में ढेलामार होली खेलने की परंपरा वर्षों से है। इसे देखने के लिए राज्य के विभिन्न जगहों से लोग पहुंचते है। गांव के देवी मंडप के पास हजारों की संख्या में लोग जमा होते है। यहां सेमर का खूटा गाड़ा जाता है। उस खूटे को उखाड़ने के लिए गांव के ही हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग 200 मीटर की दूरी से दौड़ लगाते हैं।

इस दौरान गांव के सैकड़ों लोग उन पर पत्थर (ढेला) से वार करते हैं। हालांकि खूंटा उखाड़ने जाने वालों पर इसका कोई असर नहीं होता। खुट्टा उखाड़ने वाले लोगों का कहना है कि ढेला से जो मारा जाता है, वह मानो फूलो की वर्षा की भांति महसूस होता है। माना जाता है कि यह असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक है।
बरही गांव के रामलखन साहू के अनुसार यहां वर्षों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। पत्थर मारने के बाद भी जो बिना डरे खंभे को उखाड़ कर देवी मंडप के पीछे फेंकता है, उसे सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्त होता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार ढेला मार होली को दूसरे गांव से आये लोग सिर्फ देख सकते हैं। वे इसमें हिस्सा नहीं ले सकते हैं। उसके इसमें शामिल होने पर उनके साथ कुछ अनहोनी हो सकती है। बताते चले कि बरही चटकपुर गांव का दामाद होना भी लोगों के लिए गर्व की बात है। यहां होली मिलन सह नया दामाद स्वागत समारोह मनाया गया।
समारोह में मुख्य अतिथि जिला परिषद सदस्य रामलखन प्रसाद, अजय पंकज, रितेश कुमार साहू, मनोज साहू, पंचायत के मुखिया समेत भारी संख्या में महिला पुरुष मौजूद थे। होली मिलन के साथ-साथ गांव के लगभग एक दर्जन से ज्यादा नए दामाद को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।