राज्य वेरायटी रिलीज कमेटी ने 9 फसलों की 16 उन्नत किस्में की जारी, ये है खूबी

कृषि झारखंड मुख्य समाचार
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रांची। राज्य वेरायटी रिलीज कमेटी ने झारखंड के लिए उपयुक्त और विभिन्न कृषि शोध संस्थानों द्वारा विकसित अनाज, दलहन, तिलहन और बागवानी की नौ फसलों की 16 उन्नत किस्में जारी कि‍या। इनमें चावल की 7, मिर्च की दो और टमाटर, लीची, बेल, तीसी, सोयाबीन, मटर और बैगन की एक-एक किस्में शामिल हैं। उच्च उत्पादन क्षमता से युक्त, शीघ्र परिपक्व होनेवाली, शुष्क भूमि परिस्थितियों के लिए उपयुक्त ये किस्में प्रमुख रोगों और कीड़ों के प्रति सहिष्णु हैं।

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ ए वदूद ने बताया कि बृहस्पतिवार की शाम कृषि सचिव अबूबकर सिद्दीख पी की अध्यक्षता में कमेटी की बैठक हुई। इसमें रिलीज प्रस्तावों का अनुमोदन किया गया। व्यावसायिक उत्पादन की अधिसूचना के लिए इन्हें अब भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की केंद्रीय बीज उप समिति को भेजा जाएगा। बैठक में बीएयू के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह, कृषि निदेशक निशा उरांव, पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र संबंधी कृषि पद्धति अनुसंधान केंद्र, प्लांडू रांची के प्रधान डॉ अरुण कुमार सिंह, समेति‍, झारखंड के निदेशक सुभाष सिंह और विभिन्न फसलों का विकास करने वाले प्रजनक भी उपस्थित थे।

इन 16 प्रभेदों में से 4 बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए हैं। मुख्य वैज्ञानिक डॉ सोहन राम द्वारा विकसित बिरसा तीसी-2 की उत्पादन क्षमता 19.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, तेल की मात्रा 36.75 प्रतिशत तथा परिपक्वता अवधि 128 से 130 दिन है। तीसी की यह किस्म नेशनल चेक- 397 से 10.64% सुपीरियर है।

डॉ नूतन वर्मा द्वारा विकसित बिरसा सोयाबीन-4 प्रभेद की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और परिपक्वता अवधि 110 दिन है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 40.30% और तेल की मात्रा 17.55 प्रतिशत है। डॉ सीएस महतो द्वारा विकसित प्रभेद बिरसा मटर-1 की उत्पादन क्षमता 13-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और परिपक्वता अवधि 112 से 116 दिन है। डॉ अब्दुल माजिद अंसारी द्वारा क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, चियांकी, पलामू में विकसित बिरसा चियांकी बैगन-3 की उत्पादन क्षमता 350 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा यह मध्यम परिपक्वता अवधि समूह में आता है।

चावल के चार उन्नत प्रभेद सीआर धान-103, सीआर धान-107 (उन्नत वंदना), सीआर धान-415 तथा सीआर धान- 804 हजारीबाग स्थित केंद्रीय वर्षाश्रित उपराऊं भूमि चावल अनुसंधान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एनपी मंडल द्वारा विकसित किये गये। चावल के अन्य तीन प्रभेद स्वर्ण सुख धान, स्वर्ण पूर्वी धान-1 और स्वर्ण पूर्वी धान-2 आईसीएआर के पूर्वी क्षेत्रीय अनुसंधान परिसर, पटना के वरीय वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार के प्रयास से विकसित हुए।

मिर्च के दो प्रभेद स्वर्ण आरोही एवं स्वर्ण अपूर्वा पलांडु, रांची स्थित पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र संबंधी कृषि पद्धति अनुसंधान केंद्र के प्रधान डॉ एके सिंह द्वारा विकसित हैं।  इनकी उपज क्षमता 20 टन प्रति हेक्टेयर है तथा ये दोनों प्रभेद सालों भर खेती के लिए उपयुक्त हैं। बेल के प्रभेद स्वर्ण वसुधा का विकास पलांडू शोध केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ बिकास दास ने किया है। इसकी उत्पादन क्षमता प्रति पेड़ 4550 किलो और एक फल का औसत वजन 1.2 से 1.8 किलो है। इसमें गूदे की मात्रा 82 प्रतिशत है।

डॉ बिकास दास द्वारा ही विकसित लीची प्रभेद स्वर्ण मधु की उत्पादन क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा यह बिहार की तुलना में 15-20 दिन पूर्व ही परिपक्व हो जाता है। इसमें जूस की मात्रा 45.50% तथा पल्प की मात्रा 74.95% है। एक फल का वजन 21.40 ग्राम है। पलांडु केन्द्र की ही डॉ भावना पटनायकुनी द्वारा विकसित टमाटर प्रभेद स्वर्ण प्रकाश की उत्पादन क्षमता 45-50 टन प्रति हेक्टेयर है।