दशकों बाद वेटनरी कॉलेज में फिर स्‍थापित होगा एफएमडी शोध परियोजना केंद्र

झारखंड
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  • बीएयू कुलपति की पहल पर आईसीएआर से केंद्र संचालित करने की स्वीकृति मिली 

रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय अधीन संचालित पशु चिकित्सा संकाय के पशु रोग विभाग में फूट एंड माउथ डिजीज (एफएमडी) शोध परियोजना केंद्र स्थापित होगी। नई दिल्‍ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। एफएमडी (मुंहपका-खुरपका) पशुओं में पाया जाने वाला अत्यन्त संक्रामक एवं घातक विषाणु जनित रोग है, जो झारखंड में पशुओं में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। 

कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने इस सबंध में प्रस्ताव अगस्त, 2021 में आईसीएआर को भेजा था। इसमें झारखंड में एफएमडी की आपदा को देखते हुए वेटनरी कॉलेज में पुनः शोध परियोजना केंद्र की स्थापना की स्वीकृति देने को कहा था। विश्वविद्यालय को आईसीएआर के उपमहानिदेशक (पशुपालन) से एफएमडी शोध परियोजना केंद्र संचालित करने की स्वीकृति का आदेश मिल गया है।

बताते चले कि इस क्षेत्र में इस रोग की व्यापकता को देखते हुए वर्ष, 1970 से वेटनरी कॉलेज में परियोजना केंद्र कार्यरत थी। कालांतर में इस परियोजना को बिहार वेटनरी कॉलेज, पटना को स्थानांतरित कर दिया गया। कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह की पहल एवं प्रयासों से करीब चार दशक बाद कांके स्थित वेटनरी कॉलेज में पुनः इस रोग पर शोध कार्य हो सकेगा। पशुओं के मुंहपका खुरपका रोग  (एफएमडी) की रोकथाम को गति दी जा सकेगी।

आईसीएआर से वित्त संपोषित अखिल भारतीय समन्वित एफएमडी शोध परियोजना के तहत यह केंद्र संचालित होगी। यह झारखंड सरकार के पशुपालन विभाग के सहयोग से काम करेगा। वेटनरी संकाय के पशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ एमके गुप्ता केंद्र के प्रधान अन्वेंषक (पीआई) होंगे। इसके अलावा परियोजना में दो सह प्रधान अन्वेंषक होंगे, जिनमें से एक राज्य सरकार से नामित होंगे।

डॉ एमके गुप्ता ने बताया कि इस शोध परियोजना के शुरू होने से एफएमडी पर गहन शोध, सर्वेक्षण, जागरूकता, प्रसार-प्रचार, बचाव एवं वैक्सीन निर्माण की दिशा में कार्य किया जा सकेगा। इसके शुरू होने से केंद्र में इस रोग से संक्रमित पशुओं के सैंपल की जांच संभव हो सकेगी। अब तक इस रोग से सबंधित सैंपल जांच के लिए भुवनेश्वर या बैंगलोर भेजा जाता था।

डॉ गुप्ता ने कहा कि यह रोग गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूकर आदि पालतू पशुओं एवं हिरन आदि जंगली पशुओं को होता है। यह रोग कभी भी फैल सकता है। हालांकि इस रोग से मौत नहीं होती। हालांकि दुधारू पशु सूख जाते हैं।

पशुपालकों को काफी आर्थिक नुकसान होता है। इस रोग का कोई इलाज नहीं है। पशुओं का नियमित अंतराल पर समय पर टीकाकरण ही इस रोग से बचाव का एकमात्र विकल्प है।