नई दिल्ली। 6 दिसंबर यानी आज डॉ. बीआर अंबेडकर का महापरिनिर्वाण दिवस है। बाबासाहेब अम्बेडकर को ज्यादातर भारत के संविधान के लिए मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में उनके अद्वितीय योगदान के लिए याद किया जाता है। गरीबों और मजदूरों के लिए बाबा साहब जीवन भर संघर्ष करते रहे।
वर्ष 1942 में ब्रिटिश शासक देश के गरीबों और मजदूरों से 12 घंटे तक मजदूरी करवाते थे, लिहाजा उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के समक्ष इस अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया। आज आठ घंटे काम का अधिकार जो हमें मिला है, वह बाबा साहब की ही देन है। निश्चित रूप से बाबा साहब संघर्ष और समरसता की प्रतिमूर्ति थे। बाबा साहब ने कहा था कि सबको साथ लिए बिना हम भारत के उत्थान की कल्पना नहीं कर सकते।लेकिन कभी-कभी महापुरुषों के साथ एक अन्याय हम यह करते हैं कि उन्हें एक छोटे दायरे में बांधने का प्रयास करते हैं।
महापुरुष कभी भी किसी एक जाति और समाज के नहीं हो सकते, महापुरुष सबके लिए होते हैं, सबके होते हैं। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का मूल नाम भीमराव था। उनके पिताश्री रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में ही मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। अपनी सेवा के अंतिम वर्ष उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी भीमाबाई ने काली पलटन स्थित जन्मस्थली स्मारक की जगह पर विद्यमान एक बैरेक में गुजारे।
सन् 1891 में 14 अप्रैल के दिन जब रामजी सूबेदार अपनी ड्यूटी पर थे, 12 बजे यहीं भीमराव का जन्म हुआ। कबीर पंथी पिता और धर्मर्मपरायण माता की गोद में बालक का आरंभिक काल अनुशासित रहा। बालक भीमराव का प्राथमिक शिक्षण दापोली और सतारा में हुआ। बंबई के एलफिन्स्टोन स्कूल से वह 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर भीमराव ने 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। संस्कृत पढ़ने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये।
मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नासिक सत्याग्रह (वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन चलाये।
बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।