नयी दिल्ली। ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) के कला संस्कृति प्रकोष्ठ ने कहानीकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर ‘अभिव्यक्ति’ का आयोजन किया। वर्चुअल मोड में आयोजित इस कार्यक्रम में कायस्थ समाज के देशभर के लोग शामिल हुए। मुंशी प्रेमचंद के व्यक्तित्व एवं साहित्य पर प्रकाश डाला। प्रकोष्ठ के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और कार्यक्रम के संयोजक प्रेम कुमार ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू साहित्य के क्षेत्र के महान लेखकों में एक माना जाता है। हिन्दी साहित्य को नए आयाम देने और नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की सभी कालजयी रचनाएं समाज की सच्ची तस्वीरें हैं। यह आज भी जीवंत हैं और कभी धुंधली नहीं हो सकतीं।
जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि उनकी लिखी कहानियां आज भी प्रासंगिक है। प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। हिंदी साहित्य की दुनिया में यथार्थवाद को पेश करने का श्रेय उनको ही दिया जाता है। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है, जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की विभिन्न विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया। उनकी साहित्यिक विरासत को अगली पीढ़ी तक ले जाने की जिम्मेदारी युवा साहित्यकारों की है।
पवन सक्सेना ने कहा कि तप कर ही सोना कुंदन बनता है, यह कहावत मुंशी प्रेमचन्द्र पर सटीक बैठती है। साधारण परिवार से आने वाले प्रेमचंद ने अपने व्यक्तिगत संघर्ष, मानवीय संवेदनाओं को शब्दों में कुछ यूं पिरोया कि दुनियां उनकी मुरीद हो गई। मुंशी प्रेमचन्द्र का साहित्य एक ऐसा आइना है, जिसमे ना सिर्फ हमारे समाज का अतीत और वर्तमान दिखता है, बल्कि भविष्य के संकेत भी समाहित नजर आते हैं।
कवि आलोक अविरल ने कहा कि कायस्थ समाज के लोग साहित्य, संगीत और कला की पूजा करते हैं। इसलिए सभी को कलम के सच्चे सिपाही मुंशी प्रेमचंद की तस्वीर अपने घरों में रखनी चाहिए। अपने बच्चों को उनके साहित्य से अवगत कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के तमाम वीडियो और ऑडियो फाइल्स यूट्यूब और वेब पर उपलब्ध हैं, जिन्हें बच्चे आसानी से देख भी सकते हैं।
श्वेता सुमन ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कालजेयी रचनायें आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है। उन्होंने उत्कृष्ट साहित्य के माध्यम से बौद्धिक चेतना का विकास किया और पाठक तैयार किये। आज हमारा यहदायित्व है कि हम उसे संजोए और नई पीढ़ी तक पहुंचाए। मुंशी प्रेमचंद की सहज-सुगम लेखनी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी अपने रचनाकाल में थी। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में नवीन मूल्यों की स्थापना की।
भोपाल से मनीष श्रीवास्तव बादल, मुंबई से आलोक अविरल, इलाहाबाद से श्रीमती शीला गौड़, पटना से श्रीमती शिवानी गौड़, श्रीमती सुभाषिणी स्वरूप, प्रदीप कुमार, नीरव समदर्शी, डॉ श्वेता, श्रीमती नीना मंदिलवार, बोकारो से श्रीमती गीता कुमारी, पटना से श्रीमती निशा पराशर, श्रीमती रश्मि सिन्हा और श्रीमती ऋचा वर्मा ने भी अपने विचार रखें।
कार्यक्रम को प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय महासचिव पवन सक्सेना और राष्ट्रीय सचिव श्रीमती श्वेता सुमन ने होस्ट किया। संचालन में डिजिटल-तकनीकी प्रकोष्ठ के ग्लोबल अध्यक्ष आनंद सिन्हा किया। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और कवि आलोक अविरल ने धन्यवाद किया।