राममंदिर निर्माण के लिए मिली जनता की गाढ़ी कमाई का हो रहा बंदरबाट : आभा

झारखंड
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रांची। जमीन की रजिस्ट्री होने भर से कोई इसका मालिक नहीं हो जाता है। रामजन्मभूमि के लिए जिस जमीन पर विवाद चल रहा है, उसमें ट्रस्ट वालों द्वारा किये गये बड़े घोटाले के संकेत मिल रहे हैं कि इतनी जल्दबाजी क्यों की गयी है। इसकी जांच कर इसका खुलासा होनी चाहिए, ताकि जनता अपनी गाढ़ी-कमाई के उचित उपयोग को जान सके। उक्त बातें झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता आभा सिन्हा ने कही है।

श्रीमती सिन्हा ने कहा कि देश की जनता ने अपनी गाढ़ी-कमाई पूंजी को राममन्दिर निर्माण के लिए लगाया है, जिसे भाजपा लोगों द्वारा बंदरबांट किया जा रहा है। इसे कांग्रेस पार्टी कभी बर्दाश्त नहीं करेगी। जब कोई भी जमीन की रजिस्ट्री कराता है, तब कानूनी प्रक्रिया सरकारी रिकॉर्ड में जमीन के मालिक का बदलना होता है। इसके लिए सरकारी पंजी में बदलाव कर यह दर्शाया जाता है कि फलां जमीन उस व्यक्ति से रजिस्ट्री के माध्यम से दूसरे व्यक्ति को बेची गयी है। इसके बाद रसीद निर्गत की जाती है, जिसे कई राज्यों में करेक्शन स्लिप कहते हैं। उसके बाद जमीन के लगान का भुगतान होने के बाद जब वह रसीद निर्गत हो जाती है। तभी रजिस्ट्री कराने वाला जमीन का मालिक कहलाता है।

प्रवक्‍ता ने कहा कि जमीन खरीद का यही प्रचलित नियम है। इसे सभी लोग अच्छी तरह जानते भी हैं। इस ट्रस्ट की कार्रवाई में भाजपा के लोगों द्वारा भ्रष्टाचार का बढ़ावा देने का काम किया गया है, जिससे चंद मिनटों में जमीन की रजिस्ट्री करायी गयी थी। भाजपा के लोगों को यह जानना चाहिए कि मात्र चंद मिनटों में सरकारी दस्तावेजों में परिवर्तन कर कोई जमीन का मालिक नहीं बन सकता।

श्रीमती सिन्‍हा ने कहा कि जमीन खरीद की रजिस्ट्री के बाद इस प्रक्रिया को काफी त्वरित गति से भी अगर पूरा किया जाए तो इसमें कानूनन कम से कम एक महीने का समय लगता है, क्योंकि इसके लिए विधिवत नोटिस जारी कर एक महीने का समय दिया जाता है ताकि किसी को अगर इस पर कोई आपत्ति हो तो वह दर्ज करे। अगर कहीं से आपत्ति दर्ज हो गयी तो ऊपर के अधिकारी उस आपत्ति पर सुनवाई कर अपना फैसला देते हैं।

ट्रस्ट द्वारा जिन लोगों को पैसा दिया गया, वे जमीन के मालिक ही नहीं थे तो उन्हें इतनी बड़ी रकम का भुगतान क्यों किया गया, यह जांच का विषय है। इससे स्पष्ट होता है कि ट्रस्ट द्वारा एक बड़े घोटाले को अंजाम देने की साजिश की गयी थी, जो नाकाम हो गया। प्रवक्‍ता ने कहा कि महज चंद मिनटों में एक हाथ से दूसरे हाथ आयी जमीन को बेचने का अधिकार उन लोगों को नहीं था, जिन्हें ट्रस्ट ने भुगतान किया था। ऐसे में ट्रस्ट के लोगों ने इतनी जल्दबाजी में जो भुगतान किया है, वह निश्चित तौर पर संदेह पैदा करने वाला है।