नैनो तरल उर्वरक का आधा बोतल करीब एक बोरी यूरिया के समान

कृषि झारखंड
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  • नैनो यूरिया तरल के महत्‍व एवं उपयोग पर वेबिनार का आयोजन

रांची। बिरसा कृषि विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि नैनो उर्वरक से उर्वरक लागत में कमी आयेगी। अधिक उपज के साथ प्रदूषण का प्रभाव भी कम होगा। इसके प्रयोग से अन्य उर्वरकों की उपयोगिता क्षमता के बढ़ने से उपज की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। सही मायने में नैनो उर्वरक आने वाले वर्षो में झारखंड के गरीब किसानों के लिए वरदान साबित होगी। आज का किसान काफी जागरूक हैं। खेतों में लाभ दिखने पर किसी भी तकनीक को अपनाने में हिचक नहीं दिखाते। नैनो उर्वरक के प्रयोग को बीएयू के अलावा किसी जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में भी प्रदर्शित किया जाय, ताकि अधिक से अधिक किसानों को इसके उपयोग के प्रति जागरूक किया जा सके। वे नैनो यूरिया तरल के महत्‍व एवं उपयोग पर आयोजित राज्यस्तरीय वेबिनार में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। इंडियन फर्टिलाइजर कारपोरेशन ऑफ इंडिया (इफको) और बीएयू के संयुक्त तत्वावधान में इसका आयोजन 6 जून को किया गया।

कुलपति ने कहा कि खरीफ मौसम सर पर खड़ा है। राज्य में हरियाली फैलाने में कृषि वैज्ञानिकों को भी बड़ी भूमिका निभानी है। ऐसे में विवि के वैज्ञानिक को खरीफ के अनुसंधान कार्यक्रमों को तत्परता से पूरा करना होगा। हर एक जिले में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों को स्थानीय कृषि पारिस्थितिकी के अनुकूल उपयुक्त फसल किस्म एवं उन्नत तकनीकी प्रबंधन के प्रसार से कृषि गतिविधियों में तत्परता से तेजी लानी होगी। किसानों को अधिकाधिक हर संभव तकनीकी सहयोग मुहैया कराया जाय।

मौके पर नैनो उर्वरक के जनक डॉ रमेश रलिया ने बताया कि हाल ही में गजट ऑफ इंडिया में इस उर्वरक के प्रयोग की अनुमति भारत सरकार ने दी। इस उर्वरक के प्रभाव का देश के 94 मुख्य फसलों में प्रभाव का अध्ययन किया गया। देश के 20 शोध केंद्रों एवं 11 हजार किसानों के खेतों में तकनीकी परीक्षण के बाद इसे किसानों के लिए हाल में इफको ने लांच किया है। इस तरल उर्वरक का आधा बोतल करीब एक बोरी यूरिया के समान है।

इस अवसर पर बीएयू के अध्यक्ष (मृदा) डॉ डीके शाही ने विवि में नैनो उर्वरक का गेहूं फसल पर प्रभाव पर शोध से अवगत कराया। कहा कि अनुशंषित उर्वरक, चूना, कम्पोस्ट की मात्रा का बूआई के समय प्रयोग तथा बाद में दो बार यूरिया की जगह नैनो उर्वरक के टॉप ड्रेसिंग से उपज में 20 प्रतिशत तक अधिक उपज पाया गया है। भूमि पर इसके कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला।

इफको विपणन निदेशक योगेंद्र कुमार ने कहा कि इफको ने प्रयोगशाला में नैनो डीएपी विकसित कर ली है। एक-दो वर्षो में इसे बाजार में लांच किया जायेगा। यह उर्वरक झारखंड की अम्लीय भूमि के लिए काफी उपयोगी साबित होगी। स्वागत इफको के राज्य विपणन प्रबंधक आरके सिंह और धन्यवाद उप क्षेत्र प्रबंधक चंदन कुमार ने किया। वेबिनार में राज्य के किसानों. कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि पदाधिकारी सहित करीब 400 लोगों ने भाग लिया।