शैक्षिक महासंघ ने शिक्षा व्‍यवस्‍था के 12 बिंदुओं पर यूजीसी को भेजा सुझाव

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नई दिल्ली। अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने वर्तमान परिस्थिति में शिक्षा व्यवस्था के संबंध में छात्रों के सीखने और शिक्षकों के सिखाने की मिश्रित पद्धति पर 12 बिंदुओं का एक सुझाव पत्र यूजीसी के अध्यक्ष को भेजा है। महामंत्री सेवानंद सिंदनकेरा ने बताया कि महासंघ शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाला देश का सबसे बड़ा संगठन है, जो शैक्षिक सुधार व उन्नयन के लिए सतत रूप से अपने सुझाव समय-समय पर शिक्षा के नियामक संस्थाओं को भेजता रहता है। इसी कड़ी में यह सुझाव पत्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष को भेजा गया है।

संगठन का मत है कि शिक्षा के सभी स्तरों पर अधिगम के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी की आवश्यकता एवं महत्व को स्वीकार करता है। इसीलिए अधिगम के मिश्रित तरीके की अवधारणा का स्वागत करता है। समय की मांग के साथ सीखने सिखाने के मिश्रित तरीके पर यूजीसी की अवधारणा के विषय में संघ की कुछ गंभीर चिंताएं हैं।

इस महामारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा एक मजबूरी और जरूरत बन गई है। हालांकि सार्वभौमिक पहुंच और सीखने के परिणाम के बारे में ऑनलाइन शिक्षा के विषय में छात्रों के अनुभव और परिणाम बहुत उत्साहजनक नहीं हैं। शिक्षा संस्थानों के 70% से अधिक विद्यार्थी अर्ध शहरी अथवा ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। इनमें अधिकांश बच्चे निम्न मध्यवर्गीय परिवारों से आते हैं। महामारी के समय में रोजी-रोटी के संकट से जूझते परिवारों से नवीनतम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, अच्छी इंटरनेट गति और भंडारण क्षमता की अपेक्षा करना संभव नहीं है। आवश्यक उपकरणों के अभाव में विद्यार्थियों की नियमितता एवं अधिगम गति प्रभावित हुई है।

कई उच्च शिक्षा संस्थान विशेष रूप से राज्य के कॉलेज स्वयं ऐसी उन्नत आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे हैं। संस्थानों में ऑनलाइन शिक्षा के लिए शीर्ष इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, स्टूडियो और उचित तकनीकी कर्मचारियों का अभाव है। सीखने की आवश्यक शर्त शिक्षक एवं विद्यार्थियों के समुचित अनुपात का उच्च शिक्षण संस्थानों में अभाव है। मिश्रित योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए तकनीकी और भौतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पर्याप्त बजटीय प्रावधान पहली शर्त है।

शिक्षा के उच्च स्तर पर छात्रों की आवश्यकता रुचि और सुविधा के आधार पर छात्र केंद्रित पाठ्यक्रम की अवधारणा प्रशंसनीय है, किंतु यहां भी छात्र को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। बहुत सारे शोधों में यह पाया गया है कि वयस्क विद्यार्थी अपनी अन्य समस्याओं में उलझे होकर यूजीसी के कार्यक्रम ‘मूक’ के माध्यम से अधिगम से उतनी तल्लीनता से नहीं जुड़ पाते, जितना परंपरागत पाठ्यक्रम में जुड़ पाते हैं।

सेल्फ पेसिंग सिद्धांत एक छोटे से प्रतिशत विद्यार्थियों को तेज गति से आगे बढ़ के लिए प्रेरित करता है, परंतु धीमी गति से सीखने वाले विद्यार्थी पीछे रह जाते हैं। अधिक समानता को जन्म देते हैं। शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों की ओर से तकनीकी दक्षता की कमी के कारण संपूर्ण शिक्षण कार्यक्रम विफल हो सकता है। प्रयोगशाला आधारित पाठ्यक्रम के शिक्षण के लिए ऑनलाइन वर्चुअल लैब प्लेटफॉर्म अप्रभावी सिद्ध हुए हैं। प्राकृतिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी जैसे विषयों को विशुद्ध रूप से आभासी मोड में नहीं सीखा जा सकता। ये कक्षाएं ऑफलाइन मोड में ही संचालित की जानी चाहिए।

ऑनलाइन शिक्षा में डाटा की वितरण प्रणाली अत्यधिक तकनीकी है, जिसमें अधिकांश तकनीकी संसाधन स्वदेशी नहीं हैं। विदेशी कंपनियों को इस तरह का डिजिटल एकाधिकार देना देश की अखंडता और शिक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। ऑफलाइन शिक्षा के उलट ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षक के मूल्यांकन का अधिकार छात्रों को दिया जाता है। इससे प्राचीन भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को क्षति पहुंची है।

हाल ही में यूजीसी द्वारा जारी एक नोटिस में बताया गया है कि मिश्रित माध्यम में स्वयं कोर्स में 40% या उससे अधिक ऑनलाइन शिक्षा स्वीकार्य है। इस तरह अधिगम का लगभग 70 प्रतिशत ऑनलाइन हो जाता है, जो उच्च शिक्षा को केवल दूरस्थ शिक्षा में बदल देता है। इसके साथ ही एक और भय पैदा होता है कि अगर सरकार मितव्ययता के आधार पर इस माध्यम को अपनाती है तो शिक्षकों का कार्यभार कम होगा और नए शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगेगी। पहले से ही उच्च शिक्षा संस्थानों में बहुत सारे पद रिक्त हैं।

एबीआरएसएम का सुझाव है कि सर्वप्रथम सीमित रूप में सीखने के मिश्रित तरीके को कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए और फीडबैक, सर्वेक्षण, विश्लेषण और संशोधनों के आधार पर धीरे-धीरे योजनाबद्ध तरीके से अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में मिश्रित मोड में लागू करना चाहिए। एबीआरएसएम का दृढ़ विचार है कि पाठ्यक्रम में शिक्षा का ऑनलाइन तरीका स्वयं आदि सहित 20% से अधिक नहीं होना चाहिए और विश्वविद्यालयों को मिश्रित मोड में सीखने का विकल्प या तो स्वयं कार्यक्रम या सीखने के अन्य ऑनलाइन तरीकों का विकल्प दिया जाना चाहिए।

मिश्रित प्रणाली में परीक्षण कार्य सबसे अधिक कठिन है। ‘ओपन बुक एग्जामिनेशन’ या ‘एग्जाम फ्रॉम होम’ जैसी अवधारणाएं ऑनलाइन संसाधनों से नकल को बढ़ावा देगी। कक्षा कार्य में साहित्यिक चोरी को पकड़ना एक अत्यंत दुरुह कार्य होगा। बहु वैकल्पिक प्रश्नों के आधार पर उम्मीदवार की क्षमता का ठीक से आंकलन संभव नहीं है। मांग मोड़ पर परीक्षा अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर सकती है। एबीआरएसएम का सुझाव है कि इन विधियों को पहले दो-तीन चयनित पाठ्यक्रमों या संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए और सामान्य निर्णय लेने से पहले फीडबैक या परिणामों का विश्लेषण करना चाहिए। महामारी की स्थिति में जल्दबाजी में मिश्रित व्यवस्था को लागू किया गया जिससे अभी शिक्षक और विद्यार्थी ठीक तरह से परिचित नहीं है। नोट को गहराई से पढ़ने से पता चलता है कि अधिकांश अवधारणाएं पश्चिम से उधार ली गई हैं और भारतीय परिस्थितियों की अनदेखी की गई है।

एबीआरएसएम का मानना है कि ऑनलाइन सीखने पर अतिरिक्त ध्यान समग्र विकास के लक्ष्यों में बाधा डाल सकता है जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित संज्ञानात्मक कौशल के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक कौशल का विकास शामिल है। इन सभी तथ्यों के आलोक में एबीआरएसएम मांग करता है कि शिक्षण और सीखने की मिश्रित तरीके के बारे में उपयुक्त संशोधित कदम उठाए जाएं। महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो जेपी सिंघल, राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर एवं महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा के नेतृत्व में ये सुझाव तैयार कर भेजे गए हैं।

अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, झारखंड प्रदेश से भी इस संबंध में सुझाव भेजे गए जिन्हें यूजीसी के अध्यक्ष को भेजे गए सुझाव पत्र में शामिल किया गया है। झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष डॉ प्रदीप कुमार सिंह, महामंत्री डॉ ब्रजेश कुमार, महिला सम्वर्ग प्रमुख डॉ सुनीता कुमारी गुप्ता, डॉ राजकुमार चौबे, डॉ अभय कृष्ण सिंह, डॉ अजय सिन्हा, डॉ भोला नाथ सिंह सहित कई पदधारियों ने यूजीसी को भेजे गए सुझावों का स्वागत किया है।