नेचर ऑडिट कर देखें कि प्रकृति से क्या लिया और कितना दिया: अरिमर्दन सिंह

झारखंड
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रांची। स्वच्छ पर्यावरण व टिकाऊ विकास के लिए जरूरी है कि हम प्रकृति से जितना लें उससे भी ज्यादा प्रकृति को लौटाएं। हमें इसके लिए नेचर ऑडिट करने की जरूरत है। इसका तात्पर्य यह है कि हमने प्रकृति से क्या लिया और प्रकृति को कितना दिया। इसका हम रोज मूल्यांकन करें। उक्त बातें पत्र सूचना कार्यालय के अपर महानिदेशक अरिमर्दन सिंह ने विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पत्र सूचना कार्यालय, प्रादेशिक लोक संपर्क ब्यूरो, रांची और क्षेत्रीय लोक संपर्क ब्यूरो, दुमका के संयुक्त तत्वावधान में आयाजित वेबिनार के दौरान कहीं। इसका विषय ‘टिकाऊ विकास, पर्यावरण के अनुकूल उद्योग के साथ-साथ भारत और पूरी दुनिया को हरा-भरा रखने की कोशिशों के मद्देनजर एक भारत श्रेष्ठ भारत और स्वच्छ भारत अभियान’ था।

सिंह ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण की चिंताओं के बीच यह जरूरी हो गया है कि हम ऐसी आदतें विकसित करें जिससे प्रकृति को ज्यादा दें सकें। कम से कम प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग करें। पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित रखने के लिए हमें खुद भी जागरूक होना होगा। दूसरों को भी जागरुक करना होगा। लोगों को यह जानकारी होनी चाहिए कि हमारी जीवन शैली पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए, जिससे हम आने वाली पीढ़ी के लिए एक स्वच्छ वातावरण दे सकें।

कृषि का पर्यावरण संतुलन में बड़ा योगदान

दिव्यायन, कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ राजेश कुमार ने कहा कि कृषि का पर्यावरण संतुलन में बड़ा योगदान है। पर्यावरण की रक्षा के लिए जैविक कृषि कारगर है। इससे जल के साथ-साथ मृदा प्रदूषित होने से बचती है। अपशिष्ट का इस्तेमाल होने से कचरा भी नहीं फैलता है। हम लोग जैविक कृषि को लेकर किसानों को प्रेरित करते हैं। हमारे प्रयास से रांची के आसपास 9 गांवों में जैविक कृषि की जाती है। वर्षा जल का संचयन और संरक्षण कर ज्यादा से ज्यादा फसलों का उत्पादन, फसल अवशेष से जैविक खाद, सोलर एनर्जी का उयोग, बायो गैस का निर्माण, उन्नत और नवीनतम वेराईटी के बीजों के इस्तेमाल से पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। झारखंड लाह का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है यहां की लाह की चूड़ियां विश्व प्रसिद्ध है। यहां उत्पादित होने वाला तसर सिल्क भी देश में काफी सराहा जाता है। इसके अलावा यहां मधुमक्खी पालन का भी बढ़िया वातावरण उपलब्ध है। कीट भी पर्यावरण की रक्षा में अपना योगदान देते हैं। मधुमक्खी से मधु के अलावा मोम, सौंदर्य सामग्रियां, दवाएं और अन्य तरह की खाद्य सामग्रियां बनाई जाती हैं, जो जैविक होती हैं। झारखंड में वन संपदा का फैलाव होने के कारण यहां पशुपालन की भी असीम संभावना है। सिर्फ पेड़ लगाने से ही नहीं बल्कि जैव विविधता से भी पर्यावरण की रक्षा की जा सकती है।

उद्योगों में ज्यादा प्रदूषण होता है

औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रक और पर्यावरण विशेषज्ञ मोहम्मद तौहीद आलम ने कहा उद्योगों में ज्यादा प्रदूषण होता है, क्योंकि वहां बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है। आज ग्लोबल वार्मिंग पूरे विश्व के लिए ज्वलंत मुद्दा है, क्योंकि बढ़ते प्रदूषण के कारण हर कोई इसके बारे में चिंतित है। उद्योगों में जल प्रदूषण के साथ ध्वनि प्रदूषण भी होता है। नई तकनीकों के माध्यम से पानी का कम इस्तेमाल और लगातार वैज्ञानिक प्रयोग के बाद उद्योग जगत ने वायु और ध्वनि प्रदूषण काफी कम किया है। पर्यावरण की रक्षा के लिए हमें मिलकर काम करने की जरूरत है। गीला कचरा और सूखा कचरा का निपटान अलग-अलग किया जाना चाहिए।

स्वच्छ भारत अभियान काफी अच्छी पहल

बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ इन्वॉरयमेंटल एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट विभाग के सहायक व्याख्याता डॉ राजीव प्रताप सिंह ने कहा कि शहरी आबादी बढ़ने के साथ प्रति व्यक्ति कचरे का निष्कासन भी बढ़ा है। भारत 5.6 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन हर वर्ष करता है। कचरे में बड़ा योगदान प्लास्टिक कचरे का होता है, जो आसानी से नष्ट भी नहीं किया जा सकता है। प्लास्टिक कचरा सीवेज को भी जाम करता है, जिससे पानी का निकास नहीं हो जाता है। मुंबई में वर्ष 2005 में प्लास्टिक कचरे के कारण ही काफी जल जमाव हो गया था। भारत सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान चलाकर काफी अच्छी पहल की है। इससे देश में स्वच्छता के प्रति लोग जागरूक हुए हैं। गंदगी के कारण पहले कई महामारियां भी फैली हैं। स्वच्छता को हमें अपनी आदतों में भी लाना होगा। नदी-नालों में पूजन सामग्री और कचरा फेंके जाने के कारण पानी तो जहरीला होता ही है। साथ ही, जलीय जीवों को भी नुकसान पहुंचता है। गीला और सूखा कचरा का निपटान, वेस्ट मैनेजमेंट पर जागरूक होने की जरूरत है, जिससे कि हमारा इकोसिस्टम ठीक रहे।

पर्यावरण और विकास का बैलेंस बराबर हो

जोसेफ वॉज कॉलेज, गोवा के बॉटनी के सहायक प्रोफेसर फादर डॉ बोलमैक्स फैडेलिस पेरैरा ने कहा कि पर्यावरण और विकास का बैलेंस बराबर होना चाहिए। हमें यह ध्यान रखना होगा कि विकास के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी जरूरी है। प्रकृति के साथ हमेशा गिव एंड टेक का रिश्ता होना चाहिए। यानी जितना प्रकृति से लिया उतना प्रकृति को वापस भी किया जाना चाहिए। आज लोगों से ज्यादा वाहन हो गए हैं, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल काफी कम हो रहा है। लोग पैदल भी कम चलते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान के साथ-साथ लोग भी बीमार हो रहे हैं। 

डिस्पोजल ऑफ वेस्ट सही तरीके से करना एक अच्छे इकोसिस्टम के लिए जरूरी है। इसके लिए हमें खुद जागरूक होना होगा। पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ खेती को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। नेटिव सीड की किस्में विकसित हों जिससे कम जल में भी अच्छी पैदावार हो सके। एक भारत श्रेष्ठ भारत में झारखंड के साथ गोवा को जोड़ीदार राज्य बनाया गया है। आज हर कोई गोवा घूमने आना चाहता है तो इसका एकमात्र कारण है कि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को आकर्षित करता है। हमें मिलकर इस प्राकृतिक सौंदर्य की रक्षा करनी होगी और इसे हरा-भरा रखने में सामूहिक योगदान देना होगा। हमें यह अवलोकन करना होगा कि हमने क्या नष्ट किया है और क्या हमें करना चाहिए था। एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत सभी लोगों को एक होकर देश में पर्यावरण के संतुलन और एक अच्छे इकोसिस्टम के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए।

यू-ट्यूब पर लाइव प्रसारण, ऑनलाइन क्विज

वेबिनार का यू-ट्यूब पर भी लाइव प्रसारण किया गया, जिसे सैकड़ों लोगों ने लाइव देखा। वेबिनार के दौरान ही चैट बॉक्स में लिंक शेयर कर ऑनलाइन क्विज आयोजित किया गया, जिसमें विश्व पर्यावरण दिवस और पर्यावरण से जुड़े सवाल पूछे गए।

वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी शाहिद रहमान ने किया। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर, संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए।