भोपाल। देश में कोरोना वायरस अपना कहर बरपा रहा है, ऐसे में मध्य प्रदेश में भी कोरोना ने कोई कम जिन्दगियों को तबाह नहीं किया है। इसके बावजूद कोरोना का कहर एक तरफ और देश सेवा सर्वोपरि है। देश की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं हो सकता। इस भाव और जज्बे के साथ काम करते हुए इन दिनों मध्य प्रदेश के जबलपुर में शारंग तोपें तैयार हो रही हैं। 2022 तक 300 शारंग तोपों का निर्माण कर सेना को दिया जाना है।
दरअसल, सबसे ताकतवर आर्टिलरी गन सारंग के सफल परीक्षण के बाद से भारतीय सेना की फायर पावर और मजबूत हुई है, भारत अब पाकिस्तान के अंदर तक मार कर सकेगा। अपग्रेड होने के बाद इस तोप की मारक क्षमता 40 से 50 किलोमीटर हो गई है। मारक क्षमता बढ़ऩे के साथ ही ये तोप पीओके में अपना निर्णायक रोल अदा करने में भी सक्षम हो गई हैं।
हालांकि यह सच है कि कोरोना ने इसके निर्माण की गति को प्रभावित किया है किंतु सेना और हमारे वैज्ञानिकों के इरादे शुरू से ही मजबूत बने रहे। कोरोना का संक्रमण उनके मजबूत इरादों को जरा भी नहीं हिला सका है। यही कारण है कि ‘शारंग’ का निर्माण तेजी के साथ जारी है। बहरहाल व्हीकल फैक्टरी ( वीएफजे) सहित चारों आयुध निर्माण फैक्टरियां 25 फीसदी कर्मचारियों के साथ फिलहाल काम कर रही हैं। यहां कुल तीन हजार कर्मचारी कार्यरत हैं।
वीएफजे के लिए बड़ा अवसरजबलपुर की वीएफजे मूलत: सेना के वाहनों का निर्माण कार्य करती है। इन वाहनों में स्टालियन और एलपीटीए जैसे शक्तिशाली सैन्य वाहन भी शामिल हैं। सेना के लिए वाहन बनाने वाली इस व्हीकल फैक्टरी ने पहली बार तोप उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा है। इस तोप के लिए वीएफजे ही नोडल केंद्र है। उसे बड़ी कामयाबी मिल रही है। वीएफजे इस साल सौ शारंग तोपों का निर्माण पूरा करेगी। यह ऑर्डर उसे आयुध निर्माण बोर्ड से मिला है, जिसकी लागत 966 करोड़ रुपये बताई गई है। वीएफजे को 11 महीनों में इस बड़े आर्डर को पूरा करना है।
पिछले साल वीएफजे ने 450 करोड़ रु. का काम पूरा किया था, हालांकि ऑर्डर एक हजार करोड़ का था किंतु कोरोना संकट के बीच काम प्रभावित जरूर हुआ लेकिन रुका नहीं। इस साल कोरोना की दूसरी लहर पहले के मुकाबले अधिक शक्तिशाली है। कई लोग इससे प्रभावित भी हुए फिर भी जबलपुर की व्हीकल फैक्टरी के जवान एवं तकनीकी वैज्ञानिक अपने काम में लगे हुए हैं।
यहां हो रहीं अभी 100 शारंग तोपें तैयारइस संबंध में जबलपुर की वीएफजे के जनसंपर्क अधिकारी राजीव कुमार कहते हैं कि हमने वर्ष भर में 100 शारंग तोप बनाने का लक्ष्य लिया है। आयुध निर्माण बोर्ड से जो ऑर्डर इससे जुड़ा प्राप्त हुआ है, उसमें यही है कि तोपें तैयार कर समय पर सौंप देना है। इसलिए इस ऑर्डर को पूरा करने के लिए इस कोरोना संक्रमण के काल में भी कोविड नियमों का पालन करते हुए हर हाल में इसे पूरा करने के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं । इतना ही नहीं हमारी जो पूर्व से वाहन निर्माण की विशेषता रही है, उस पर भी हमारा बराबर से ध्यान है । जबलपुर की व्हीकल फैक्टरी स्टालियन और एलपीटीए सैन्य वाहन भी अपने तय लक्ष्य के अनुसार तैयार करने में जुटी है।
स्वदेशी तकनीक से लैस है ‘शारंग’ ‘शारंग’ पूर्ण रुप से आर्टिलरी गन है। यह देश की सबसे बड़ी स्वदेशी तोप है। 155 एम.एम कैलिबर वाली इस गन को अपग्रेड कर इसकी मारक क्षमता को बढ़ाया गया है। मेक इन इंडिया के संकल्प को साकार करती हुई यह गन स्वदेशी में सबसे आधुनिक तकनीक से युक्त कही जा सकती है। यह भी कह सकते हैं कि इस तोप को 130 एमएम की एम-46 की तकनीक अपग्रेड करके बनाया जा सका है। अपग्रेड होने के बाद ये और भी खतरनाक हो गई है। रक्षा जानकारों के मुताबिक शारंग के गोले में आठ किलो टीएनटी का प्रयोग किया जा रहा है, जिसकी वजह से दुश्मन के खेमे में ये और अधिक तबाही मचा देने में सक्षम हो गई है।
इस तोप को विभिन्न मानकों पर भी परखा जा चुका है। इसे 0 से 45 डिग्री तापमान तक मौसम की स्थितियों में परखा गया है। इस प्रोजेक्ट को सेना के साथ डायरेक्टर जनरल ऑफ क्वालिटी एश्योरेंस (डीजीक्यूए), डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) और ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) ने मिलकर पूरा किया है।
भगवान विष्णु के धनुष के नाम पर है ये इसका नाम भगवान विष्णु के धनुष शारंग के नाम पर रखा गया है। शारंग तोप एक बार में तीन गोले दाग सकती है। शारंग तोप का वजन करीब 8.4 टन है और उसके बैरल की लंबाई करीब सात मीटर है। यह गन भी अब सेमी ऑटोमेटिक हो गई है। इससे अब तोप के अंदर गोले डालना भी आसान हो गया है।
शारंग तोप को करीब 70 डिग्री तक घुमाया जा सकता है। हालांकि अभी तक 45 डिग्री तक फायरिंग की गई है। एक तोप बनाने के लिए 70 लाख रुपये की लागत आती है। एक नई फील्ड आर्टिलरी गन का दाम करीब 3.5 करोड़ रुपये है। इस तरह से शारंग घातक होने के साथ-साथ सस्ती भी है।
रूस से लाई गई थी पहले ये मूल रुप से ‘शारंग’ का निर्माण रूस में हुआ था। इसकी पहले मारक क्षमता 27 किलोमीटर हुआ करती थी और इसका बैरल पहले 130 एमएम का था लेकिन अब इसमें 25 एमएम की बढ़ोतरी की गई, जिसके बाद अब यह 155 एमएम बैरल की हो गई है। इसमें भारतीय वैज्ञानिकों ने नए सिरे से परिवर्तन किए हैं, जिसके बाद कहा जा सकता है कि शारंग का आज जो स्वरूप है वह पूरी तरह से भारतीय है। इसके लिए हमें किसी अन्य देश पर निर्भर होने की जरूरत नहीं रही ।