- पर्यावरण में लगातार बढ़ रहा है हैवी मेटल
शेली खत्री
पर्यावरण का हमारी सेहत से बहुत गहरा नाता है। सामान्य तौर पर लोग मानते हैं कि पर्यावरण का प्रभाव सांस, फेफड़ों और त्वचा के रोगों से ही है। हालांकि लगातार आ रहे शोध निष्कर्ष बता रहे हैं कि हवा, पानी में मौजूद हैवी मेटल्स कॉर्डियोवास्कुलर डिजिज का खतरा लेकर आ रहे हैं। दिन प्रतिदिन इनसे प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। झारखंड के लिए यह विषय काफी चिंतनीय है, क्योंकि यहां के ग्राउंड वाटर में प्राकृतिक रूप से ही हैवी मेटल हैं। बाकी कोल माइंस और विभिन्न उद्योग के कारण इनकी मात्रा हवा और पानी में बढ़ रही है। कई ऐसे जिले हैं, जहां स्थिति काफी खराब है। इस लिस्ट में नए जिले भी जुड़ रहे हैं। झारखंड में मुख्य रूप से आर्सेनिक, पारा, लेड, तांबा आदि जहरीली धातुओं का प्रभाव है। झारखंड में वर्ष 2019 में 10 प्रतिशत से अधिक मौतें हृदय रोग के कारण हुई थीं।
साहेबगंज में आर्सेनिक बहुत आधिक
साहेबगंज में आर्सेनिक की मात्रा बहुत आधिक है। 5 से 9 मिलीग्राम प्रतिलीटर तक यानी डब्ल्यूएचओ के नामर्स से बहुत ज्यादा। यहां से हार्ट डिजीज के केस भी काफी अधिक आ रहे हैं। राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल रिम्स में इस विषय में अलग से डेटा भी तैयार किया जाएगा कि हार्ट डिजीज के मरीज किस जिले से अधिक आ रहे हैं। वहां की स्थिति क्या, यह किस कारण हो रहा है। इसी तरह पलामू के गढ़वा और बुकरू गांव में फ्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक है। वहां यह 8 से 11 मिलीग्राम पर लीटर तक है।
नदियों में भी है इसका असर
रांची की नदियों में आर्सेनिक, लेड, पारा का असर है। हालांकि यह राहत की बात है नदी के गाद में इनका प्रभाव ज्यादा है पानी में थोड़ा कम। गाद की मात्रा बढ़ने, नदियों में कचरे की मात्रा बढ़ने के कारण पानी में इनकी मात्रा बढ़ने की पूरी आशंका है। हवा में भी हैवी मेटल के पार्टिकल्स पाए जा रहे हैं, जो लोगों को धीरे- धीरे हृदय रोग की ओर ढकेल रहे हैं। सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ हेमंत नारायण कहते हैं कि लोग सोचते हैं कि प्रदूषण का संबंध सिर्फ सांस और फेफड़ों से है। यह ठीक है कि पयार्वरण का सीधा संबंध कॉडियोवास्कुलर डिजिज से नहीं है, पर अंतत: नुकसान तो दिल को होता ही है। अगर फेफड़े खराब हो रहे हैं तो उसका इफेक्ट दिल पर आता है, क्योंकि लंग और हार्ट एक दूसरे से इंटर कनेक्टेड हैं। लंग की डिजिज हार्ट के राइट साइड को इफेक्ट करती हैं। बाद में पूरा हार्ट ही इफेक्टिव हो जाता है।
घर के अंदर भी है प्रदूषण
अगर आप सोचते हैं कि प्रदूषण तो सिर्फ बाहर है, घर के अंदर आप सेफ हैं तो यह बिल्कुल गलत धारणा है। अधिकतर घर के अंदर की स्थिति भी बाहर की तरह ही खराब है। घर अब पहले की तरह खुले और हवादार नहीं होते। घरों में सामान (सोफे, आलमारी, पलंग, सेल्फ, टेबल कुर्सी आदि आदि ) बहुत अधिक होते हैं। घर के अंदर जो खाली स्थान होता है, वहां हवा रहती है। अब खाली स्थान ही नहीं होता तो हवा कहां रहेगी? वेंटीलेटर और हवा के आवागमन के साधन भी गायब हैं। बची कसर प्लास्टिक के सामन पूरी कर देते हैं। घर में बर्तन, शोपीस से लेकर अधिकतर सामान प्लास्टिक के होते हैं। ये सब मिलकर घर के अंदर की हवा और फिर सेहत खराब करते हैं। पर्यावरणविद की मानें तो घर में खाली जगह जरूर रखनी चाहिए और सामान की संख्या कम से कम रखनी चाहिए। प्लास्टिक के सामान और पतले प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करना चाहिए।
30 प्रतिशत तक है खतरा
हैवी मेटल जैसे कि आर्सेनिक के संपर्क में आने के कारण कॉर्डियोवास्कुलर हार्ट डिजिज का खतरा 30 प्रतिशत और कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा 23 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। अब इसे लेकर प्रशासन भी सचेत हो गया है। अलग- अलग संस्थान इस विषय में शोध कर रहे हैं। एक शोध के मुताबिक भारत जल्द ही सबसे अधिक हार्ट डिजीज वाले मरीजों का देश बन जाएगा। अभी 50 से कम आयु वर्ग के लगभग 50 प्रतिशत लोग किसी ना किसी प्रकार के हार्ट डिजिज के शिकार हो जाते हैं। अकेले वायु प्रदूषण के कारण 1.7 वर्ष आयु कम हो रही है।
पेड़-पौधे से मिलेगी राहत
पर्यावरणविद की मानें तो हवा में मौजूद हर तहर के प्रदूषण से पेड़- पौधे राहत दे सकते हैं। इसलिए अधिक से अधिक पौधरोपण अन्य बीमारियों के साथ ही हार्ट डिजिज से हमें बचा सकते हैं। अगर ग्राउंड वाटर में हैवी मेटल हैं तो यहां भी पेड़-पौधे हमारी मदद करते हैं, क्योंकि अच्छी मात्रा में पेड़-पौधे अच्छी वर्षा के भी कारक बनते हैं। ये वर्षा कुएं और तालाब को रिचार्ज करती रहेगी। हमारी डिपेंडेंसी ग्राउंड वाटर पर कम हो जाएगी। पानी के कारण होने नुकसान को कम किया जा सकेगा।
पानी और हवा दोनों है प्रभावित
हवा पानी खराब होगा तो बीमारियों को न्यौता तो मिलता ही है। झारखंड की बात करें तो यहां की कई दामोदर, स्वर्णरेखा और सहायक नदियां- नलकारी आदि में आर्सेनिक, निकल, लेड, मरकरी आदि हैवी मेटल पाए गए हैं। हवा में भी प्रदूषण का लेवल बढ़ा है। शहर और गांव के भी कई इलाके इफेक्टेड हैं। माइनिंग और फैक्ट्रीज का असर है। हवा में नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड , कार्बनडाइ ऑक्साइड की अधिकता है। ये लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित कर रही हैं। साहेबगंज एरिया में आर्सेनिक की अधिकता ने बहुत लोगों को खत्म कर दिया। बचाव के लिए इनसे दूर रहना ही उपाय है। पेड़-पौधे बढ़ने चाहिए और पानी के प्रयोग में सरफेस वाटर को महत्व देना होगा। कुओं और तालाबों को पुनर्जीवित करना होगा। इनके संरक्षण के उपाय तलाशने होंगे। माइंस और कारखानों का पानी रिसाइकल हुए बिना जमीन या वाटर सोर्स में जाने से रोकना होगा। जहां प्राकृतिक रूप से हैवी मेटल पानी में हैं, वहां ग्राउंड वाटर का उपयोग बिल्कुल बंद करके सरफेस वाटर पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
नीतिश प्रियदर्शी, पर्यावरणविद, भूतत्ववेता