रांची। आईसीएआर (नई दिल्ली) की गठित आईसीएआर रिव्यू कमेटी के डॉ नंदन मेहता (प्रधान वैज्ञानिक, आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन) ने बीएयू के अधीन निदेशालय अनुसंधान द्वारा संचालित आईसीएआर-अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान तीसी फसल परियोजना के कार्यक्रमों की समीक्षा की। उन्होंने शोध प्रक्षेत्र में करीब 3 हेक्टेयर भूमि में लगी तीसी फसल के आनुवांशिकी एवं पौधा प्रजनन, शस्य विज्ञान एवं पौधा रोग के 17 प्रायोगिक प्रक्षेत्रों, स्टेशन ट्रायल, ब्रीडिंग ट्रायल, को-ऑर्डिनेटेड ट्रायल, देश-विदेश के तीसी जर्मप्लाज्म संरक्षण एवं बीज उत्पादन प्रायोगिक प्रक्षेत्रों का अवलोकन किया। रांची केंद्र के कार्यों की सराहना की। अनुसंधान प्रक्षेत्रों के भ्रमण के दौरान परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक डॉ एनपी यादव एवं डॉ परवेज आलम, शोधार्थी नलय भगत एवं जयंत कुमार, देवेन्द्र सिंह और बिशु उरांव भी मौजूद थे।
रिव्यू कमेटी के अध्यक्ष डॉ नंदन मेहता ने बीएयू के निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह से मुलाकात कर रांची केंद्र के शोध कार्यक्रमों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि रांची केंद्र द्वारा स्थानीय उपयुक्त तीसी की चार उन्नत किस्में दिव्या, प्रियम, बिरसा तीसी-1 एवं बिरसा तीसी-2 विकसित की गयी है। इन चारों उन्नत किस्मों के प्रजनक बीज का बीएयू के फार्म में बीजोत्पादन करें। इन किस्मों को कृषि विभाग के सहयोग से स्टेट सीड चैन की मुख्यधारा में लाने और प्रदेश के किसानों को बीज उपलब्धता सुनिश्चित कराने की दिशा में प्रयास किया जाय।
डॉ मेहता ने तीसी जर्मप्लाज्म संरक्षण के बारे में कहा कि तीसी फसल प्रायोगिक प्रक्षेत्र में विल्ट, रस्ट, अल्टरनेरिया ब्लाइट आदि रोग का प्रकोप देखने को मिला। इनमें से जल्द पकने वाली और रोग रोधी तीसी जर्मप्लाज्म को चिन्हित करते हुए वर्षाश्रित खेती उपयुक्त उन्नत किस्मों को विकसित की जा सकती है।
निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने कहा कि रांची केंद्र की तीसी फसल परियोजना का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर रहा है। इस परियोजना के शोध कार्यक्रमों में निरंतरता एवं स्थानीय उपयुक्त किस्मों के विकास को बढ़ावा देने के सभी संभव प्रयास किये जायेंगे।