
- कोविड-19 महामारी में ग्रामीणों के लिए बना मददगार
रांची। डेल्बर्ग ने झारखंड समेत भारत के पांच राज्यों में मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण रोजगार की स्थिति पर विस्तृत अध्ययन किया। इसके निष्कर्षों को सार्वजनिक किया। शोध में यह निष्कर्ष सामने आया कि विश्व का सबसे बड़ा रोजगार गारंटी कार्यक्रम अल्प आय वालों के लिए मददगार साबित हुआ।
यह अध्ययन आंध्र प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश पर केन्द्रित था। इस योजना के तहत प्रदत्त सभी रोजगारों में से एक-तिहाई हिस्सेदारी इन्हीं पांच राज्यों की है, जहां देश में मनरेगा में पंजीकृत मजदूरों के 40% से अधिक लोग हैं।
अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के ग्रामीण घरों के लिए मनरेगा काफी मादादगार रहा है। हालांकि भारी अंतर के कारण इस योजना की कल्याणकारी शक्ति का पूरा उपयोग नहीं हो पाया है।
रिपोर्ट के अनुसार निम्न-आय परिवारों के 47% लोगों के पास कम से कम एक क्रियाशील जॉब कार्ड है। ग्रामीण क्षेत्रों में 29% वयस्कों के पास कोई क्रियाशील जॉब कार्ड नहीं था, वे इसे पाना चाहते थे। इनमें से 72% लोग ऐसे परिवारों से थे, जिस परिवार में जॉब कार्ड बिलकुल ही नहीं है।
जॉब कार्ड धारकों में से 70% लोग कम से कम एक बार मनरेगा के तहत काम चाहते थे। उनमें से 18% कथित भेदभाव और कार्यवाही से सम्बद्ध भारी खर्च (जैसे कि ग्राम पंचायत में बार-बार जाने की जरूरत) के कारण वे काम के लिए आवेदन करने में असमर्थ थे।
जिन परिवारों में मनरेगा के तहत काम के लिए आवेदन किया था, उनमें से सभी को कुछ काम मिला। परिवार के लोग औसत 95 दिन का रोजगार (100 दिनों के अधिकार के मुकाबले) की मांग कर रहे थे। उन्हें औसत 66 दिन का रोजगार मिला।
पिछले साल जितने जॉबकार्ड धारकों को मनरेगा के तहत काम मिला था, उनमें से 95% को उनके हाल के अधिकांश रोजगार की मजदूरी मिल गई थी। काम पाने वाले 37% जॉब कार्ड धारकों ने समय पर भुगतान मिलने की बात कही।
जॉब कार्ड धारकों में से 20% को काम के आवंटन या मजदूरी के भुगतान के सम्बन्ध में शिकायत थी और 91% ने समाधान का प्रयास किया, उनमें से आधे से अधिक को आंशिक या पूर्ण समाधान मिल गया।
इस योजना में महिलाएं प्रमुख लाभार्थी समूह थीं। तथापि, जॉब कार्ड वाली 6% महिलाओं ने रोजगार के लिए आवेदन करने की कोशिश नाकाम होने की बात कही क्योंकि उनके लिए कोई काम उपलब्ध नहीं था।
इसके अलावा, मनरेगा में काम चाहने वाली स्त्रियों में से 26% स्त्रियां आवेदन नहीं कर पाईं जिसके पीछे उन्होंने आवेदन प्रक्रिया की समझ की कमी को कारण बताया।
इस अध्यन से मनरेगा के बाधारहित कार्यान्वयन के लिए ग्राम पंचायतों में प्रशासनिक मोर्चे पर पर्याप्त कर्मचारियों और तकनीकी कुशलताओं की कमी का भी खुलासा हुआ है।
मनरेगा के लिए जितना पंजीकरण हो रहा था उसे ज्यादा मांग थी। 41% से अधिक प्रशासकों ने वर्ष का श्रम बजट समाप्त होने के बाद रोजगार के लिए आवेदन लेना बंद कर दिया था।
केवल 79% ग्राम पंचायतों में रोजगार मांग सर्वेक्षण किये गए थे और बाकी में कार्य नियोजन कम बार की गई थी।
समय पर मजदूरी भुगतान को पूरा करने की क्षमता सीमित थी क्योंकि कार्य सत्या पन और मापी पूरा करने के लिए ग्राम पंचायतों में तकनीकी कर्मचारियों की संख्या अपर्त्याप्त थी।
स्थानीय प्रशासकों में से 39% अधिकारी अन्य समस्याओं के साथ-साथ लाभार्थियों के भुगतान से सम्बंधित चुनैतियों को दूर करने में असमर्थ थे, क्योंकि उनमें से अधिक के पास ऐसा करने का प्राधिकार नहीं था। 28% ने यह भी कहा कि उनके पास कोई शिकायत निवारण प्रणाली नहीं थी।
रोजगार के लिए मांग के अनुमान, जो मनरेगा के कार्न्वायन में मदद के लिए जरूरी है, 10 में से 8 ग्राम पंचायतों में उपलब्ध थे। मनरेगा को निर्बाध रूप से लागू करने के लिए ग्राम पंचायतों में पर्याप्त कर्मचारियों और तकनीकी कुशलताओं की कमी थी।