रांची। नवरात्र दो बार आयोजित किये जाते हैं। पहले नवसंवत्सर के प्रारंभ में जब चैत्र प्रतिपदा का आरंभ होता है। इसी तरह वर्ष में दूसरी बार आश्विन के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र का आयोजन किया जाता है। चैत्रमास नवरात्री आज यानी 2 अप्रैल 2022 से शुरुआत हो गई है। माता के ये नौ रूप शक्ति का प्रतीक माने गए हैं। आइये जानते हैं कि कैसे नाम पड़ा माता के इन रूपों का नाम-
शैलपुत्री
पहला दिन माता शैलपुत्री का माना गया है। शैलपुत्री माता सती को कहा जाता है, जो माता का पहला अवतार था. सती राजा दक्ष की कन्या थीं। उन्होंने यज्ञ की आग में कूदकर खुद को भस्म कर लिया था। इनकी पूजा का बीज मंत्र इस प्रकार है। “शैलपुत्रीः ह्रीं शिवायै नमः”
ब्रह्मचारिणी
दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि माता ने कठिन तप किया था, इस तप के बाद ही महादेव को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस कारण उनका दूसरा नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इनकी आराधना का बीज मंत्र इस प्रकार है। “ब्रह्मचारिणीः ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः”
चंद्रघंटा
माता का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध है। जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक हो, वो माता चंद्रघंटा कहलाती हैं। मां चंद्रघंटा की उपासना का बीज मंत्र इस प्रकार है। “चद्रघंटाः ऐं श्रीं शक्तयै नमः”
कूष्मांडा
चौथा दिन माता कूष्मांडा को समर्पित माना गया है। जिनमें ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति व्याप्त हो, जो उदर से अंड तक माता अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, उस शक्ति को कूष्मांडा कहा गया है। माता शक्ति स्वरूपा हैं, इसलिए उनका एक नाम कूष्मांडा है। इनकी साधना का बीज मंत्र इस प्रकार है। “कूष्मांडाः ऐं ह्रीं देव्यै नमः”
स्कंदमाता
कार्तिकेय माता के पुत्र हैं, जिन्हें स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। जो स्कंद की माता हैं, वो स्कंदमाता कहलाती हैं। नवरात्रि के पांचवे माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इनकी उपासना का बीज मंत्र इस प्रकार है। “स्कंदमाताः ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः”
कात्यायिनी
छठवें दिन माता कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो महिषासुर मर्दिनी हैं। माता ने महर्षि कात्यायन के कठिन तप से प्रसन्न होकर उनके घर में उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए वे माता कात्यायनी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनकी उपासना करने का बीज मंत्र इस प्रकार है। “कात्यायनीः क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः”
कालरात्रि
माता का सातवां स्वरूप कालरात्रि है, जिसमें काल यानी मृत्यु तुल्य संकटों को भी हरने की शक्ति व्याप्त हो, उन्हें माता कालरात्रि कहा जाता है। माता के इस रूप के पूजन से संकटों का नाश होता है। मां कालरात्रि की उपासना का बीज मंत्र इस प्रकार है। “कालरात्रिः क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः”
महागौरी
शिव को पाने के लिए जब माता पार्वती ने कठिन तप किया तो तप के प्रभाव से उनका रंग काबला पड़ गया। तपस्या से प्रसन्न होने के बाद महादेव ने गंगा के पवित्र जल से उनके शरीर को धोया और उनका शरीर विद्युत प्रभा के समान कांतिमान-गौर हो उठा। तभी नाम महागौरी पड़ा। नवरात्रि के आठवें दिन माता के इस रूप की पूजा की जाती है। महागौरी की साधना करने का बीज मंत्र इस प्रकार है। “महागौरीः श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नमः”
सिद्धिदात्री
माता का वो रूप जो हर प्रकार की सिद्धि से संपन्न है, उसे सिद्धिदात्री कहा जाता है। माता के इस रूप का पूजन करने से सिद्धियों की प्राप्ति की जा सकती है।इनकी उपासना का बीज मंत्र इस प्रकार से है। “सिद्धिदात्रीः ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः”