- कुलपति ने स्थाई और दीर्घकालीन खाद व उर्वरक प्रायोगिक शोध पर व्यापक चर्चा की वकालत की
रांची। झारखंउ की राजधानी रांची के कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में वर्ष 1956 से स्थाई खाद प्रायोगिक शोध हो रहा है। वर्ष 1972 से दीर्घकालीन उर्वरक प्रायोगिक शोध कार्यक्रम लगातार चल रहा है। विवि के कृषि संकाय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित प्रायोगिक फार्म में खाद एवं उर्वरक और चूना के प्रयोग का असर फसलों पर दिखता है। लगातार क्रमश: 68 एवं 49 वर्षो के शोध में मृदा वैज्ञानिकों को किसानों के लिए लाभकारी नतीजे मिले है।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने इन शोध कार्यक्रमों से मिले तकनीकियों को झारखंड सहित पूर्वी क्षेत्र के राज्यों के लिए बेहद उपयोगी बताया है। उक्त बातें मृदा विभाग के प्रायोगिक फील्ड विजिट के दौरान कही। उन्होंने विभाग को पूर्वी क्षेत्र राज्यों में दीर्घकालीन उर्वरक प्रायोगिक शोध कार्य से जुड़े वैज्ञानिकों के साथ विचार मंथन के लिए एक दिवसीय सेमिनार आयोजित करने का निर्देश दिया।
कुलपति ने विभाग के वैज्ञानिक दल के साथ विभिन्न शोध परियोजना अधीन संचालित प्रायोगिक फार्म में गेहूं, तीसी, सरसों एवं मटर की खड़ी फसल पर तापमान में कमी का प्रभाव एवं मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर किये जा रहे शोध की जानकारी ली।
मौके पर मृदा वैज्ञानिक डॉ पी महापात्रा ने स्थाई खाद प्रायोगिक शोध एवं दीर्घकालीन उर्वरक प्रायोगिक शोध के विभिन्न तकनीकी उपलब्धियों की जानकारी दी। कुलपति ने फसल प्रदर्शन पर संतोष जताया। सालवेनिया मोलेस्टा के प्रयोग से गेहूं की खेती में उर्वरक बचत के शोध की सराहना की। बताते चले कि विभाग के मृदा वैज्ञानिक भूपेन्द्र कुमार को विवि के बड़े तालाब में प्राकृतिक ढंग से उगे सालवेनिया मोलेस्टा (फर्न) का आलु एवं सोयाबीन फसल की खेती में प्रयोग का बढ़िया परिणाम मिला है।
अध्यक्ष मृदा डॉ डीके शाही ने विभाग के प्रायोगिक फार्म में तरल यूरिया एवं तरल डीएपी सहित 12 प्रायोगिक शोध की जानकारी दी। चूना के साथ संतुलित मात्रा में उर्वरक, संतुलित उर्वरक के साथ फार्म यार्ड मेंनयोर और गोबर खाद के साथ असंतुलित मात्रा में उर्वरक के प्रयोग से अच्छी उपज लेने की बात किसानों के लिए कही।
अपर निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने प्रायोगिक प्रादर्श के अवलोकन में शोधरत पीजी एवं अध्ययनरत यूजी छात्र-छात्रा, किसान एवं प्रसार कर्मियों को शामिल कर प्रत्यक्ष अनुभव सीख से अवगत कराने का सुझाव दिया।
मौके पर डॉ बीके अग्रवाल, डॉ राकेश कुमार, डॉ पीबी साहा, डॉ अरविन्द कुमार, डॉ एसबी कुमार एवं भूपेंद्र कुमार भी मौजूद थे।