चिदंबरम ने एनसीटी संशोधन विधेयक को बताया अलोकतांत्रिक

देश नई दिल्ली
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  • दिल्ली की विधायी शक्ति बढ़ाने की जगह इसे और पंगु किया जा रहा

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक-2021 के संसद में पेश किए जाने के मुद्दे पर तमाम विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इस क्रम में पूर्व वित्त मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिंदबरम ने भी नरेन्द्र मोदी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव दिल्ली की विधायी शक्ति को बढ़ाने को लेकर लाना था लेकिन केंद्र ने दिल्ली की सरकार को पंगु बनाने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा कि एनसीटी संशोधन विधेयक अलोकतांत्रिक और दिल्ली के लोगों का अपमान है।

पी. चिदंबरम ने मंगलवार को ट्वीट कर कहा कि दिल्ली में लागू होने वाले जीएनसीटी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन प्रतिगामी, लोकतांत्रिक और दिल्ली के लोगों का अपमान है। कहां तो कोशिश दिल्ली की विधायी शक्ति को बढ़ाने को लेकर करने की जरूरत थी लेकिन कदम इसके विपरित उठाये गए। प्रस्तावित संशोधन दिल्ली सरकार को एक नगरपालिका से कम कर देंगे और किसी भी प्रकार की प्रतिनिधि सरकार के लोगों को लूट लेंगे।

एक ट्वीट में चिदंबरम ने लिखा कि प्रस्तावित संशोधनों के तहत केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त उपराज्यपाल अपने मालिक की इच्छा के अनुसार सभी शक्तियों का प्रयोग करने वाला वायसराय बन जाएगा। इसीलिए जरूरी है कि लोग इस संशोधन का विरोध करें। उन्हेंने यहां तक कहा कि विपक्ष को संशोधन के खिलाफ मतदान करना चाहिए।

इससे पहले, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2021 को लेकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ‘एनसीटी संशोधन विधेयक गैर-संवैधानिक है। यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। निर्वाचित सरकार पर अंकुश लगाने वाला है। ये विधेयक विधायकों को पिंजड़े में कैद प्रतिनिधित्व वाला दर्शाता है।’ सिब्बल ने केंद्र सरकार के इस कदम को सत्ता के अहंकार का एक और उदाहरण करार दिया है।

दरअसल, दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्तितों में बढ़ोतरी की मंशा से केंद्र की मोदी सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक-2021 पेश किया है। इसके तहत दिल्ली के उपराज्यपाल को अतिरिक्त शक्तियां मिल सकती हैं, जिसमें विधानसभा से अलग मामलों में राज्य सरकार को उनकी मंजूरी लेनी होगी। वहीं, संशोधनों के मुताबिक, दिल्ली सरकार को विधायिका से जुड़े फैसलों पर उपराज्यपाल से 15 दिन पहले और प्रशासनिक फैसलों पर करीब सात दिन पहले मंजूरी लेनी होगी। इसी को लेकर आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस ने अपना विरोध दर्ज कराया है।