- कुरमी/कुड़मी महतो जाति को एसटी में शामिल करने की मांग अनुचित
लातेहार। महुआडांड़ अनुमंडल क्षेत्र के आदिवासी संगठनों, मुखियाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं द्वारा 26 अक्टूबर एक भव्य जनसभा एवं रैली का आयोजन किया गया। रैली में हजारों की संख्या में आदिवासी पुरुष, महिलाएं और युवा पारंपरिक पोशाकों एवं बैनरों के साथ शामिल हुए।
रैली के बाद राष्ट्रपति को एक विस्तृत ज्ञापन भेजा गया। इसमें झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के कुरमी/कुड़मी महतो जाति को अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में शामिल करने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया गया।
सभा में वक्ताओं ने कहा कि कुरमी/कुड़मी महतो जाति आदिवासी समाज की परंपरागत, सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताओं पर खरी नहीं उतरती। उन्हें एसटी सूची में शामिल करने की मांग संविधान, इतिहास और सामाजिक न्याय—तीनों के विरुद्ध है।
आदिवासी नेता शशि पन्ना ने कहा, “जान देंगे, लेकिन कुड़मी को आदिवासी बनने नहीं देंगे। इनकी मांग को केंद्र सरकार ने पूर्व में भी खारिज कर दिया है, लेकिन फिर भी ये लोग दबाव की राजनीति कर एसटी का दर्जा पाना चाहते हैं। इसे आदिवासी समाज कभी बर्दाश्त नहीं करेगा।”
केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष अजय तिर्की ने कहा कि हम आदिवासी समुदाय 2018 से ही कुड़मी को आदिवासी बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं। जब तक ये लोग अपनी मांग वापस नहीं लेते, हमारा आंदोलन जारी रहेगा।
लेखक एवं समाजसेवी ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा, “कुड़मी समाज ने पिछले दो दशकों से एसटी का दर्जा पाने के लिए अपनी पूरी राजनीतिक और आंदोलनात्मक ताकत झोंक दी। हालांकि बार-बार उनकी मांग खारिज की गई, क्योंकि वे आदिवासी नहीं हैं। अब उन्हें फर्जी इतिहास और झूठे तथ्यों का प्रसार बंद करना चाहिए।”
आदिवासी नेत्री ज्योत्सना केरकेट्टा ने कहा कि आदिवासी समाज प्वाइंट टू प्वाइंट बात करता है, तो इनका ज्वाइंट टू ज्वाइंट में दर्द होता है।
सभा का मंच संचालन अजित पाल कुजूर ने किया। कार्यक्रम के आयोजन समिति में राजेश टोप्पो, निर्मला टोप्पो, बिनोद खलखो, विक्रम मिंज, अजीता तिग्गा, कानता एक्का, सोहराई मुंडा, फितुल लोहारा, जिला परिषद सदस्य एस्टेला नगेसिया, प्रखंड प्रमुख कंचन कुजूर, फुलजेनस मिंज, मनीना कुजूर, संजय तिग्गा, सत्यप्रकाश हुरहुरिया, आलोक लकड़ा, सुखदेव लोहारा, लॉरेंस कुजूर, बिनोद कुजूर, टेलीफोर तिथियों, राजकुमार खेरवार, बालेश्वर मिंज सहित अनेक जनप्रतिनिधि एवं सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
सभा में सर्वसम्मति से यह मांग की गई कि कुरमी/कुड़मी महतो जाति को झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने संबंधी किसी भी प्रस्ताव या अनुशंसा को राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकार किया जाए। संविधान और TRI रिपोर्टों के आधार पर यथास्थिति बनाए रखी जाए।
ज्ञापन के मुख्य तथ्य
TRI झारखंड (2004) की रिपोर्ट में कुरमी/कुड़मी महतो को ST सूची में शामिल नहीं करने की अनुशंसा की गई है।
भारत सरकार द्वारा 31 जुलाई, 2015 के पत्र में भी उनकी मांग खारिज की जा चुकी है।
Census of India (1931 एवं 1951), District Gazetteer (Puruliya 1985), और Census of Mayurbhanj State (1931) में भी यह जाति कृषक (sat shudra) समाज के रूप में दर्ज है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (State of Maharashtra vs Milind, 2000) के अनुसार ST सूची में संशोधन केवल राष्ट्रपति कर सकते हैं।
CNT Act (1938) और वर्तमान OBC सूची में भी कुरमी/कुड़मी महतो जाति को पिछड़ा वर्ग बताया गया है।
TRI रिपोर्ट में कहा गया है कि यह जाति सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से आदिवासी समाज से अधिक सशक्त है। अतः इन्हें ST सूची में शामिल करना मूल आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के विपरीत होगा।
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