टीएसएएफ प्रशिक्षक मोहन रावत ने फतह किया माउंट एवरेस्ट

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  • दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराकर टीएसएएफ की विरासत को आगे बढ़ाया

जमशेदपुर। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) के समर्पित सीनियर प्रशिक्षक मोहन रावत ने 18 मई, 2025 को सुबह 5:20 बजे (नेपाल समय के अनुसार) दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को सफलतापूर्वक फतह किया। यह उपलब्धि टीएसएएफ के लिए एक और गौरवशाली उपलब्धि है। 1984 में बछेंद्री पाल की ऐतिहासिक चढ़ाई के बाद से अब तक टीएसएएफ के मार्गदर्शन में 13 पर्वतारोही एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक पहुंच चुके हैं।

मोहन ने 10 अप्रैल, 2025 को भारत से अपनी साहसिक यात्रा की शुरुआत की। काठमांडू में शुरुआती परमिट विलंब के बावजूद, उन्होंने खुम्बू क्षेत्र से ट्रेक करते हुए 3 मई को एवरेस्ट बेस कैंप (17,500 फीट) पहुंचने में सफलता पाई। अनुकूलन प्रक्रिया के तहत उन्होंने 2 मई को माउंट लोबुचे ईस्ट (20,075 फीट) की सफल चढ़ाई भी पूरी की।

उनकी समिट रोटेशन की शुरुआत 8 मई को हुई, जब वे बेस कैंप से कैंप 1 होते हुए कैंप 2 पहुंचे और फिर कैंप 3 तक चढ़ाई की। इसके बाद 11 मई को वे वापस बेस कैंप लौट आए। अंतिम समिट पुश 14 मई की रात 1 बजे शुरू हुआ। खतरनाक खुम्बू आइसफॉल को पार करते हुए वे उसी सुबह कैंप 2 पहुंचे। फिर 16 मई को कैंप 3 और 17 मई को (साउथ कोल, 26,400 फीट) स्थित कैंप 4 पर पहुंचे। आखिरकार, 18 मई की सुबह उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चोटी फतह की और लगभग 15 मिनट वहां बिताने के बाद उतरने की शुरुआत की।

मोहन रावत के साथ इस अभियान में अनुभवी शेर्पा गाइड लाख्पा शेर्पा मौजूद थे। उन्हें नेपाल-आधारित आउटफिटर ‘एशियन ट्रेकिंग’ का सहयोग भी प्राप्त हुआ। टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के चेयरमैन और टाटा स्टील के वाइस प्रेसिडेंट (कॉरपोरेट सर्विसेज) डी.बी. सुंदरा रामम ने इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि मोहन रावत की माउंट एवरेस्ट पर सफल चढ़ाई टीएसएएफ के लिए गर्व का एक अद्भुत क्षण है। उत्तरकाशी के एक छोटे से गांव से निकलकर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी तक पहुंचना सिर्फ एक पर्वतारोहण नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक यात्रा है—जो मोहन रावत के अदम्य साहस, अनुशासन और जुनून की मिसाल है।

श्री रामम ने कहा कि यह उपलब्धि उस रोमांचकारी और जुझारू भावना को दर्शाती है जिसे हम टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन में पोषित करते हैं। यह हमें याद दिलाती है कि जब इरादे बुलंद हों और लक्ष्य स्पष्ट, तो कोई शिखर असंभव नहीं। मोहन की सफलता न सिर्फ हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करती है, बल्कि हमें जमीनी स्तर की प्रतिभाओं को आगे लाने और मानवीय क्षमताओं की सीमाओं को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित भी करती है।

मोहन रावत की एवरेस्ट चढ़ाई की यात्रा दृढ़ संकल्प और समर्पण की एक प्रेरणादायक कहानी है। उत्तरकाशी के अगोड़ा गांव के रहनेवाले मोहन बेहद साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं। कभी उन्होंने राफ्टिंग गाइड के रूप में काम किया और डोडीटाल ट्रेक पर यात्रियों के लिए खुद की मैगी की छोटी सी दुकान भी चलाते थे।

मोहन रावत पिछले 20 वर्षों से टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) से जुड़े हुए हैं। उन्होंने पर्वतारोहण, स्कीइंग और राफ्टिंग में गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया है। अपने अब तक के पर्वतारोहण सफर में वे कई दुर्गम और प्रतिष्ठित चोटियों पर सफलतापूर्वक चढ़ाई कर चुके हैं, जिनमें चामसर और लुंगसर कांगड़ी, जोगिन I और III, कांग यात्से I और II, भागीरथी II, माउंट लोबुचे ईस्ट, स्टोक कांगड़ी, थेलू, जो जोंगो, माउंट रुदुगैरा और माउंट कानामो जैसी चोटियां शामिल हैं।

मोहन रावत 2018 की मिशन गंगे अभियान का हिस्सा रहे, जिसे देश के प्रधानमंत्री द्वारा हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया था। इसके अलावा, वे 2022 की ट्रांस-हिमालयन अभियान में भी शामिल रहे, जिसका नेतृत्व पद्मश्री बछेंद्री पाल ने किया था। यह ऐतिहासिक अभियान 4,841 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए 35 पहाड़ी दर्रों को पार कर भारत के हिमालयी क्षेत्रों से गुज़रा।

माउंट एवरेस्ट की तैयारी के तहत मोहन ने कई उच्च ऊंचाई वाले ट्रेक, लेह में शीतकालीन प्रशिक्षण और ट्रिपल पास चैलेंज (दारवा पास – बाली पास – बोरासू पास) जैसे कठिन अभियानों को भी सफलतापूर्वक पूरा किया। मोहन 2022 से माउंट एवरेस्ट अभियान की तैयारी में जुटे थे, जिसमें उन्होंने अपनी सहनशक्ति, तकनीकी कौशल और उच्च ऊंचाई पर टिके रहने की क्षमता को लगातार निखारा। एवरेस्ट की चोटी तक उनका यह सफर उनके अदम्य साहस, संघर्षशीलता और पर्वतों के प्रति गहरे जुनून का जीता-जागता प्रमाण है।

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