रांची। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों ने खेसारी की चारा फसल की उन्नत किस्म बिरसा खेसारी-1 विकसित की है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने चारा फसल संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत इस किस्म को देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र और मध्य क्षेत्र के लिए जारी करने की अनुशंसा की है।
इसकी औसत उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर 190 क्विंटल है, जो देश में खेसारी चारा फसल के अबतक के सर्वोत्तम प्रभेद (नेशनल चेक) महाटेवरा से 6.3 प्रतिशत अधिक है। इसमें क्रूड प्रोटीन की मात्रा 20.7 प्रतिशत है जो नेशनल चेक की तुलना में 4-5 प्रतिशत अधिक है। इससे प्रतिदिन प्रति हेक्टेयर 2.65 क्विंटल हरा चारा की उपज प्राप्त होती है जो नेशनल चेक की तुलना में अधिक है।
देश के उत्तर पूर्व क्षेत्र में लीफ ब्लाइट रोग के प्रति माध्यम प्रतिरोधी यह प्रभेद झारखंड की परिस्थितियों में भी समय पर बुआई, सामान्य उर्वरता स्तर वाली मिट्टी तथा सीमित सिंचाई परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 8.3 क्विंटल बीज की प्राप्ति होती है जो नेशनल चेक की तुलना में 15% अधिक है।
बीएयू के पौधा प्रजनन वैज्ञानिक डॉ योगेंद्र प्रसाद और सस्यविद डॉ बिरेंद्र कुमार पिछले लगभग एक दशक से इस किस्म के विकास पर शोध कर रहे थे। पिछले 22-23 अप्रैल, 2025 को कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय (धारवाड़, कर्नाटक) में चारा फसल संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की वार्षिक समूह बैठक में दोनों वैज्ञानिकों ने भाग लिया, जहां इस किस्म को जारी करने की अनुशंसा की गयी।
बैठक में आईसीएआर के उप महानिदेशक डॉ डीके यादव, सहायक महानिदेशक डॉ एस के प्रधान, भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के निदेशक डॉ पंकज कौशल और परियोजना समन्वयक डॉ विजय यादव सहित देशभर के लगभग 100 वैज्ञानिकों ने भाग लिया। चारा अनुसंधान कार्यों का विश्लेषण किया। अभी पूरे देश में हरा चारा की कमी लगभग 11.24 प्रतिशत है, जबकि झारखंड में हरा चारा की कमी 46 प्रतिशत और सूखा चारा की कमी 23 प्रतिशत है।
बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग की अध्यक्ष डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती, निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह और कुलपति डॉ एससी दुबे ने इस किस्म के विकास के लिए संबंधित वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
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