- तेजी से नीचे जा रहे भूगर्भ जलस्तर को लेकर सरकार गंभीर
रांची। झारखंड की राजधानी रांची की तपती और प्यासी धरती की प्यास बुझाने एवं भविष्य में भीषण जल संकट से बचने के लिए वर्षा जल संचयन व संरक्षण आवश्यक है। सतही जल उपलब्ध नहीं होने के कारण लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए भूगर्भ पर निर्भर हैं। इसके कारण भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। यह गंभीर स्थिति है। इसे लेकर राज्य सरकार गंभीर भी है। सरकार ने विशेष कर रांची नगर निगम को सभी आवश्यक उपाय कर जन जागरुकता अभियान चलाकर रेन वाटर हार्वेस्टिंग कराने का निर्देश दिया है।
इनके लिए हार्वेस्टिंग जरूरी
वर्तमान में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए नियम बना है। इसके अनुसार 3000 स्क्वायर फीट से अधिक वाले आवासों के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग जरूरी है। इस नियम के तहत लगभग 60 हजार आवास रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं कराए हैं, जबकि सभी पानी का उपयोग करते हैं। नियम के तहत रेन वाटर हार्वेस्टिंग के दायरे में 79,772 आवास आते हैं। इसमें से 52,668 आवासों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग लगा हुआ है। शेष, 27,104 आवासों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है। इसके लिए रांची नगर निगम जल्द ही सर्वे कराकर इन आवासों को सिस्टम लगवाने का प्रयास करेगा। इन आवासों के मालिकों को जुर्माना स्वरूप डेढ गुना होल्डिंग टैक्स देना पड़ रहा है।
प्रचार-प्रसार अभियान चला रहा
रांची नगर निगम रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए फिलहाल प्रचार प्रसार अभियान चला रहा है। इसके लिए लोगों को सूचना देने, शिक्षित करने और संचार की गतिविधियां भी चला रहा है। लगभग 15000 पंपलेट का वितरण कराने के साथ ही शहर के 30 स्थलों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग से संबंधित होर्डिंग भी लगाये जाएंगे। इसके अलावा एनजीओ को भी जनजागरण अभियान चलाने के लिए घर- घर जाकर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लाभ को बताने के लिए लगाया गया है। पानी संकट से बचने के लिए स्वयं लोगों को आगे आना होगा, नहीं तो रांची के लोगों को भी बंगलोर की तरह पानी के टैंकर पर निर्भर रहना होगा। बंगलोर में तो अब पानी का टैंकर भी पहले से बुकिंग करने पर मिल रहा है।
तीन एजेंसी को कार्य आवंटित
रांची नगर निगम ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग का काम करने वाली तीन एजेसिंयो को कार्य आवंटित किया है। एक आवास में रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर लगभग 40 हजार रुपये खर्च आते हैं। रेन वाटर हार्वेस्टिंग कराकर जीवन भर जल संकट से बचा जा सकता है। अधिक भूगर्भ जल दोहन से बोरिंग फेल हो रहे है। कुंआ सूख रहे हैं। पौधरोपण नहीं होने से वर्षा कम हो रही है। इसका प्रतिफल यह है कि नदी, नहर, तालाब, आहर, पोखर बंजर भूमि के रूप में तब्दील हो रहे हैं।
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