जेल में अब कैदी के पास फोन मिला तो होगी 3 साल की सजा

नई दिल्ली देश
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नई दिल्ली। बड़ी खबर आई है, गृह मंत्रालय ने जेल कानून में सुधार को लेकर नया ड्राफ्ट तैयार किया है। इसमें कई बड़े बदलाव किए गए हैं। इनमें कैदियों को जेल में फोन रखने पर तीन साल की सजा, नशे की लत वाले, पहली बार अपराध करने वाले, हाई रिस्क और विदेशी कैदियों को अलग रखने जैसे प्रावधान के सुझाव दिए गए हैं।

इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने पर कैदियों को लीव देने का प्रावधान शामिल है, ताकि उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। इस ड्राफ्ट के मुताबिक, कैदियों की निगरानी के लिए तकनीकी का इस्तेमाल किया जाएगा। कैदी की नियमित तलाशी भी शामिल है, ताकि प्रतिबंधित वस्तुओं का इस्तेमाल रोका जा सके।

इसके अलावा कैदियों के मूवमेंट पर नजर रखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की इच्छा की शर्त पर जेल से छुट्टी दी जा सकती है। अगर कैदी किसी भी तरह का उल्लंघन करता है, तो उसकी लीव और भविष्य में किसी भी तरह की लीव रद्द कर दी जाएगी।  

ड्राफ्ट में मोबाइल फोन और प्रतिबंधित सामग्री का इस्तेमाल करने पर सजा का सुझाव दिया गया है। इसमें कहा गया है कि जेल के कैदियों को जेलों में मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार उपकरण रखने या उनका इस्तेमाल करने से मना किया गया है।  

केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला द्वारा यह पत्र मई में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजा गया था। इसे सोमवार को गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इसके मुताबिक, मंत्रालय ने जेल कानून में बदलावों के लिए स्वतंत्रता से पहले के कानून जेल अधिनियम 1894 और कैदी अधिनियम 1900 में बदलाव किया है। और आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 को अंतिम रूप दिया है। 

भल्ला ने पत्र में कहा, समय बीतने और कैदियों के सुधार और पुनर्वास की विचारधारा के विकास के साथ इन अधिनियमों के कई प्रावधान आज के समय में पुराने और अप्रचलित हो गए हैं। प्रस्तावित कानून को अपने अधिकार क्षेत्र में अपनाकर इससे लाभ प्राप्त करें। 

ड्राफ्ट में कहा गया कि जो कोई भी आगंतुक या जेल अधिकारी अधिनियम के किसी भी प्रावधान या उसके तहत बनाए गए नियमों का उल्लंघन करते हुए, ऐसे (प्रतिबंधित) उपकरणों को रखता या इस्तेमाल करता पाया जाता है। या किसी कैदी को देने या देने का प्रयास करता है। उस पर दोषसिद्धि पर तीन साल से अधिक की अवधि के लिए कारावास या 25 हजार रुपये से अधिक का जुर्माना या दोनों दंडनीय होंगे।

इसमें कहा गया है कि जेलों को इस तरह से डिजाइन किया जा सकता है, ताकि विभिन्न श्रेणियों के कैदियों को अलग रखने और अलग-अलग रहने की सुविधा मिल सके या महिलाओं, ट्रांसजेंडर, विकलांग व्यक्तियों, संक्रामक रोग या मानसिक बीमारी से पीड़ित कैदियों या मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले या विचाराधीन कैदियों, दोषी, आदतन अपराधियों को अलग अलग रखकर उनकी विशेष जरूरतों को पूरा किया।  
 
ड्राफ्ट के मुताबिक, जहां भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में स्टैंडअलोन हाई सिक्योरिटी जेल का प्रावधान नहीं है, वहां हाई रिस्क वाले अपराधियों, दुर्दांत अपराधियों और आदतन अपराधियों को अलग किया जाएगा और जेल के अलग-अलग बैरकों में रखा जाएगा। उन्हें अन्य जेल कैदियों, युवा अपराधियों, पहली बार अपराध करने वालों आदि के साथ घुलने-मिलने से दूर रखा जाए। 

इसमें सुझाव दिया गया कि सरकार जेलों और सुधारात्मक संस्थानों की विभिन्न श्रेणियां स्थापित कर सकती है, जैसे केंद्रीय जेल, जिला जेल, उप जेल, खुली सुधार संस्थाएं, उच्च सुरक्षा जेल, विशेष महिला जेल, युवा अपराधियों के लिए जेल आदि। ड्राफ्ट में कैदियों को उनकी उम्र, लिंग, सजा की अवधि, सुरक्षा और सुरक्षा आवश्यकताओं, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं, सुधारात्मक आवश्यकताओं के मुताबिक वर्गीकृत करने का सुझाव दिया गया है। 

इसमें कैदियों को सब कैटेगरी में भी बांटने का सुझाव दिया गया है। जैसे नशीली दवाओं के आदी और शराबी अपराधी, पहली बार अपराध करने वाले, विदेशी कैदी, बूढ़े और अशक्त कैदी (65+ वर्ष), संक्रामक/पुरानी बीमारियों से पीड़ित कैदी, मानसिक बीमारी से पीड़ित कैदी, सजा पाए कैदी, बच्चों वाली महिला कैदी और युवा अपराधी जैसी कैटेगरी शामिल हैं।