रांची (Jharkhand)। झारखंड में एक अनोखा विश्वविद्यालय है। यहां का हर महत्वपूर्ण पद प्रभार में है। इसकी वजह से विश्वविद्यालय की स्थिति लगातार खराब हो रही है। इसके अधीन संचालित महाविद्यालय की मान्यता भी खतरे में आ चुकी है। कई बार संबंधित संस्थानों से नोटिस तक आ चुका है।
राज्य का एकमात्र कृषि विवि
झारखंड की राजधानी रांची के कांके में यह अनोखा विश्वविद्यालय स्थित है। इसका नाम बिरसा कृषि विश्वविद्यालय है। यह राज्य का एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय है। वर्तमान में विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार कृषि सचिव अबू बकर सिद्दीख पी संभाल रहे हैं। तत्कालीन कुलपति का कार्यकाल पूरा होने से पहले नए वीसी के चयन के लिए कमेटी बनी थी। हालांकि अब तक स्थायी कुलपति की नियुक्ति नहीं हुई है।
ये महत्वपूर्ण पद प्रभार में
डीन (एग्रीकल्चर), डीन (वेटनरी), डीन (फॉरेस्ट्री), कुलसचिव, डिप्टी रजिस्टार (एकेडमी), डिप्टी रजिस्टार (एग्जाम), अस्सिटेंट रजिस्टार (एग्रीकल्चर), अस्सिटेंट रजिस्टार (वेटनरी), अस्सिटेंट रजिस्टार (फॉरेस्ट्री), निदेशक प्रशासन, उपनिदेशक प्रशासन, सहायक निदेशक प्रशासन (नियुक्ति), सहायक निदेशक प्रशासन (स्थापना), नियंत्रक, सहायक नियंत्रक, निदेशक (पीआईएम), निदेशक अनुसंधान, अपर निदेशक अनुसंधान, उपनिदेशक अनुसंधान (मुख्यालय), उपनिदेशक अनुसंधान (पशुचिकित्सा), निदेशक प्रसार शिक्षा, सहायक निदेशक प्रसार शिक्षा, डीआरआई कम डीन पीजी, निदेशक छात्र कल्याण, डिप्टी डायरेक्टर (वर्क्स एंड प्लांट), डायरेक्टर (सीड एंड फॉर्म), कुलपति के सचिव आदि। इसके अलावा गोड्डा, देवघर, खूंटपानी, गुमला, हंसडीहा, गढ़वा, कांके में स्थित नए कॉलेजों के सह अधिष्ठाता भी प्रभार में है।
प्रभारी को सारी शक्ति
कृषि सचिव को कुलपति का प्रभार सौंपे जाने पर राजभवन ने आदेश जारी किया था। जारी आदेश में उन्हें सिर्फ रूटीन कार्य करने की इजाजत दी गई है। किसी तरह के पॉलिसी मैटर पर निर्णय लेने से पहले राजभवन से अनुमति लेने का निर्देश दिया गया है। हालांकि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में प्रभारी को ही सभी तरह के अधिकार दे दिये जाते हैं। वह हर तरह का डिसीजन लेते हैं। यहां तक की किसी अन्य संस्थान में किसी पद के लिए अप्लाई करने के क्रम में वह खुद को प्रभारी नहीं बताते हैं। वैसे जानकारों का कहना है कि प्रभारी को हर तरह का अधिकार नहीं मिलने पर विश्वविद्यालय पूरी तरह ठप हो जाएगा।
स्थिति की जानकारी सभी को
समय-समय पर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपतियों ने राजभवन, राज्य सरकार सहित सभी को स्थिति से अवगत कराया है। विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत करने के दौरान राज्यपाल, कृषि मंत्री, कृषि सचिव को मैनपावर की कमी होने की बात बताई है। यहां तक बताया है कि वर्तमान विवि में करीब 70 फीसदी से अधिक पद खाली हैं। कॉलेजों की मान्यता रद्द करने की चेतावनी तक दी जा रही है।
नियुक्ति की इजाजत नहीं
विश्वविद्यालय में पूर्व में नियुक्त प्रोफेसर और कर्मचारी लगातार रिटायर हो रहे हैं। पद खाली होने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन नियुक्ति नहीं कर पा रहा है। तत्कालीन कृषि सचिव अरुण कुमार सिंह के कार्यकाल में विश्वविद्यालय की नियुक्ति के अधिकार को छीन लिया गया था। प्रोफेसर के पदों के लिए जेपीएससी को नियुक्ति का अधिकार सौंप दिया गया। इसी तरह तृतीय श्रेणी के पदों के लिए जेएसएससी को यह अधिकार दिया गया है।
अधिकार लेने की ये वजह
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एसएन पांडेय और डॉ एनएन सिंह के कार्यकाल में कई पदों पर नियुक्ति हुई थी। इसमें व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी किए जाने की शिकायत आई थी। इसकी जांच भी विधानसभा की कमेटी से कराई गई थी। रिपोर्ट राजभवन और सरकार को सौंपी गई थी। इसमें अनियमितता बरते जाने की पुष्टि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ पांडेय के कार्यकाल में विज्ञापित पदों से कई गुना ज्यादा नियुक्ति की गई। योग्यता का पालन भी नहीं किया गया।
कमेटी में प्रतिनिधि भी शामिल
डॉ पांडे और डॉ सिंह के कार्यकाल में हुई हर तरह की नियुक्ति के लिए कमेटी बनी थी। कमेटी में राज्य सरकार और राजभवन के प्रतिनिधि भी शामिल थे। इसके बाद भी यहां व्यापक पैमाने पर गड़बड़ी हुई। इस गड़बड़ी के लिए कमेटी में शामिल राज्य सरकार और राजभवन के प्रतिनिधियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। हालांकि विश्वविद्यालय से नियुक्ति का अधिकार जरूर छीन लिया गया।
जेपीएससी खुद जांच के दायरे में
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से नियुक्ति का अधिकार छीनकर जेपीएससी को सौंप दिया गया है। मजेदार यह है कि जेपीएससी खुद ही विवादित है। यहां पहले बैच से अब तक हुई लगभग सभी नियुक्ति जांच के घेरे में है। सीबीआई जांच तक हो चुकी है। इसमें गड़बड़ी की बात प्रमाणित हो चुकी है। कई मामले तो कोर्ट में चल रहे हैं।
कृषि विभाग का दोहरा रवैया
विश्वविद्यालय के प्रति कृषि विभाग का दोहरा रवैया है। तत्कालीन कुलपति डॉ ओंकारनाथ सिंह ने चतुर्थ पद पर बहाली की प्रक्रिया शुरू की थी। विज्ञापन निकाला था। नियुक्ति पर कृषि विभाग ने रोक लगा दिया। रोक की वजह पूर्व में हुई गड़बड़ी की बात बताई गई। हालांकि पूर्व में हुई गड़बड़ी पर अब तक विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभाग गड़बड़ी की बात कहता है और तब के नियुक्त सभी अधिकारी और कर्मचारियों के वेतन के लिए पैसा भी दे रहा है। सभी के पुनरीक्षित वेतन की मंजूरी भी दे चुका है।
कभी भी बंद हो सकता है विवि
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के हालात दिन व दिन बिगड़ते जा रहे हैं। स्थिति यह है कि यह कभी भी बंद हो सकता है। लगातार रिटायरमेंट के बाद एक-एक अधिकारी के जिम्मे में चार से पांच महत्वपूर्ण पदों का भार है। इससे कामकाज पर असर पड़ रहा है। विद्यार्थी की पढ़ाई भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
कृषि विवि को नियुक्ति का अधिकार
देश में अधिकतर कृषि विश्वविद्यालय को नियुक्ति का अधिकार है। इसके कारण वहां की स्थिति अधिक बुरी नहीं है। झारखंड में जेपीएससी नियुक्ति नहीं कर पा रही है। बीएयू से अधिकार से छीन लिया गया है। इसके कारण कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा है। नियुक्ति कमेटी में राज्य सरकार और राजभवन के प्रतिनिधि होते हैं। ऐसी में बीएयू को नियुक्ति का अधिकार देकर उसकी निगरानी करने की जरूरत है ना की दूसरे के भरोसे नियुक्ति की राह देखने की।
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