जमशेदपुर। भारतीय संस्कृति जिन मूल नैतिक सिंद्धान्तों पर आधारित है उनमें सबसे महत्वपूर्ण है दान। हज़ारों सालों के इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण है जिन्होंने अपनी दानशीलता के कारण इतिहास के पन्नों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। आधुनिक काल में, ऐसी ही एक महान शख्सियत ने अपने महादान से न सिर्फ टाटा स्टील के अस्तित्व को बचाने में भूमिका निभाई बल्कि औधोगिक भारत के भविष्य को संवारने का भी काम किया।
दृढ़ इच्छाशक्ति और उदारता का उदाहरण
मेहरबाई टाटा सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक उदाहरण है दृढ़ इच्छाशक्ति और उदारता का। उनका व्यक्तित्व हीरे से भी ज्यादा चमकदार है, और उन्हीं के नाम से जुड़ा है जुबिली डायमंड का नाम, जो दुनिया का 6ठा सबसे बेशकीमती हीरा है। ये हीरा न सिर्फ प्रेम की निशानी है बल्कि त्याग और बलिदान का प्रतीक भी है। कोहिनूर से आकार में दुगना यह हीरा मेहरबाई टाटा को उनके पति सर दोराबजी टाटा ने उपहार स्वरूप दिया था, लेकिन जब कर्तव्य ने पुकारा तो मेहरबाई ने हजारों लोगों के भविष्य को सुरक्षित करना बेहतर समझा। उन्होंने एक पल भी सोचे बिना इस बेशकीमती हीरे को मानवता के लिए कुर्बान कर दिया। ऐसी मिसालें दुनिया में कम ही मिलती है और मेहरबाई का जीवन ऐसी अनेकों कहानियों की एक किताब है। आधुनिक भारत के निर्माण में उनके योगदान को स्वर्ण नहीं बल्कि हीरे के अक्षरों में लिखा जाएगा। शायद उनकी महानता का ही परिणाम है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद वित्तीय संकट से उबरने के बाद टाटा समूह ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज ना सिर्फ टाटा परिवार, बल्कि लाखों करोड़ों लोग मेहरबाई टाटा के त्याग और समर्पण के लिए उनके ऋणी है जिनकी बदौलत पूरी दुनिया मे अनगिनत लोगों के जीवन में खुशहाली लाने का श्रेय टाटा समूह की कंपनियों को जाता है।
अपनी गौरवपूर्ण विरासत को कायम रखा
जेरबाई भाभा और एच जे भाभा, मैसूर राज्य के इंस्पेक्टर-जनरल ऑफ एजुकेशन की पुत्री लेडी मेहरबाई टाटा का जन्म 10 अक्टूबर, 1879 को एक पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंने 16 साल की उम्र में अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास की, जिसके बाद उन्होंने अपने पिता के मार्गदर्शन में अंग्रेजी और लैटिन भाषा का अध्ययन किया और विज्ञान कक्षाओं के लिए कॉलेज में दाखिला लिया। एक पारसी और एक भारतीय के रूप में उन्होंने अपनी गौरवपूर्ण विरासत को कायम रखते हुए, अपने पिता से सीखे गए पश्चिमी उदारवादी आदर्शों को अपनाया।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी ‘मेहरी’
मैसूर में भाभा के घर एक दौरे के सिलसिले में जमशेतजी टाटा को 18 वर्षीय ‘मेहरी’ ने सम्मोहित कर लिया था, जो मेहरबाई को प्यार से पुकारा जाने वाला नाम था। उन्हें लगा कि मेहरी और उनके बड़े बेटे, दोराबजी टाटा की जोड़ी अच्छी लगेगी और उन्होंने दोराबजी टाटा को भाभा परिवार से मिलने की सलाह दी। जब दोराबजी टाटा ने भाभा परिवार से मुलाकात की, तो वे मेहरी के प्रति आकर्षित हो गए और 14 फरवरी, 1898 को उनका विवाह संपन्न हुआ। 1910 में जब ब्रिटिश भारत में उद्योग के प्रति योगदान के लिए दोराबजी टाटा को नाइट की उपाधि दी गई, तब से उन्हें लेडी मेहरबाई टाटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
भारत और विदेशों में यात्राएं कीं
लेडी मेहरबाई और दोराबजी टाटा दोनों को यात्रा करना पसंद था। उन्होंने भारत और विदेशों में व्यापक रूप से यात्राएं कीं। उन्होंने सर दोराबजी टाटा को खेलों के प्रति अपने जुनून, विशेष रूप से टेनिस के बारे में बताया था और उन्होंने वेस्टर्न इंडिया टेनिस टूर्नामेंट में ट्रिपल क्राउन जीता। इस दंपत्ति ने मिलकर ऑल इंडिया चैम्पियनशिप में कई खिताब जीते। वेस्टर्न प्रेस ने आश्चर्य के साथ लिखा था कि लेडी टाटा ने हमेशा ‘पूर्वी क्षेत्र की पोशाक साड़ी पहनी‘, जो टेनिस कोर्ट में खेलने के लिए कोई आसान पोशाक नहीं थी।
महिलाओं के उत्थान की हिमायती
लेडी मेहरबाई भारत में महिलाओं के उत्थान की हिमायती थीं। वह महिलाओं को खुद अपने जीवन की बागडोर संभालते हुए देखना चाहती थी। जहां भी वह यात्रा करती थी, बड़े महानगरों से लेकर सुदूर गाँवों तक, वह उनसे मिलने वाली सभी महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता का अध्ययन करती थी। उनका मानना था कि भारत का विकास केवल महिलाओं की स्थिति में उन्नति के माध्यम से ही होगा, जिसके लिए उनकी शिक्षा सर्वोपरि थी। उन्होंने महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और पुरदाह प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की वकालत की। वह बॉम्बे प्रेसीडेंसी वुमेन्स काउंसिल और फिर नेशनल काउंसिल ऑफ वूमेन की संस्थापकों में से एक बनीं और उन्होंने महिलाओं की अंतर्राष्ट्रीय परिषद में भी भारत को प्रवेश दिलाया। बाल विवाह की रोकथाम करने के लिए बनाए गए सारदा अधिनियम पर भी उनसे सलाह ली गई थी।
रेड क्रॉस सोसाइटी की सक्रिय सदस्य
वह रेड क्रॉस सोसाइटी की सक्रिय सदस्य थीं। 1919 में, उन्हें किंग जॉर्ज V द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य का कमांडर बनाया गया। महज 38 साल की उम्र में, लेडी मेहरबाई ने उस वक्त राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी जब उनके नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमण्डल ने फिजी द्वीपों की तरह ब्रिटिश उपनिवेशों में भारतीय मूल के मजदूरों के साथ होने वाले बर्ताव के सवाल पर वायसराय से मिलकर विरोध दर्ज कराया।
व्यक्तिगत संपत्ति ट्रस्ट्र के नाम किया
अपनी बीमारी के अंतिम समय के दौरान ल्यूकेमिया से पीड़ित मेहरबाई टाटा को नॉर्थ वेल्स के रूथिन में एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया। 18 जून, 1931 को उनका निधन हो गया। लेडी मेहरबाई टाटा के निधन के कुछ समय बाद, सर टाटा ने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकांश हिस्सा भारत की सबसे बड़ी जनकल्याणकारी संस्था, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के नाम कर दिया था। इसमें विभिन्न टाटा एंटरप्राइसेज के शेयर, जमीन और उनकी पत्नी मेहरबाई के जेवरात तक शामिल थे। इस ट्रस्ट को राष्ट्रीय महत्व के चार अग्रणी संस्थानों : टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, टाटा मेमोरियल सेंटर फॉर कैंसर रिसर्च ऐंड ट्रीटमेंट, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और नेशनल सेंटर ऑफ द परफॉर्मिंग आर्ट्स को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है।
जुबिली डायमंड: एक असाधारण नगीना
जुबिली डायमंड 1895 में दक्षिण अफ्रीका के जेगर्सफॉण्टीन में पाया गया था। 245.35 कैरेट वजनी यह हीरा दुनिया का छठां सबसे बड़ा हीरा और प्रसिद्ध कोहिनूर हीरे के आकार का दोगुना था। 1896 में एम्स्टर्डम में असाधारण शुद्धता वाले इस बड़े चमक रहित नगीने को इस तरह तराशा गया कि यह इसके 2 मिमी से भी कम संकीर्ण क्यूलेट पर संतुलित किया जा सके। इस हीरे को आरेंज फ्री स्टेट के राष्ट्रपति एफ डब्ल्यू रिट्ज के सम्मान में रिट्ज डायमंड के रूप में जाना जाता था। सन् 1897 में, इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया की डायमंड जुबिली का जश्न मनाने के लिए, इसे जुबिली डायमंड का नाम दिया गया। इसके तीन साल बाद, इसे पेरिस एक्सपोजिशन में प्रदर्शित किया गया, जहाँ इसने सर दोराबजी टाटा का ध्यान आकर्षित कर लिया और उन्होंने इसे अपनी पत्नी लेडी मेहरबाई को उपहार में देने के लिए लगभग 100,000 यूके पाउंड में खरीद लिया।
बेशकीमती जुबिली डायमंड को कुर्बान किया
लेडी मेहरबाई टाटा के बड़े दिल का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने टाटा समूह को बचाने के लिए इस बेशकीमती जुबिली डायमंड को कुर्बान कर दिया था। औद्योगीकरण और राष्ट-निर्माण में सर दोराबजी और लेडी मेहरबाई के निःस्वार्थ बलिदान के प्रति एक श्रद्धांजलि के रूप में वर्ष 2020 में जमशेदपुर में स्थित सर दोराबजी टाटा पार्क को नए सिरे से डिजाइन किया और यहाँ लेडी मेहरबाई टाटा की एक प्रतिमा के साथ ही टाटा स्ट्रक्चरा ट्यूब्लर स्टील सेक्शन से निर्मित 34 फीट ऊँचा ‘‘जुबिली डायमंड‘‘ स्थापित किया गया है, जो आगंतुकों के आकर्षण के मुख्य केन्द्रों में से एक है और टाटा स्टील के विकास में इस दंपति के निःस्वार्थ योगदान की याद दिलाता हैं।
दान उत्सव और लेडी मेहरबाई टाटा का महादान
यह महज़ एक संयोग ही है कि दान उत्सव और लेडी मेहरबाई टाटा की जयंती अक्टूबर महीने में मनाई जाती है। दान उत्सव, जिसे पहले जॉय ऑफ गिविंग वीक के रूप में जाना जाता था, उदारता और दान देने की भावना का उत्सव है। दयालुता और नि:स्वार्थता के अनगिनत कार्यों द्वारा चिन्हित यह एक खास अवसर है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और संगठन, समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए सहयोग करते हैं। दान उत्सव के दौरान उदारता की कई कहानियों में से, लेडी मेहरबाई टाटा का जीवन और विरासत, परोपकारिता और बलिदान का एक प्रेरक उदाहरण है।
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