रांची। राजधानी रांची के जगन्नाथपुर में मौसीबाड़ी से नौ दिनों के प्रवास के बाद भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गुरुवार को मुख्य मंदिर लौट आए। घुरती रथ यात्रा में हजारों की भीड़ उमड़ी।
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के जयघोष से पूरा मेला परिसर गूंज उठा। हजारों की संख्या में जुटे श्रद्धालु रथ की रस्सी छूने को आतुर दिखे।
घुरती रथ यात्रा से पहले एक घंटा तक मंत्रोच्चारण के साथ उनकी विधिवत पूजा-अर्चना की गई। देर शाम को भगवान मुख्य मंदिर पहुंचे। रथ मेला में अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक भीड़ दिखी। साथ ही नौ दिन तक चलनेवाला रथ मेला का समापन हो गया।
मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ की रस्सी खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। बता दें कि रांची में रथयात्रा की परंपरा 323 सालों से चली आ रही है।
रांची में जगन्नाथपुर मंदिर का निर्माण बड़कागढ़ के महाराजा ठाकुर रामशाही के चौथे बेटे ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने 25 दिसंबर, 1691 में कराया था। मंदिर का जो वर्तमान स्वरूप दिखता है, वह 1991 में बना। वर्तमान मंदिर पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है।
गर्भ गृह के आगे भोग गृह है। भोग गृह के पहले गरुड़ मंदिर है, जहां बीच में गरुड़जी विराजमान हैं। गरुड़ मंदिर के आगे चौकीदार मंदिर है। ये चारों मंदिर एक साथ बनाए गए थे। ओड़िशा शैली में निर्मित इस मंदिर में पूजा से लेकर भोग चढ़ाने का विधि-विधान भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर जैसा ही है।