नई दिल्ली। कोयला क्षेत्र में आने वाले दिनों में मैनपावर और कम होगा। इस प्लान पर तेजी से काम हो रहा है। कोयला मंत्रालय ने अगले चार सालों में इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा है। मंत्रालय का दावा है कि इससे कोयले की ढुलाई की गुणवत्ता बढ़ जाएगी। पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचेगा। कम लोगों की जरूरत होगी।
दरअसल, मंत्रालय कोयला क्षेत्र 2027 तक 67 फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी परियोजनाओं को पूरा करेगा। मंत्रालय के अपर सचिव एम नागराजू ने कोयला कंपनियों की इस परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा शनिवार को की। मंत्रालय 67 एफएमसी परियोजनाओं के साथ प्रति वर्ष 885 एमटी कोयला लोड करने की क्षमता के साथ काम करेगा। इसमें 59 कोल इंडिया, 5 एससीसीएल और 3 एनएलसीआईएल में है। ये परियोजनाएं 2027 तक पूरी हो जाएंगी।
खानों से कोयले के सड़क से ढुलाई को खत्म करने के लिए मंत्रालय ने एफएमसी परियोजना के तहत मशीनीकृत कोयला ढुलाई और लोडिंग प्रणाली में सुधार की योजना विकसित की है। क्रशिंग, कोयले का आकार, और त्वरित कंप्यूटर-असिस्टेड लोडिंग कोल हैंडलिंग प्लांट्स (सीएचपी) और रैपिड लोडिंग सिस्टम वाले एसआईएलओ के फायदे हैं।
कोयला मंत्रालय के अनुसार इन परियोजना में कम मानवीय हस्तक्षेप होगा। सटीक पूर्व-तौलित मात्रा, तेज लोडिंग और बेहतर कोयले की गुणवत्ता भी इसके लाभ हैं। लदान समय कम होने पर रेक और वैगन अधिक आसानी से उपलब्ध होंगे। सड़कों पर कम ट्रैफिक होने की वजह से प्रदूषण कम होगा। डीजल की खपत भी कम होगी।
कोयला मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2025 में 1.3 बिलियन टन और वित्त वर्ष 2030 में 1.5 बिलियन टन कोयला उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है, ताकि भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाया जा सके। आयातित कोयले की जगह घरेलू रूप से खनन किए गए कोयले को प्रतिस्थापित करके आत्मनिर्भर भारत की तरफ कदम बढ़ाया जा सके। एक प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल, त्वरित और लागत प्रभावी कोयला परिवहन का विकास है।