- बीएयू कुलपति ने कृषि वैज्ञानिकों में जोश भरा
रांची। कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह की अध्यक्षता में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) की 43वीं खरीफ अनुसंधान परिषद् की दो दिवसीय बैठक हुई। समापन पर कुलपति ने प्रदेश में कृषि शिक्षा, अनुसंधान एवं प्रसार को बढ़ावा देने में राज्य सरकार से सकारात्मक सहयोग मिलने पर चर्चा की। सरकार के समुचित सहयोग से विवि की समस्यायों का त्वरित समाधान संभव होने की बात कही।
कुलपति ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों का दायित्व है कि राज्य एवं किसानों के हित में अनुसंधान कार्यक्रमों में नवीनता लायें। प्रदेश के कृषि पारिस्थितिकी के अनुरूप एवं उपयुक्त अनुसंधान कार्यक्रमों को प्राथमिकता दें। कृषि से जुड़े हितकारकों से बेहतर समन्यवय एवं सहभागिता स्थापत करें।
निदेशक अनुसंधान डॉ पीके डॉ सिंह ने बताया कि परिषद् की बैठक में बिहार पशुपालन विज्ञान विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान डॉ वीके सक्सेना द्वारा पशुचिकित्सा संकाय के अनुसंधान कार्यक्रमों की गहन विवेचना एवं विश्लेषण किया गया। समीक्षा के बाद परिषद् ने देश में संचालित मवेशी और भैंस नेटवर्क परियोजनाओं से विवि को बेहतर सहयोग स्थापित करने और डेटा संग्रह, राज्य में मवेशी और भैंस पालन के लिए बायोमेट्रिक जर्मप्लाज्म परियोजना की शुरुआत, राज्य हित में दुग्ध विकास कार्यक्रम को अपनाने, बकरी पालन प्रजनन प्रणाली बढ़ावा और पशु पोषण विभाग में फीड एंड एनर्जी लैब को स्थापित पर जोर दिया गया।
परिषद् ने पशु वैज्ञानिकों की भर्ती, पशुओं के प्रजनन को प्रोत्साहित करने और सिंगल एनिमल हेल्थ प्लेटफॉर्म को लोकप्रिय बनाने का परामर्श दिया। प्रदेश में खाद्य सुरक्षा अधीन एकीकृत कृषि प्रणालियों में चावल, बत्तख और मछली को प्राथमिकता, राज्य में चारा की कमी को देखते हुए कृषि प्रणाली में चारा फसल का सूत्रीकरण और चारा फसल उत्पादन को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया।
डॉ पीके सिंह ने बताया कि परिषद् ने वानिकी संकाय के शोध कार्यक्रमों के समीक्षा के उपरांत कृषि वानिकी में बहुउपयोगी वृक्षों एवं चारा फसलों की तकनीकी को विशेष प्राथमिकता, प्रदेश की समृद्ध जैव विविधता को देखते हुए गिलोय एवं एलोवेरा के अतिरिक्त अन्य औषधिय पौधों के अनुसंधान पर प्रयास और नव स्थापित गिलोय प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र के सशक्तिकरण पर जोर दिया।
परिषद् ने प्रदेश के खरीफ मौसम में खेती योग्य करीब 50 प्रतिशत ऊपराऊ भूमि में फसल विविधिकरण में मिलेट्स, मक्का एवं सोयाबीन की खेती को लोकप्रिय बनाने, उचित तकनीकी प्रबंधन सहित धान की सीधी बुवाई तकनीकी को प्राथमिकता, अम्लीय भूमि सुधार तकनीकी का उन्नयन, विलंबित वर्षापात की स्थिति में उपयुक्त फसल किस्मों को प्रोत्साहन एवं उपयुक्त तकनीकी को बढ़ावा देने का परामर्श दिया।