नई फसल किस्मों के विकास में स्थानीय समुदाय के दावों के निबटारे के लिए बीएयू को बनाया गया केंद्र

झारखंड कृषि
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रांची। यदि झारखंड के किसी क्षेत्र में वहां के समुदाय द्वारा संरक्षित पौधा आनुवंशिकी संसाधन के प्रयोग से किसी फसल की नयी किस्म का विकास किया जाता है तो संबंधित समुदाय को उसके लिए प्रतिकर (मुआवजा) दिलाने के लिए किसी व्यक्ति, समूह या किसी सरकारी, गैर सरकारी संगठन द्वारा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के समक्ष दावा प्रस्तुत किया जा सकेगा। ऐसे व्यक्ति या व्यक्ति समूह का कृषि कार्य में सक्रियता से लगा रहना आवश्यक नहीं है।

भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्यरत पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली ने संपूर्ण झारखंड के ऐसे दावों को संस्थित करने के लिए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय को एक केंद्र के रूप में अधिसूचित किया है। इस अधिसूचना को भारत के राजपत्र में भी प्रकाशित किया गया है। अलग-अलग राज्य के लिए अलग-अलग कृषि विश्वविद्यालय को अधिसूचित किया गया है।

प्रकाशित अधिसूचना के अनुसार मैदानी फसलों, फलों, सब्जियों, फूलों, मसालों और बागान फसलों के विकास से संबंधित ऐसे दावे बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक अनुसंधान के समक्ष प्रस्तुत किए जा सकेंगे। वृक्ष प्रजाति के विकास में स्थानीय समुदाय द्वारा संरक्षित जेनेटिक संसाधन का प्रयोग किये जाने से संबंधित भरपाई के दावे निदेशक अनुसंधान के साथ-साथ वानिकी संकाय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी विभाग के अध्यक्ष को भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं। भारत सरकार द्वारा प्राधिकरण का गठन पौधा किस्मों और किसानों के अधिकारों के संरक्षण के लिए दो दशक पूर्व किया गया था।

बीएयू के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने ऐसे दावों की प्राप्ति और प्रोसेसिंग के लिए प्राधिकरण द्वारा बीएयू को केंद्र बनाए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि झारखंड के किसानों ने लंबे अरसे से बहुत से पौधा आनुवंशिक संसाधनों को संरक्षित करके रखा है। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय या राज्य में अवस्थित आईसीआर के शोध संस्थानों द्वारा उनके संसाधनों का प्रयोग कर नए उन्नत प्रभेद विकसित किए जाने पर उन्हें मुआवजा मिलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।