बेरोजगार ग्रामीण युवक-युवतियों ने सीखी कृत्रिम गर्भाधान की तकनीक

झारखंड
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  • कृत्रिम गर्भाधान पर 30 दिनी दसवां मैत्री प्रशिक्षण का समापन

रांची। किसानों के लिए उनके खेत और पशु ही उनकी संपत्ति हैं। ऐसे में किसान अपने खेत और पशुओं को लेकर बेहद ही गंभीर होते हैं। उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए खेती और पशुपालन पर विशेष बल दिया जा रहा है। इसी कड़ी में राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत मवेशियों में कृत्रिम गर्भाधान को बढ़ावा दिया जा रहा है। उक्त बातें कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कृत्रिम गर्भाधान पर 30 दिनी दसवां मैत्री प्रशिक्षण का समापन के मौके पर कही।

डॉ सिंह ने कहा कि पशु नस्ल सुधार के उद्देश्य से झारखंड में ग्रामीण स्तर पर पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान को गति दी जानी है। इसे सभी मैत्री प्रशिक्षाणार्थी को ग्रामीण स्तर पर दक्ष कृत्रिम गर्भाधान कार्यकर्ता के रूप में कार्य निर्वहन करना है। प्रशिक्षण से प्राप्त तकनीकी का गांवों में गव्य विकास को बढ़ावा दे। अनुभवों को ग्रामीण गो-पालक से साझा करें। स्थानीय पशु चिकित्सक के परामर्श से कम खर्च पर आसानी से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा पशु नस्ल सुधार कार्यक्रम को गतिशील बनाये रखने की कोशिश करें।

मौके पर डीन वेटनरी सुशील प्रसाद ने कहा कि प्रशिक्षण के उपरांत सभी प्रशिक्षाणार्थी को 60 दिनों का व्यावहारिक प्रशिक्षण जिले के कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में प्राप्त होगा। इस अवधि में 75-100 कृत्रिम गर्भाधान कार्य एवं परीक्षण का अनुभव मिलेगा। इस व्यावहारिक अनुभव से प्रशिक्षाणार्थी की कार्य दक्षता एवं उपलब्धि पर उनका मानदेय और आमदनी निर्भर होगी। पशुपालकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी।

प्रशिक्षण समन्यवयक डॉ एके पांडे ने बताया कि कार्यक्रम में चतरा, देवघर, धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, कोडरमा, रांची और जामताड़ा के 56 बेरोजगार ग्रामीण युवक-युवतियों ने भाग लिया। इन्हें कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के अलावा पशु प्रबंधन तकनीकी की  विस्तृत जानकारी दी गई है।

कार्यक्रम राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के अधीन झारखंड स्टेट इम्प्लीमेंट एजेंसी फॉर कैटल एंड बुफैलो डेवलपमेंट के सौजन्य से आयोजित किया गया। संचालन प्रशिक्षण सहायक डॉ मुकेश कुमार ने किया।