रांची। खून कई प्रकार होते है। ए, बी, ओ और एबी सामान्य है। इसके अलावा आर एच (Rh) भी एक प्रकार होता है। करीब 85% लोग Rh पॉजिटिव होते हैं और 15% लोग Rh निगेटिव होते हैं। यदि माता Rh निगेटिव और पिता Rh पॉजिटिव हो तो शिशु के Rh पॉजिटिव होने के अधिक संभावना होती है। ऐसे में शिशु की लाल रक्त कोशिकाएं, नाल (placenta) को पार कर के माता के खून में मिल सकती है।
माता का खून इन रक्त कोशिकाओं के प्रतिकूल एंटीबॉडी (प्रतिरोधक कोशिकाएं) बनाता है। फिर में एंटीबॉडी वापस शिशु के खून से मिल जाता। शिशु की लाल रक्त कोशिका को नष्ट कर देता है। इससे शिशु में खून की भारी मात्रा में कमी हो जाती है। उसकी गर्म में ही मृत्यु हो सकती है। इस समस्या से बचने के कुछ उपाय है, किंतु शिशु के कम होते खून के स्तर को पूरा करना ही चिकित्सा का एक तरीका है।
गर्भस्थ शिशु को रक्तदान करना एक जटिल प्रक्रिया है। झारखंड, बिहार, उड़ीसा का संभवत: पहला ऐसा सफल प्रयास रांची के बरियातू स्थित फ्रेया अस्पताल में 31 जुलाई, 2022 को किया गया।
अस्पताल की गर्भस्थ शिशु चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ तूलिका जोशी ने बताया कि माता के Rh निगेटिव ब्लड ग्रुप और पिता के Rh पॉजिटिव ब्लड ग्रुप की वजह से तीन बार उसका गर्भपात हो गया था। इस बार भी ऐसा ही हो रहा था। शिशु का हीमोग्लोबिन स्तर 5 के आस पास आ गया था। अस्पताल में डॉ जोशी और गुजरात से आई Intrauterine Transfusion विशेषज्ञ डॉ अभी शाह ने मिलकर गर्म में ही शिशु को रक्तदान कराया।
डॉ जोशी ने बताया कि यह लंबी और जटिल प्रक्रिया द्वारा हुआ। इसमें उच्च कोटी के अल्ट्रा साउन्ड निर्देशन की जरूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया के बाद शिशु के रक्त का स्तर सामान्य हो गया। मां एवं शिशु दोनों स्वस्थ हो गए। प्रसव का पूरा समय होने पर शिशु का ऑपरेशन द्वारा जन्म कराया गया।
शिशु को इसके बाद भी इस जटिलता के कारण जान का खतरा बना हुआ था। अस्पताल के neonatology आईसीयू में कुशल चिकित्सकों द्वारा इलाज किया गया। अब स्वस्थ बच्चा और माता-पिता घर जाने के लिए तैयार है। गर्भ में शिशु के उपचार (Fetal Medicine) की सुविधा अभी तक सिर्फ सबसे बड़े शहरों में ही उपलब्ध है। अब यह सुविधा फ्रेया अस्पताल में भी उपलब्ध हो गया है।