पालना घर की सुविधा होने पर महिलाओं की आमदनी में डेढ़ गुणा तक वृद्धि

झारखंड
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रांची। पालना घर की सुविधा होने पर महिलाओं की कार्य क्षमता बढ़ जाती है। उन्हें काम करने के ज्यादा अवसर प्राप्त होते हैं। परिवार की आमदनी डेढ़ गुणा तक बढ़ जाती है। यह तथ्‍य नेशनल फोर्सेज (फॉर्म फॉर क्रेचेस एंड चाइल्ड केयर सर्विस) के तत्वावधान में झारखंड की महिलाओं पर हुए अध्ययन में उभरकर सामने आए हैं।

नेशनल फोर्सेस की राष्ट्रीय समन्वयक चिराश्री घोष ने झारखंड फोर्सेस के सदस्यों के प्रशिक्षण के दौरान प्रारंभिक शिशु देखभाल के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्‍होंने कहा कि यह ना केवल बच्चे के विकास के लिए जरूरी है, बल्कि उचित देखभाल परिवार के लिए भी लाभदायक है।

विदित हो कि झारखंड फोर्सेस के सदस्यों की प्रशिक्षण सृजन फाउंडेशन के कार्यालय में हुआ। इसमें प्रारंभिक शिशु देखभाल और विकास, बच्चों के पोषण और 6 वर्ष तक के बच्चों के देखरेख पर विमर्श हुआ

झारखंड फोर्सेस के समन्वयक राहुल मेहता ने बताया कि समस्या केवल पोषक भोजन की उपलब्धता की नहीं, बल्कि स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थों के उचित सदुपयोग के अभाव और खानपान में परिवर्तन की भी है। इसके कारण बच्चों का प्रारंभिक विकास बाधित हो रहा है।

सृजन फाउंडेशन के कार्यक्रम प्रबंधक राजीव रंजन सिन्हा ने कहा के झारखंड में पालनाघर ना के बराबर हैं। पहले सेंट्रल सोशल वेलफेयर बोर्ड के आर्थिक सहयोग से पालनाघर संचालित होते थे, जो अब बंद हो चुके हैं। उन्होंने 8 घंटे पालनाघर चलाने के जरूरत पर जोर दिया।

मोबाइल क्रेचेस दिल्ली के भूपेंद्र ने कहा कि‍ पालना घर के लिए सरकारी आवंटन अपर्याप्त है। हरियाणा, कर्नाटक, ओडिशा जैसे राज्यों ने पालनाघर के लिए अपने बजट से अतिरिक्त आर्थिक प्रावधान किए हैं। यही नहीं, कामकाजी महिलाओं के समय को देखते हुए पालना घर के समय में भी परिवर्तन किया गया है, ताकि वे उसका उचित लाभ उठा सकें। नतीजन कामकाजी महिलाएं पालना घर में बच्चों को छोड़कर काम पर  जा पा रही हैं।

झारखंड के 12 जिला से आए 20 सदस्यों ने प्रशिक्षण में भाग लिया। प्रमुख रूप से संजय कुमार, राजन कुमार, मुकेश कुमार शाहा, नईमुद्दीन अंसारी, संजीव, गौतम सागर, इमाम अंसारी, दीपा कुमारी, लीला कुमारी, प्रिंस कुमार, दिवाकर कुमार, दिनेश मेहता, बैद्यनाथ, मनोज कुमार, धनराज कुमार, पूजा, राजीव रंजन, उमेश कुमार आदि ने भाग लिए।

प्रशिक्षण में 14 नवंबर से 10 दिसंबर तक छोटे बच्चों के अधिकार के लिए झारखंड के सभी जिलों में अभियान चलाने का भी निर्णय लिया गया।