रांची। झारखंड राज्य में मानसून में देरी, वर्षा में कमी एवं अनियमितता से सुखाड़ की स्थिति बनी हुई है। खरीफ फसलों के खेती की स्थिति अच्छी नहीं है। मानसून की बेरुखी की वजह से खरीफ फसलों विशेषकर धान की बुआई प्रभावित हुई है. जिसे देख बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने प्रदेश के किसानों के लिए कुछ आवश्यक सलाह दी है। उन्होंने बताया कि इन उपायों को कृषि कार्यों को अपनाकर सुखाड़ से संभावित नुकसान को कम की जा सकती है।
रोपे गए फसल की देखभाल करें
वर्षा के अभाव में राज्य की निचली भूमि (दोन-1) में धान रोपाई काफी धीमी है। पिछले दो दिनों में कहीं-कहीं अच्छी वर्षा होने से कुछ किसानों ने धान की रोपाई कर ली है। अगले कुछ दिनों तक हल्की वर्षा होने की संभावना है। ऐसी स्थिति में किसानों को रोपे गए फसल की समुचित देख-रेख, रोपा के 20-25 दिनों बाद खेतों में खर-पतवार नियंत्रण करते हुए 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से यूरिया का भुरकाव और खड़ी फसल पर कीट एवं रोग का प्रकोप दिखने पर तुरंत बचाव का उपाय करना जरूरी है।
दोन 2 और 3 में करें ये उपाय
निचली भूमि (दोन-2) एवं मध्यम भूमि (दोन-3) में अगर कादो करने लायक पानी जमा नहीं हो पाया हों, तो आगामी दिनों में होने वाले वर्षा जल के साथ-साथ ऊपरी खेतों से पानी का बहाव रोपा वाले खेतों में करके धान की बिचड़े की रोपा करें। धान का बिचड़ा 30 दिनों से ज्यादा होने पर, रोपा से एक दिन पहले बिचड़े के ऊपरी भाग की हल्की कटाई (करीब 10 से. मी.) कर दें। बिचड़े को रात भर उर्वरक के घोल में डूबोकर रखें। एक लीटर पानी में 2 ग्राम डीएपी और 2 ग्राम म्युरीएट ऑफ पोटाश डालकर उर्वरक घोल बनायें।
परती भूमि में ये फसल लगाएं
किसानों को ऊपरी एवं मध्यम खेत की परती भूमि की खेती पर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। जिन किसानों की ऊपरी भूमि परती रह गई है, उन्हें मौसम अनुकूल रहने पर कुल्थी, सरगुजा, बरसाती आलू या विभिन्न सब्जियों या हरा चारा की खेती करनी चाहिए। कुल्थी की एलजी-19, इंदिरा कुल्थी-1 या बिरसा कुल्थी-1 में से किसी एक किस्म का चयन करें। सरगुजा की उन्नत किस्मों में बिरसा नाइजर-1, बिरसा नाइजर-2, बिरसा नाइजर-3 या पूजा-1 में से किसी एक किस्म का चयन करें।
बरसाती आलू की खेती में अगस्त तक कुफरी कुबेर (ओएन-2236), कुफरी पुखराज या कुफरी अशोका किस्मों और सितंबर मध्य तक कुफरी अशोका, कुफरी लालिमा, कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी बहार, कुफरी जवाहर या अल्टीमस आदि किस्मों को लगाया जा सकता है। हरा चारा के लिए मकई (अफ्रीकन टाल या जे-1006), लोबिया (यूपीसी-5286, यूपीसी-622, यूपीसी-625), राइस बीन/मोठ (विधान-1, राइस बीन-2, आरबीएल -6) इत्यादि में से किसी एक की बुआई करें। शहरों के नजदीक रहने वाले किसान गेंदा फूल की खेती कर सकते है।
कम अवधि वाली किस्में चुनें
मध्यम भूमि में धान या मकई की सीधी बुआई कम अवधि वाली किस्मों के साथ करें। धान की बुआई के लिए कम समय में तैयार होने वाली किस्मों जैसे बिरसा विकास धान-110, बिरसा विकास धान -111, वंदना, ललाट, सहभागी, आईआर -64 (डीआरटी -1) इत्यादि में से किसी एक किस्म का चुनाव करें। मकई की 80 से 90 दिनों की अवधि वाली किस्मों में बिरसा मकई -1, बिरसा विकास-2, प्रिया या विवेक की सीधी बुवाई मेढ़ बनाकर करें।