हजारीबाग। जब देशभर में रामनवमी का समापन हो जाता है, तब हजारीबाग में भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव शुरू होता है। यहां की रामनवमी की अपनी अलग पहचान है, तो देश ही नहीं सरहद पार भी ख्यातिप्राप्त है। इसीलिए हजारीबाग की इंटरनेशनल रामनवमी कही जाती है। यहां रामनवमी की निकली झांकी दशमी को भी रात में निकलती है और एकादशी की शाम तक खत्म होती है। झांकियों और जुलूस को देखने के लिए ‘हजार बागों के शहर’ हजारीबाग की सड़कों पर महासैलाब उमड़ता है।
72 घंटे तक बढ़ता रहता है कारवां, झूमते रहते हैं रामभक्त
रामभक्तों की टोली गगनचुंबी महावीरी ध्वज के साथ झांकियों में डीजे और ताशा की धुनों पर लगातार थिरकते, नाचते-गाते हैं। साथ ही जय बजरंग बली, जय श्रीराम, हर हर महादेव के गगनभेदी नारे से पूरा जिला गूंज उठता है। 72 घंटे तक जुलूस और झांकियों का कारवां बढ़ता रहता है। सभी मस्जिद रोड (सुभाष मार्ग) से गुजरते हैं।
दिखती है कौमी एकता की झलक
जब रामभक्तों का कारवां जुलूस और झांकियों के साथ मस्जिद रोड से गुजरता है, तो कौती एकता की झलक देखते ही बनती है। मुस्लिम समुदाय के लोग रामभक्तों को चाय, शर्बत, चना, गुड़ और पानी बांटते हैं, तो कोई पुष्पवर्षा भी करता है। ठंडे जल की फुहारों से रामभक्तों को काफी राहत मिलती है और फिर नई ऊर्जा प्रदान कर देती है। यह भी जानिए कि रामभक्तों के हाथ में जो महावीरी ध्वज होता है, उसे मुस्लिम समुदाय के लोग ही बनाते हैं।
वर्ष 1927 में निकला था पहला जुलूस
वर्ष 1927 में ठाकुरबाड़ी से गुरुदयाल ठाकुर ने टीधर गोप, हीरालाल महाजन और रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह के सहयोग रामनवमी का पहला जुलूस निकाला था। अब यहां करीब 150 अखाड़ाधारी जुलूस में शामिल होते हैं।
प्रशासन भी रहता है मुस्तैद
जुलूस के दौरान प्रशासन भी मुस्तैद रहता है। एंबुलेंस, सुरक्षा से लेकर जुलूस को आगे बढ़ाने में पुलिस और प्रशासन के लोग बखूबी सहयोग करते हैं। हालांकि इस वर्ष रात 10 बजे तक ही जुलूस निकालने की सरकारी और प्रशासनिक अनुमति है।