संपूर्ण विश्व के वैचारिक संकट का निवारण भारतीय जीवन मूल्य एवं चिंतन में निहित : मि‍लिंद परांडे

झारखंड
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  • सरला बिड़ला विश्‍वविद्यालय में संगोष्‍ठी का आयोजन

रांची। भारतीय चिंतन समाज के कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी जीवन जीने का अधिकारी मानता है, जबकि पश्चात चिंतन इसके विपरीत विचार रखता है। सर्व समावेशिता भारत की विशेषता रही है। यहां मानवता को कभी विभाजित नहीं किया जाता। भारतीय चिंतन के अलावा अन्य सभी चिंतन विभाजनकारी विचारों को बढ़ावा देते हैं। अंधेरा कभी प्रकाश का नाश नहीं कर सकता, दीपक का होना ही अंधेरा का हार है।

उक्त बातें सामाजिक कार्यकर्ता मिलिंद परांडे ने कही। वह झारखंड की राजधानी रांची स्थित सरला बिरला विश्वविद्यालय के बीके बिरला प्रेक्षागृह में 30 अप्रैल को आयोजित संगोष्‍ठी में बतौर मुख्‍य अतिथि बोल रहे थे। इसका विषय ‘भारत के वर्तमान परिदृश्य में युवाओं की भूमिका’ था।

भारत के विश्वगुरु की परिकल्पना की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व के वैचारिक संकट का निवारण और उसका उचित समाधान भारतीय जीवन मूल्यों एवं चिंतन में निहित है। इसके लिए भारत को ही आगे आना होगा। भारतीय चिंतन सर्वे भवंतु सुखिन: एवं वसुधैव कुटुंबकम के विचारों से ओतप्रोत है। धर्म के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म का अर्थ रिलीजन शब्द नहीं है। धर्म उपासना से परे है। परोपकार ही धर्म है, पर पीड़ा ही अधर्म है। उपासना, जीवन मूल्य एवं कर्तव्य भाव धर्म के अंग हैं।

परांडे ने युवाओं को भारतीय गौरव से परिचित कराते हुए कहा कि आज के 400 साल पूर्व भारत विश्व का सबसे बड़ा आर्थिक पावर था। विभिन्न आक्रमणकारियों ने यहां की अर्थव्यवस्था पर आक्रमण कर इसे कमजोर करने का कार्य किया। भारत का तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय हुआ करते थे। मुगलों एवं अंग्रेजों के कारण भारत में कई सामाजिक दोष उत्पन्न हुए।

भारत की जाति एवं जनजाति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि रामायण में सामाजिक एकीकरण और जनजातीय समाज के सम्मान के कई दृष्टांत उदाहरण के रूप में देखने को मिलते हैं। पाश्चात्य विचार के अनुसार विश्व एक बाजार है, जबकि भारतीय चिंतन के अनुसार विश्व एक वृहद परिवार है। उन्होंने कहा कि हमे अपनी युवा शक्ति का उपयोग राष्ट्र निर्माण में करने की आवश्यकता है। हमें मिलकर राष्ट्र के उत्थान की जवाबदेही अपने कंधों पर लेना होगा। देश को सशक्त, समृद्ध व अखंड बनाए रखना युवाओं की जवाबदेही है।

स्वागत करते हुए कुलपति प्रोफेसर गोपाल पाठक ने कहा कि युवा शक्ति राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होती है। भारत सौभाग्यशाली है, जिसकी सबसे सबसे बड़ी आबादी युवा आबादी है। उन्होंने जापान की समृद्धि का उदाहरण देते हुए कहा कि जापान की संपन्नता का सबसे बड़ी ताकत वहां की युवा शक्ति ही है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के प्रेरक विचारों से प्रेरित करते हुए युवाओं को अपनी शक्ति को पहचानने की अपील की। अपने मन, ताकत व विचार पर नियंत्रण रखने की बात कही, ताकि बेहतर भविष्य निर्माण किया जा सके। युवा शक्ति को दिशाहीन ना होकर भारतीय प्राचीन इतिहास एवं वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने वाला होना चाहिए। नियति और निश्चय के गणित को समझ कर ही हम सही मायने में जीवन में सफल हो सकते हैं।

विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी डॉ प्रदीप वर्मा ने कहा कि आज के समय में युवा को सही दिशा दिखाना अति आवश्यक है। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं ओम ध्वनि के साथ की गई। कार्यक्रम का संचालन एवं अतिथियों का परिचय सहायक प्राध्यापक डॉ नीतू सिंही ने कराया। धन्यवाद विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर विजय कुमार सिंह ने किया। राष्ट्रगान के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

इस अवसर पर प्रोफेसर श्रीधर बी दंडिन, प्रोफेसर संजीव बजाज, अजय कुमार, प्रवीण कुमार, आशुतोष द्विवेदी, डॉ पार्थ पॉल, डॉ सुबानी बाड़ा, हरिबाबू शुक्ला, डॉ राधा माधव झा, डॉ संदीप कुमार, डॉ मनोज पाण्डेय, डॉ अमृता सरकार, डॉ पूजा मिश्रा, डॉ मेघा सिन्हा, प्रो अमित गुप्ता, डॉ भारद्वाज शुक्ल, सुभाष नारायण शाहदेव सहित विश्वविद्यालय के सभी पदाधिकारी, प्राध्यापक एवं छात्र छात्राएं उपस्थित थे।