झारखंड की इन महिलाओं ने मिथक तोड़ रच डाला इतिहास, जानिए उनकी कामयाबी का राज

झारखंड
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रांची। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है़। इस दिन की शुरुआत वर्ष 1908 में एक महिला मजदूर आंदोलन की वजह से हुई। इस अवसर पर झारखंड की कुछ ऐसी महिलाओं की कहानी बयां की जा रही है, जिन्होंने अपनी हिम्मत और जज्बे के दम पर हर चुनौती का सामना किया।

रांची की सोना सिन्हा का सपना हर लड़की तरह ही है. हालांकि अपने सपने को पूरा करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा़। वह बचपन से ही अपने पैरों पर चल पाने में असमर्थ हैं। आज व्हील चेयर पर ही अपना पूरा काम कर रही हैं। वह कहती हैं कि दूसरी लड़कियों को देखकर लगता था कि कुछ करूं। कभी स्कूल-कॉलेज नहीं गई, लेकिन में पढ़ाई की। घर से ही ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की. बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद अपने सपने को पूरा करने के लिए निकल पड़ी। छह वर्ष तक स्कूल से जुड़ रहीं।

हालांकि कोरोना काल में जॉब छूट गई, लेकिन हिम्मत नहीं छोड़ी़। अब 30 से ज्यादा विद्यार्थियों को ऑनलाइन पेंटिंग प्रशिक्षण दे रही हैं। वह कहती हैं कि किसी परिस्थिति से कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।

हजारीबाग की आकांक्षा कुमारी सीसीएल की पहली महिला ‘माइनिंग इंजीनियर हैं। वह कहती हैं कि इस छह महीने में काफी कुछ सीखने को मिला है। माइनिंग के बारे में जिन चीजों को पढ़ा था, उसे अनुभव किया। आकांक्षा 24 अगस्त 2021 से नॉर्थ कर्णपुरा क्षेत्र की चूरी भूमिगत खदान में योगदान दे रही हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई नवोदय विद्यालय से पूरी की है। वह कहती हैं कि बचपन से ही अपने आसपास कोयला खनन की गतिविधियों को देखती रही हूं। इस कारण खनन के प्रति रुचि जगी। इसी रुचि को आगे बढ़ाते हुए इंजीनियरिंग में माइनिंग ब्रांच को चुना। फिर वर्ष 2018 में बीआइटी सिंदरी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। कोल इंडिया में अपना योगदान देने से पहले तीन वर्षों तक हिंदुस्‍तान जिंक लिमिटेड की राजस्‍थान स्थित बल्‍लारिया खदान में कार्य किया। अपने इंजीनियरिंग कोर्स में माइनिंग को चूना और इस भ्रांति को तोड़ा कि खनन क्षेत्र में सिर्फ पुरुषों के लिए है।

आकांक्षा की इस उपलब्धि ने खनन क्षेत्र में महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत और असीम संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। सिल्ली के गेडेबीर गांव की हेमली कुमारी कस्तूरबा विद्यालय में 11वीं की छात्रा है। पिता लकड़ी काटकर घर चलाते हैं। हेमली राष्ट्रीय कला उत्सव 2020 व 2021 में देश भर में ढोल वादन में अव्वल आ चुकी है। वह बताती है कि शुरुआती दौर में जब वह ढोलक बजाना सीख रही थी, तो समाज के कुछ लोग उसे हेय दृष्टि से देखते थे। फिर उसने अभ्यास करना नहीं छोड़ा। आज राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि हासिल कर चुकी है।

रांची कोकर की डॉ शिप्ती ने 17 अगस्त 2021 को यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचकर इतिहास रचा। अभी दिल्ली के निजी अस्पताल में चिकित्सक हैं। उन्होंने कोरोना काल में मरीजों की सेवा की और इसी बीच यूरोप की चोटी पर पहुंचीं। वह कहती हैं कि माइनस 10 डिग्री तापमान और भारी बर्फबारी के बीच 5642 मीटर ऊंचे माउंट अलब्रुस की चोटी पर पहुंचना काफी मुश्किल था। उनकी टीम ने जॉर्जिया और रूस की सीमा पर स्थित माउंट अलब्रुस पर 18,510 फीट की ऊंचाई पर चढ़ाई की और तिरंगा लहराया। उन्होंने कहा कि इसके पहले खुद को फिजिकल फिट रखने के लिए घर में काफी मेहनत करनी पड़ी। घंटों पीपीइ किट पहन कर आइसीयू में भर्ती मरीजों की सेवा में जुटती और फिर घर जाकर फिटनेस के लिए एक्सरसाइज करती। इसके बाद पर्वतारोही का सपना पूरा हुआ।

डॉ शिप्ती ने संत जेवियर स्कूल बोकारो से पढ़ाई की हैं। इसके बाद बेंगलुरु के एक मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। वह कहती हैं कि पिता मारकुस सिंह और माता इला रानी सिंह ने सहयोग किया।