- स्थानीय बाजार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में भी करती है थोक व्यापार
जमशेदपुर। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ प्रखंड की जुगीशोल पंचायत अंतर्गत तिलाबनी गांव की रहने वाली अलादी मुर्मू प्रगतिशील महिला किसान हैं। इनका 6 सदस्यों का संयुक्त परिवार मिलकर सालों भर मौसम आधारित खेती करते हैं। उनके पास खेती योग्य 3.50 एकड़ जमीन है।
परंपरागत खेती से नकद आय नहीं
अलादी बताती हैं कि पहले से उनका परिवार पंरपरागत तरीके से धान की खेती करते आ रहा है। इससे खाने-पीने की कमी तो नहीं हुई, लेकिन नकद आय नहीं होता था। इससे आय के लिए दूसरे स्रोत पर भी निर्भर रहना पड़ता था। कृषि विभाग से जुड़कर उन्नत तकनीक से किए जाने वाली खेती-बाड़ी एवं उससे होने वाले लाभ के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद उनका रूझान सब्जी खेती की ओर बढ़ा। आज खुशहाल जीवन जी रही हैं।
टपक सिंचाई एवं मल्चिंग विधि से खेती
धान की खेती के साथ-साथ प्रयोग के तौर पर अलादी मुर्मू ने पहले दो एकड़ जमीन पर बैगन की खेती की। 12 हजार रुपये की लागत में बैंगन से ही उन्हें 40 हजार रुपये की आमदनी हुई। इसके बाद उन्होने बरबटी, लौकी एवं मूली की काफी मात्रा में खेती की है। अलादी मुर्मू का पूरा परिवार खेती कार्य में सहयोग करता है। पूरे परिवार का भरण-पोषण भी सब्जी के नकद आय पर आश्रित है। इसके साथ ही खेती कार्य में तीन लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया।
आर्थिक तंगी की समस्या खत्म हो गई
अलादी मुर्मू कहती हैं कि सालों भर सब्जी की खेती से आर्थिक तंगी की समस्या खत्म हो गई। सब्जियों की बिक्री स्थानीय बाजार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में थोक भाव में करती हैं। टपक सिंचाई एवं मल्चिंग विधि से सब्जी की खेती करने से इन्हें अच्छा उत्पादन प्राप्त हो रहा है। अलादी ने बताया कि धान की खेती से भी उन्हें 30 हजार रुपये का मुनाफा हुआ। साल भर में सब्जी की खेती से खर्च को छोड़कर लगभग दो लाख रुपये तक आमदनी हो जाती है। सब्जी बागान के अंदर प्रत्येक 30 फीट की दूरी पर जगह-जगह आम के 50 पौधा भी उन्होने लगाया है, जो आने वाले मौसम में उनके लिए आय का दूसरा स्रोत साबित होगा।
किसानों के लिए संदेश
अलादी मुर्मू कहती हैं खेती-किसानी का कार्य पेशेवर तरीके से किया जाए तो आय का अच्छा स्रोत बन सकता है। किसान हित में कई कल्याणकारी योजनाएं कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही हैं, जिसका लाभ किसान जरूर लें। साथ ही समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर उन्नत तकनीक की भी जानकारी दी जाती है। इससे किसानों को कम लागत में अच्छी आमदनी होती है।